National Sports Day 2021: ध्यानचंद हॉकी के सर्वकालिक महानतम खिलाड़ियों में से एक थे। उनके जन्मदिन (29 अगस्त) को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की आत्मकथा का नाम “गोल” है जो 1952 में प्रकाशित हुई थी। ध्यानचंद में गोल करने की आसाधारण प्रतिभा थी और इस दम पर भारत ने वर्ष 1928, 1932 एवं 1936 के ओलम्पिक खेलों में हॉकी का स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। उनके दौर को भारतीय हॉकी का “स्वर्णकाल” कहा जाता है।
गेंद पर अपने शानदार नियंत्रण के कारण उन्हें “हॉकी का जादूगर” कहा जाता है। ध्यानचंद ने वर्ष 1948 में हॉकी से सन्यास की घोषणा की थी । उन्होंनें अपने पूरे अन्तर्राष्ट्रीय करियर में 400 से अधिक गोल किये थे।
भारत सरकार ने वर्ष 1956 में उन्हें तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया था। उनके जन्मदिवस 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है एवं इस तिथि को राष्ट्रपति द्वारा राजीव गांधी खेलरत्न पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार एवं द्रोणाचार्य पुरस्कार खिलाड़ियों को दिये जाते हैं। हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की आत्मकथा का नाम “गोल” है, जो 1952 में प्रकाशित हुई थी ।
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राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर इस महानतम खिलाड़ी से संबंधित कुछ रोचक तथ्य जानते हैं।
(मेजर ध्यान चन्द की तस्वीर)
1. केवल 16 साल की उम्र में ध्यान सिंह भारतीय सेना में शामिल हो गए और वहीं उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। चूंकि ध्यान सिंह रात के दौरान ही अभ्यास करते थे इस कारण उनके साथी खिलाड़ी उन्हें "चंद" उपनाम से संबोधित करने लगे।
2. एक बार एक मैच खेलते समय ध्यानचंद विपक्षी टीम के विरुद्ध एक भी गोल नहीं कर पा रहे थे। कई बार असफल होने के बाद उन्होंने गोल पोस्ट की माप के बारे में मैच रेफरी से शिकायत की और आश्चर्यजनक बात यह है कि माप करने पर पता चला की गोल पोस्ट की आधिकारिक चौड़ाई अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक नहीं थी।
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3. वर्ष 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में भारत के पहले मैच के बाद ध्यानचंद के जादुई हॉकी को देखने के लिए लोगों की भीड़ हॉकी मैदान में उमड़ने लगी। एक जर्मन अखबार की हेडलाइन थी: 'ओलम्पिक परिसर में अब एक जादू का शो भी होता है।' अगले दिन, पूरे बर्लिन की सड़कें पोस्टरों से भरी पड़ी थीं, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था: “हॉकी स्टेडियम में जाएं और भारतीय जादूगर का करतब देखें”।
4. एक किवदंती के अनुसार हिटलर ने जर्मनी के विरुद्ध ध्यानचंद के जादुई खेल को देखकर उन्हें जर्मनी में बसने और अपनी सेना में कर्नल का पद देने की पेशकश की थी लेकिन ध्यानचंद ने मुस्कुराते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
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5. 1936 के ओलम्पिक में मैच के दौरान जर्मनी के तेज-तर्रार गोलकीपर “टिटो वार्नहोल्ट” के साथ टकराने के कारण ध्यानचंद का एक दांत टूट गया था। प्राथमिक चिकित्सा के बाद मैदान पर लौटने पर ध्यानचंद ने जर्मन खिलाड़ियों को "सबक सिखाने" के उद्येश्य से भारतीय खिलाड़ियों को गोल नहीं करने की सलाह दी। भारतीय खिलाड़ी बार-बार गेंद को जर्मनी के गोलपोस्ट के पास ले जाते थे और पुनः गेंद को वापस अपने पाले में ले आते थे।
6. वर्ष 1935 में जब भारतीय हॉकी टीम ऑस्ट्रेलिया में थी तो क्रिकेट के महान खिलाडी डॉन ब्रैडमैन और हॉकी के महानतम खिलाड़ी ध्यानचंद एक-दूसरे से एडिलेड में मिले। ध्यानचंद के खेल को देखने के बाद डॉन ब्रैडमैन ने टिप्पणी की, "वह हॉकी में गोल इस तरह करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनाये जाते हैं।”
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7. वियना (आस्ट्रिया) के निवासियों ने उनकी एक मूर्ति की स्थापना की थी जिसमें उनके चार हाथ और चार हॉकी स्टिक थे जो गेंद पर उनके नियंत्रण एवं महारत को दर्शाता है। हालांकि यह बात अतिशयोक्ति भी हो सकती है क्योंकि वर्तमान में ना तो ऐसी कोई मूर्ति है और ना ही इससे संबंधित कोई दस्तावेज उपलब्ध हैं।
8. नीदरलैंड में एक बार अधिकारियों ने हॉकी स्टिक के अंदर चुंबक होने की आशंका के कारण ध्यानचंद के हॉकी स्टिक को तोड़ दिया था।
9. हालांकि ध्यानचंद ने कई यादगार मैच खेले थे लेकिन वे 1933 के “बेईग्टन कप” के फाइनल मैच को, जो “कलकत्ता कस्टम” और “झांसी हीरोज” के बीच खेला गया था, अपना सर्वश्रेष्ठ मैच मानते थे।
10. 1932 के ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान को क्रमशः 24-1 और 11-1 से हराया। इन 35 गोलों में ध्यानचंद ने 12 गोल किए जबकि उनके भाई रूप सिंह ने 13 गोल किये। इस शानदार प्रदर्शन के कारण दोनों भाईयों को “हॉकी ट्विन्स” के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
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