मानव सभ्यता के विकास में ऊर्जा संसाधनों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. यह बात और है कि बदलते समय में साथ ऊर्जा के साधन और उपयोग भी बदल जाते हैं. अभी हम लोग पेट्रोलियम ऊर्जा, कोयला ऊर्जा, गैस ऊर्जा, सौर्य ऊर्जा और विद्युत् ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गैस और पेट्रोलियम ऊर्जा के भंडारों का पता कैसे लगाया जाता है?
इस लेख में आप जानेंगे कि किन तरीकों से समुद्र और जमीन के नीचे तेल और गैस के भंडारों (oil and gas exploration process) का पता लगाया जाता है?
चूंकि तेल और गैस के भंडारों के बारे में पता लगाना और इन्हें वहां से बाहर निकालना बहुत महंगा काम है इसलिए खोजकर्ताओं को इस बात का सही पता लगाना बहुत जरूरी होता है कि किस जगह पर तेल और गैस के भंडार मौजूद हैं?
तेल और गैस का निर्माण पृथ्वी के अंदर कैसे हुआ (How Oil and Gas deposited inside the Earth)
ऐसा माना जाता है कि जब कई सौ साल पहले प्रथ्वी पर भूकम्प आये तो इसमें कई पेड़ और जीव जंतु जमीन के अंदर दब गए चूंकि प्रथ्वी में बहुत गर्मी है इस कारण पेड़ और जीव जंतु जल गए और इनसे निकली गैस और तेल सख्त चट्टानों के बीच इकट्ठे हो गये. इस प्रकार स्पष्ट है कि कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का निर्माण लाखों वर्षों में वनस्पतियों और समुद्री जीवों के नष्ट होने और पृथ्वी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से हुआ है.
चूंकि तेल और गैस पानी की तुलना में हल्के होते हैं इसलिए इन दोनों के भंडार पानी के नीचे भी पाए जाते हैं. कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस 1 से 60 कार्बन परमाणुओं से युक्त हाइड्रोकार्बन अणुओं के मिश्रण होते हैं.
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जमीन के नीचे तेल और गैस के भंडार कैसे खोजे जाते हैं (What is the process of oil exploration)
तेल एवं गैस शोध कार्य के दौरान लगभग 200 फीट तक बोरिंग की जाती है और कम से कम ढाई किलो ग्राम का बम या डायनामाइट नीचे डालकर विस्फोट कराया जाता है इसकी धमक से दस किलोमीटर क्षेत्र की जमीन कांप जाती है. विस्फोट के बाद उत्पन्न सीस्मिक तरंगों को भूकंपीय फोन (seismic phone) की मदद से रिकॉर्ड किया जाता है. इसके बाद इस डेटा का जियोलॉजिस्ट द्वारा सुपर कंप्यूटर की मदद से एनालिसिस किया जाता है. जिसके पता लगता है कि किसी एक्सप्लोरेशन साइट पर कितनी मात्रा में गैस और तेल के भंडार मौजूद हैं. इसके बाद उस जगह पर कच्चे तेल और गैस के खदानें/कुए खोदे जाते हैं.
भारत में डेटा एनालिसिस के काम को हैदराबाद स्थित लैब में भेजा जाता है. अभी हाल ही मैं बिहार के सिवान जिले में तेल और गैस के भंडारों का पता लगाने के लिए सरकार ने मंजूरी दी है.
पानी के नीचे या बीच नदी/समुद्र में तेल और गैस भंडारों का पता कैसे लगाया जाता है? (Oil and Gas Exploration under the Sea)
जमीन के नीचे तेल और गैस के भंडारों का पता लगाने की विधि को “सीस्मिक एक्सप्लोरेशन” कहा जाता है. इस तकनीकी की मदद से तेल और गैस खोजने की शुरुआत 1859 के बाद शुरू हुई थी.
इस विधि में समुद्री जहाज की मदद से पानी के भीतर सीस्मिक वेव्स छोड़ीं जातीं हैं. ये तरंगे पानी के भीतर विभिन्न प्रकार के पदार्थों जैसे, चट्टान, तेल और गैस के भंडारों से टकरातीं हैं और वापस जहाज में लगे सीस्मोमीटर/हाइड्रोफ़ोन्स से टकरातीं हैं. इस सूचना को एकत्र कर लिया जाता है और भूवैज्ञानिक इस डेटा का एनालिसिस सुपर कंप्यूटर की मदद से करते हैं. जिसके बाद वे निष्कर्ष निकालते है कि किस जगह पर कितनी मात्रा में गैस और तेल के भंडार मौजूद हैं. बस उसी जगह पर तेल और गैस के निकालने की प्रक्रिया शुरू की जाती है.
साधारणतः इस पूरी प्रक्रिया में एक साल का समय भी लग जाता है.
ज्ञातव्य है कि इसी तकनीकी की मदद से चमगादड़ अपने शिकार को खोजता है और डॉक्टर गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी जुटाते हैं.
भारत में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस बेसिन इस प्रकार हैं; (Petroleum and Natural Gas Reserves in India)
1. ऊपरी असम बेसिन
2. पश्चिम बंगाल बेसिन
3. पश्चिमी हिमालयी बेसिन
4. राजस्थान सौराष्ट्र-कच्छ बेसिन
5. उत्तरी गुजरात बेसिन
6. गंगा घाटी बेसिन
7. तटीय तमिलनाडु, आंध्र और केरल बेसिन
8. अंडमान और निकोबार तटीय बेसिन
9. खंभात और बॉम्बे हाई बेसिन
10. कृष्णा गोदाबरी बेसिन
ऊपर दिए गए विवरण से स्पष्ट है कि तेल और गैस को खोजने की प्रक्रिया कितनी जटिल है. यदि किसी जगह भूविज्ञानिकों का अनुमान गलत निकल जाए तो शोधन कम्पनी को लाखों रुपयों का नुकसान उठाना पड़ सकता है.
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