जानें "पथारूघाट किसान विद्रोह" के बारे में

Feb 3, 2021, 19:29 IST

असम के लोगों ने भी अंग्रेजों के शोषण, भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में बहादुरी से भाग लिया था. ऐसी ही एक घटना अंग्रेजों द्वारा भूमि कर की बढ़ती दर के खिलाफ असम के दारंग जिले के पथारूघाट में किसानों के ऐतिहासिक विद्रोह की है. आइये इस लेख के माध्यम से "पथारूघाट किसान विद्रोह" के बारे में अध्ययन करते हैं.

Peasants' uprising of Patharughat
Peasants' uprising of Patharughat

स्वतंत्र भारत के इतिहास के पन्नों में ऐसी कई घटनाएं हैं जो बहादुरी, बलिदान और देशभक्ति की कहानियों को उजागर करती हैं. ब्रिटिश आधिपत्य के विरुद्ध भारत के स्वतंत्रता संग्राम में, भारत के विभिन्न हिस्सों से अनगिनत लोगों ने अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश राज से आज़ाद करने के लिए अपने प्राणों की बली दी. 

असम के लोगों ने भी अंग्रेजों के शोषण, भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में बहादुरी से भाग लिया था. ऐसी ही एक घटना अंग्रेजों द्वारा भूमि कर की बढ़ती दर के खिलाफ असम के दारंग जिले (Darrang district) के पथारूघाट में किसानों के ऐतिहासिक विद्रोह की है. 

आपको बता दें कि पथारूघाट, असम के दारंग जिले का एक छोटा सा गाँव, गुवाहाटी से लगभग 60 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है.

आइये जानते हैं  "पथारूघाट किसान विद्रोह" के बारे में 

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड से 25 साल पहले 28 जनवरी, 1894 में 100 से ज़्यादा किसान अंग्रेज़ों की गोली का शिकार होकर मारे गए थे. यह घटना आसाम के पथारूघाट या पथारीघाट में हुई थी. इस दिन किसान अंग्रेज़ों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. अंग्रेजों ने सैनिकों ने इन किसानों पर गोली चलाने का हुक्म दिया जिसकी वजह से कई किसानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.

किस वजह से "पथारूघाट किसान विद्रोह" हुआ था?

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार 1826 में ब्रिटिश द्वारा असम पर कब्जे के बाद, इस राज्य की वृहद भूमि का सर्वेक्षण शुरू हुआ.  इस तरह के सर्वेक्षणों के आधार पर, अंग्रेजों ने भूमि कर लगाना शुरू कर दिया था जिस कारण से किसानों में असंतोष फैला. 1893 में, ब्रिटिश सरकार ने कृषीय भूमिकर को 70- 80 प्रतिशत तक बढ़ाने का निर्णय लिया था.

गुवाहाटी स्थित लेखक अरूप कुमार दत्ता (Arup Kumar Dutta) के अनुसार, जिन्होंने इस घटना पर आधारित एक पुस्तक  पोथोरूघाट (Pothorughat) लिखी है, इन सभाओं के लोकतांत्रिक होने के बावजूद, अंग्रेजों ने उन्हें "देशद्रोह का प्रजनन मैदान" माना. "इसलिए जब भी कोई राएज़ मेल (Raij Mel) होता था, तो अंग्रेज़ उसको खदेड़ने के लिए भारी हाथ से या तैयारी के साथ आते थे," उन्होंने कहा.

एक अन्य प्रोफेसर कमलाकांता डेका के अनुसार 28 जनवरी, 1894 को ऐसा ही हुआ था. "जब ब्रिटिश अधिकारी किसानों की शिकायतों को सुनने से इनकार कर रहे थे, तब वहां माहोल गर्म हो गया था". "फिर लाठीचार्ज हुआ, उसके बाद किसानों पर गोलीबारी हुई जिसमें मौजूद कई किसानों की मौत हो गई थी." औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा लगाए गए भू-राजस्व में वृद्धि के विरोध में किसान बड़ी संख्या में बाहर आ गए थे. इसी जगह पर एक शहीद स्मारक भी बनाया गया है.

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आखिर ये घटना महत्वपूर्ण क्यों थी?

प्रोफेसर डेका के अनुसार, बड़े असमिया समुदाय के लिए, पथारूघाट,सराईघाट की लड़ाई (Battle of Saraighat) में दूसरे स्थान पर आता है, जब अहोमों ने 1671 में मुगलों को हराया था."यह असम के समुदाय के लिए बेहद प्रेरणादायक है."
कई लेखकों के अनुसार "पथारूघाट किसान विद्रोह" एक शांतिपूर्ण विरोध और सविनय अवज्ञा आंदोलन का अग्रदूत था, जिसे बाद में महात्मा गांधी द्वारा प्रचारित किया गया था".

अरूप कुमार दत्ता अपनी पुस्तक की शुरुआत में, लिखते हैं कि यह "पूर्व-कांग्रेस के इतिहास में कुछ मौकों में से एक, अखिल भारतीय साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलन था, जब एक अच्छी तरह से परिभाषित नेतृत्व की अनुपस्थिति में, जनता ने खुद को संगठित किया अंग्रेजों के निरंकुश नेतृत्व का विरोध किया".

इस घटना ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी थी. कई निर्दोष किसानों की मौतों ने ब्रिटिशों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम को और मजबूत किया. पथारूघाट के शहीदों को हमेशा उनकी बहादुरी और उनकी मातृभूमि के लिए बलिदान के लिए इतिहास के सुनहरे पन्नों में याद किया जाता है.

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28 जनवरी, 2001 को सेना द्वारा एक शहीद स्तंभ स्थल बनाया गया था और असम के पूर्व राज्यपाल एस.के सिन्हा (SK Sinha) द्वारा  इसका अनावरण किया गया था.

हर साल 28 जनवरी को, सरकार और स्थानीय लोग कृषक स्वाहिद दिवस मनाते हैं .

कृषक स्वाहिद दिवस में भाग लेते हुए, सी.एम सोनोवाल ने औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ लड़ाई में किसानों के बलिदान और वीरता को याद किया.

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर राज्य के प्रगतिशील किसानों को कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया.

मुख्यमंत्री ने कहा, "कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में, सी.एम ने पथारुघाट में एक अत्याधुनिक एकीकृत प्रशिक्षण और कौशल विकास केंद्र (a state-of-the-art Integrated Training and Skill Development Centre at Patharughat) का उद्घाटन किया और तीन दिवसीय किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रतिभागियों के साथ बातचीत की".

तो अब आप जान गए होंगे की "पथारूघाट किसान विद्रोह" कब और क्यों हुआ था और ये इतिहास में महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है.

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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