मिजोरम राज्य को भारत का 'मोलासेस बेसिन' कहा जाता है। उत्तर-पूर्व के इस राज्य को यह नाम यहां गन्ने की भरपूर खेती, उपजाऊ घाटियों और मोलासेस के ज्यादा उत्पादन की वजह से मिला है। मोलासेस एक गाढ़ा और गहरे रंग का सिरप होता है, जो चीनी बनाने की प्रक्रिया में एक सह-उत्पाद (by-product) के रूप में निकलता है। मिजोरम के इथेनॉल, गुड़ और पेय उद्योगों में इसकी अहम भूमिका है। इस क्षेत्र की उष्णकटिबंधीय जलवायु और उपजाऊ मिट्टी इसे गन्ने और मोलासेस से जुड़े उद्योगों के लिए भारत के सबसे ज्यादा उत्पादक क्षेत्रों में से एक बनाती है।
मिजोरम को भारत का मोलासेस बेसिन क्यों कहा जाता है?
मिजोरम को मोलासेस बेसिन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहां गन्ने की खेती का एक मजबूत आधार है और मोलासेस निकालने के लिए कई इकाइयां (units) हैं। यहां की जलवायु, ज्यादा बारिश और उपजाऊ मिट्टी की वजह से किसान साल भर गन्ने की खेती कर पाते हैं। चीनी निकालते समय जो मोलासेस बनता है, उसका उपयोग इथेनॉल ब्लेंडिंग, स्थानीय मिठाइयां बनाने और औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन में होता है। यह राज्य की अर्थव्यवस्था में भी योगदान देता है। मोलासेस के इसी बड़े पैमाने पर उत्पादन और उपयोग के कारण मिजोरम भारत के चीनी और इथेनॉल उद्योगों में एक प्रमुख नाम बन गया है।
मोलासेस क्या है?
मोलासेस एक चिपचिपा, गाढ़ा और गहरे रंग का सिरप है, जो गन्ने या चुकंदर से चीनी बनाने की प्रक्रिया के दौरान बनता है। इसका इस्तेमाल जानवरों के चारे, बेकिंग और खाना पकाने के साथ-साथ कई औद्योगिक प्रक्रियाओं में भी किया जाता है। इनमें सिरका, साइट्रिक एसिड और अल्कोहल का उत्पादन शामिल है। हालांकि, मोलासेस का पोषण मूल्य उसके प्रकार के आधार पर अलग-अलग होता है, लेकिन ब्लैकस्ट्रैप मोलासेस में सबसे ज्यादा खनिज पाए जाते हैं। मोलासेस में पोटेशियम और आयरन भी काफी मात्रा में होता है।
मोलासेस का उत्पादन
मिजोरम की खास भौगोलिक बनावट और जलवायु इसे गन्ने और मोलासेस के उत्पादन के लिए बहुत अनुकूल बनाती है। राज्य के पहाड़ी इलाकों और उपजाऊ नदी घाटियों को नियमित मानसूनी बारिश से पानी मिलता है, जिससे पानी की आपूर्ति बनी रहती है। यहां का गर्म और नमी वाला मौसम गन्ने की ऐसी फसल के लिए अच्छा है, जिसमें सुक्रोज की मात्रा ज्यादा होती है। इससे मोलासेस का उत्पादन भी ज्यादा होता है। नदियों और झरनों से होने वाली प्राकृतिक सिंचाई और पोषक तत्वों से भरपूर जलोढ़ मिट्टी, मिजोरम की भूमि को मोलासेस और गन्ने के उद्योगों के लिए बहुत उपयुक्त बनाती है।
मिजोरम में मोलासेस उद्योग
मोलासेस उद्योग मिजोरम की ग्रामीण और औद्योगिक अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। कई स्थानीय और सहकारी चीनी मिलें गन्ने से चीनी और मोलासेस बनाती हैं। इसके बाद इसे इथेनॉल प्लांट, शराब की भट्टियों और स्थानीय गुड़ इकाइयों को भेजा जाता है। यह उद्योग न केवल हजारों किसानों की आजीविका का जरिया है, बल्कि यह ग्रामीण औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा देता है। इसके सह-उत्पादों का इस्तेमाल पशुओं के चारे और जैविक खाद उद्योगों में भी होता है। यह चीज मोलासेस क्षेत्र को मिजोरम और पूरे उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए एक स्थायी आर्थिक ताकत बनाती है।
मोलासेस के बारे में रोचक तथ्य
प्राकृतिक सह-उत्पाद:
मोलासेस एक गाढ़ा सिरप है, जो गन्ने के रस से चीनी निकालने के दौरान बनता है। जब गन्ने के रस को उबालकर उसके क्रिस्टल बनाए जाते हैं, तो जो तरल पदार्थ बच जाता है, वही मोलासेस होता है। मिजोरम में यह प्रक्रिया पारंपरिक और आधुनिक, दोनों तरह की मिलों में की जाती है, जिससे अच्छी क्वालिटी का उत्पादन होता है। इस सह-उत्पाद का इस्तेमाल बाद में इथेनॉल और दूसरे औद्योगिक उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है। यह इसे चीनी अर्थव्यवस्था का एक जरूरी हिस्सा बनाता है।
खनिजों से भरपूर:
मोलासेस में आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे कई खनिज भरपूर मात्रा में होते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद हैं। मिजोरम में पारंपरिक मिठाइयों और पेय पदार्थों में इसे अक्सर एक प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ये खनिज इसे पशुओं के चारे के लिए भी उपयोगी बनाते हैं, जिससे मवेशियों का पोषण बेहतर होता है। मोलासेस की पोषक तत्वों से भरपूर संरचना राज्य की कृषि उपज में आर्थिक और आहार संबंधी, दोनों तरह का महत्त्व जोड़ती है।
पर्यावरण-अनुकूल ईंधन स्रोत:
मोलासेस इथेनॉल के लिए एक आधार सामग्री के रूप में काम करता है। इथेनॉल को पेट्रोल में मिलाकर ऊर्जा का एक स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोत बनाया जाता है। इससे प्रदूषण कम करने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाने में मदद मिलती है। मिजोरम का मोलासेस उत्पादन भारत के इथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम में मदद करता है। यह राज्य को देश के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता बनाता है।
सांस्कृतिक महत्त्व:
मिजोरम में मोलासेस की गहरी सांस्कृतिक जड़ें हैं। इसका इस्तेमाल स्थानीय मिठाइयों, पेय पदार्थों और त्योहारों पर बनने वाले पकवानों में किया जाता है। यह इस क्षेत्र की खान-पान परंपरा का एक अहम हिस्सा है। पारंपरिक मिठाइयों और स्थानीय पेय में मोलासेस का उपयोग उस सांस्कृतिक और आर्थिक मेल को दिखाता है, जो मिजोरम की कृषि-आधारित जीवन शैली की पहचान है।
कृषि विरासत:
मिजोरम में गन्ने की खेती और मोलासेस का उत्पादन कई दशक पुराना है। समय के साथ, राज्य ने सरकारी पहलों और किसान सहकारी समितियों की मदद से एक मजबूत कृषि आधार विकसित किया है। गन्ने की खेती की यह लंबी परंपरा मिजोरम की समृद्ध कृषि विरासत और भारत के चीनी और इथेनॉल उद्योगों में उसके योगदान को दर्शाती है।
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