'खुद को बड़ा तुर्रम खां समझते हो' सुना होगा आपने लेकिन क्या आप जानते हैं असली तुर्रम खां कौन है ?

Dec 30, 2022, 12:32 IST

अक्सर आपने सुना होगा 'ज्यादा तुर्रम खां मत बनो'. 'खुद को तुर्रम खां समझते हो'. जिसके नाम पर इतने मुहावरे या डायलॉग बनाए गए हैं आखिर तुर्रम खां है कौन? आइये इस लेख के माध्यम से असली तुर्रम खां के बारे में जानते हैं.

Turram Khan
Turram Khan

तुर्रम खां का असली नाम तुर्रेबाज़ खान (Turrebaz Khan) था. तुर्रेबाज़ खान दक्कन के इतिहास में एक वीर व्यक्ति थे, जो अपनी वीरता और साहस के लिए जाने जाते थे. हैदराबाद लोककथाओं में एक सकारात्मक कठबोली है - "तुर्रम खां". जब आप किसी को ऐसा कहते हैं, तो आप उसे हीरो कह रहे हैं. यह तुर्रेबाज़ खान के नाम से आता है. वह एक क्रांतिकारी व्यक्ति स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने हैदराबाद के चौथे निजाम और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था.

तुर्रम खां 1857 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई के जबाज़ हीरो थे. ऐसा कहा जाता है कि जिस आजादी की लड़ाई की शुरुआत मंगल पांडे ने बैरकपुर में की थी उसका नेतृत्व तुर्रम खां ने हैदराबाद में किया था.

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में तुर्रम खां ने हैदराबाद का नेतृत्व किया था 

1857 के स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत मंगल पांडे ने बैरकपुर से की थी. यह संग्राम की चिंगारी अन्य इलाकों जैसे दानापुर, आरा , इलाहाबाद, मेरठ, दिल्ली , झांसी और भारत के कई जगहों पर फैल गई थी. इसी क्रम में हैदराबाद में अंग्रेजों के एक जमादार जिसका नाम चीदा खान था ने सिपाहियों के साथ दिल्ली कूच करने से इनकार कर दिया था. 

तब उसे निजाम के मंत्री ने धोखे से कैद कर लिया था और अंग्रेजों को सौप दिया और फिर उन्होंने उसे रेजीडेंसी हाउस में कैद कर दिया था. उसी को छुड़ाने के लिए तुर्रम खां अंग्रेजों पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो गए थे. जुलाई 1857 की रात को तुर्रम खां ने 500 स्वतंत्रता सेनानियों के साथ रेजीडेंसी हाउस पर हमला कर दिया.

तुर्रम खां ने रात में हमला क्यों किया था?

तुर्रम खां ने रात में हमला इसलिए किया था क्योंकि उन्हें लगता था कि रात के हमले से अँगरेज़ परेशान और हैरान हो जाएँगे और उन्हें जीत हासिल हो जाएगी. परन्तु उनकी इस योजना को एक गद्दार ने फेल कर दिया. निजाम के वजीर सालारजंग ने गद्दारी की और अंग्रेजों को पहले ही सूचना दे दी. इस प्रकार अँगरेज़ पहले से ही तुर्रम खां के हमले के लिए तैयार थे.  

अंग्रेजों के पास बंदूकें और तोपें थी लेकिंग तुर्रम खां और उनके साथियों के पास केवल तलवारे फिर भी तुर्रम खां ने हार नहीं मानी और वे और उनके साथी अंग्रेजों पर टूट पड़े. लेकिन तुर्रम खां और उनके साथी अंग्रेजों का वीरता से सामना करते रहे और हार नहीं मानी. अंग्रेजों की पूरी कोशिश के बावजूद वे तुर्रम खां को कैद नहीं कर पाए.

तुर्रम खां की हत्या कैसे हुई?

कुछ दिनों बाद तालुकदार मिर्जा कुर्बान अली बेग ने तूपरण (Toopran) के जंगलों में तुर्रम खां को पकड़ लिया था. इसके बाद तुर्रेबाज़ खान को कैद में रखा गया, फिर गोली मार दी गई, और फिर उसके शरीर को शहर के केंद्र में लटका दिया गया ताकि आगे विद्रोह को रोका जा सके.

जब आप 1857 के बारे में पढ़ते हैं, तो दिल्ली, मेरठ, लखनऊ, झांसी और मैसूर जैसी जगहों का ज़िक्र आता है, लेकिन हैदराबाद का नहीं. ऐसा इसलिए है क्योंकि निजाम अंग्रेजों के सहयोगी थे, और लड़ने का कोई कारण नहीं था. लेकिन तुर्रेबाज़ खान के साथ, एक संक्षिप्त अवधि आई जब हैदराबाद संघर्ष, विद्रोह में शामिल हो गया.

आज भी लोग तुर्रम खां की बहादुरी के कारण उनको याद करते हैं और उनके नाम के अक्सर मुहावरे और  डायलॉग बोलते हैं.

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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