SC Latest Judgement: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए दृष्टिबाधित व्यक्तियों को न्यायिक सेवा में शामिल होने की अनुमति दी. अदालत ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम (6A) को रद्द करते हुए कहा कि किसी भी उम्मीदवार को उसकी दिव्यांगता (Disabilities) के आधार पर अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता. यह फैसला समानता और समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कई याचिकाओं पर फैसला सुनाया, जिनमें कुछ राज्यों की न्यायिक सेवाओं में ऐसे उम्मीदवारों को आरक्षण न देने से जुड़े एक स्वतः संज्ञान मामले पर भी सुनवाई शामिल थी. चलिये पढ़तें है सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले के बारें में.
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भेदभाव नहीं, समान अवसर जरूरी –SC
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में दृष्टिबाधित व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में शामिल होने की अनुमति दे दी है. देश की शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी उम्मीदवार को उसकी दिव्यांगता के आधार पर न्यायिक सेवा में भर्ती से वंचित नहीं किया जा सकता. यह फैसला मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम (6A) को रद्द करते हुए आया, जिसमें दृष्टिबाधित लोगों को चयन प्रक्रिया में भाग लेने से रोका गया था.
MP के नियम को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द:
मध्य प्रदेश की इस नीति को एक महिला द्वारा चुनौती दी गई थी, जिनके दृष्टिबाधित पुत्र ने न्यायिक सेवा में शामिल होने की इच्छा जताई थी लेकिन चयन प्रक्रिया में भाग नहीं ले सके. उन्होंने इस मुद्दे पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखा, जिसके बाद यह मामला जनहित याचिका के रूप में सुप्रीम कोर्ट में आया.
दिव्यांग व्यक्तियों क लिए क्या है सुविधाएं:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी प्रकार का अप्रत्यक्ष भेदभाव, जो दिव्यांग व्यक्तियों को बाहर करने का कारण बनता है, रोका जाना चाहिए. इसके अलावा, दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की जानी चाहिए, ताकि वे अपनी योग्यता के आधार पर न्यायिक सेवाओं में प्रवेश पा सकें.
पहले भी हो चुके हैं दृष्टिबाधित जजों की नियुक्ति:
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि दृष्टिबाधित व्यक्ति भी न्यायाधीश बन सकते हैं, यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय के भी. इसी आधार पर तमिलनाडु और राजस्थान में दृष्टिबाधित जजों की नियुक्ति हो चुकी है. 2009 में, तमिलनाडु में टी. चक्करवर्ती पहले दृष्टिबाधित न्यायिक अधिकारी बने थे.
समानता की ओर एक बड़ा कदम:
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से न्यायिक सेवाओं में समावेशन (इनक्लूजन) को बढ़ावा मिलेगा और दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को भी समान अवसर मिल सकेगा. यह फैसला दिव्यांग अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत उनके अधिकारों को और मजबूत करता है.
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STORY | Visually impaired persons cannot be denied opportunity to join judicial services: SC
— Press Trust of India (@PTI_News) March 3, 2025
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