आखिर जम्मू - कश्मीर के लोगों की भारत सरकार से क्या मांगें हैं?

Aug 5, 2019, 12:35 IST

आज 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू&कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को ख़त्म कर दिया है.अब जम्मू&कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश होगा हालाँकि वहां पर दिल्ली और पुदुचेरी की तरह राज्य की विधान सभा होगी. आइये जानते हैं कि कश्मीर के लोग भारत सरकार से क्या चाहते हैं?

stone pelters in kashmir
stone pelters in kashmir

कश्मीर विवाद की ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि:
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मुद्दा भारत की आजादी के समय से ही चर्चा में रहा है. ब्रिटिश शासन की समाप्ति के साथ ही जम्मू एवं कश्मीर राज्य भी 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था. यहाँ के राजा हरि सिंह ने फैसला किया कि वे भारत या पाकिस्तान किसी भी देश में शामिल नही होंगे और एक स्वतंत्र राष्ट्र की तरह रहेंगे.

महाराजा का यह फैसला उस समय गलत सिद्ध हो गया जब 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थित ‘आजाद कश्मीर सेना’ ने राज्य के पश्चिमी भाग पर आक्रमण कर दिया उन्होंने दुकानों के लूटपाट शुरू कर दी घरों में चोरी और आगजनी करने के साथ ही महिलाओं को भी अगवा कर लिया और इसी तरह की तबाही मचाते हुए पूर्वी कश्मीर की तरफ बढ़ रहे थे तो महाराजा हरीसिंह ने जवाहरलाल नेहरु से सैन्य मदद मांगी और फिर 26 अक्टूबर,1947 को दोनों देशों के बीच विलय का समझौता हुआ. इस समझौते के तहत 3 विषयों; रक्षा, विदेशी मामले और संचार को भारत के हवाले कर दिया गया था.

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इस समझौते के बाद भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया था, जिसमे स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि जम्मू कश्मीर से सम्बंधित राज्य उपबंध केवल अस्थायी है स्थायी नही.

विवाद की मूल जड़ यह है कि जम्मू & कश्मीर के शासक अनुच्छेद 370 को स्थायी रूप देना चाहते हैं ताकि उन्हें मिला विशेष राज्य का दर्जा बरक़रार रहे; इसलिए 26 जून 2000 को एक ऐतिहासिक घटनाक्रम में जम्मू & कश्मीर विधान सभा ने ’राज्य स्वायतता समिति’ की सिफारिसों को स्वीकार कर लिया था. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में जम्मू & कश्मीर राज्य को और स्वायतता देने की बात कही थी.

सभी कश्मीरी इस समिति की रिपोर्ट को लागू करने के लिए बहुत लम्बे समय से आन्दोलन कर रहे हैं. आइये जानते हैं कि इस समिति की मुख्य मांगे क्या थी:

1. संविधान के अनुच्छेद 370 में उल्लिखित शब्द “अस्थायी” की जगह “स्थायी” लिखा जाये ताकि जम्मू & कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा हमेशा के लिए पक्का हो जाये.

2. अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) को जम्मू & कश्मीर राज्य पर लागू नही किया जाये.

3. राज्य पर बाह्य आक्रमण या आंतरिक आपातकाल की दशा में जम्मू & कश्मीर राज्य विधानसभा का निर्णय ही अंतिम निर्णय हो.

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4. भारत के निर्वाचन आयोग की जम्मू & कश्मीर राज्य में कोई भूमिका न हो.

5. जम्मू & कश्मीर राज्य में अखिल भारतीय सेवाओं जैसे IAS, IPS और IFS का कोई स्थान न हो.

6. भारतीय संविधान में जम्मू & कश्मीर के लिए मूल अधिकारों का एक अलग अध्याय हो.

7. राज्य के राज्यपाल को सदर-ए–रियासत और मुख्यमंत्री को वजीर–ए-आजम बुलाया जाये.

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(कश्मीर के भूतपूर्व राजा हरी सिंह)

8. जम्मू & कश्मीर पर संसद और राष्ट्रपति की भूमिका को नाममात्र का कर दिया जाये.

9. राज्य में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई विशेष प्रावधान न हो. यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि जम्मू & कश्मीर के मुसलमानों को अल्पसंख्यक माना जाता है जिसके तहत उन्हें बहुत सी सुविधाएँ भारत सरकार द्वारा दी जातीं हैं.

10. भारत के उच्चतम न्यायालय में जम्मू & कश्मीर राज्य से सम्बंधित कोई विशेष सुनवाई न हो.

11. राज्य उच्च न्यायालय के दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों के निर्णय के विरुद्ध सुनवाई करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय को न हो.

12. भारतीय संसद को जम्मू & कश्मीर राज्य के संविधान और प्रक्रिया में संशोधन का अधिकार न हो.

13. अंतरराज्जीय नदियों एवं नदी घाटियों के सम्बन्ध में केंद्र के निर्णय जम्मू & कश्मीर पर लागू न हो.

जब इन सभी सिफारिशों के भारत सरकार के मंत्रिमंडल के पास 14 जुलाई,2000 को अनुमोदन के लिए भेजा गया तो केंद्र सरकार ने समिति की सिफारिसों को यह कहकर मानने से इंकार कर दिया कि ये सिफरिसें लोगों की सहिष्णुता और देश की एकता एवं अखंडता के सिद्धांत के बिलकुल विपरीत हैं.केंद्र द्वारा इन सिफारिसों को मानने से मना कर देने के कारण इस प्रदेश में अलगाववादी नेताओं द्वारा युवाओं को दिशा भ्रमित कर भारत विरोधी गतिविधियों, आतंकबाद और पत्थरबाजी जैसी गतिविधियों में पैसों का लालच देकर उकसाया जा रहा है.

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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