बीते दिनों जून, 2025 को ईरानी ठिकानों पर हुए अमेरिकी हवाई हमलों ने मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव को लेकर दुनिया भर में डर पैदा कर दिया था। अब कई विशेषज्ञों की नजरें होरमुज जलडमरूमध्य पर टिकी हैं। यह एक संकरा समुद्री रास्ता है, लेकिन वैश्विक तेल परिवहन के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। क्या आपने कभी सोचा है कि पानी का यह संकरा रास्ता भू-राजनीतिक रूप से इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है? और यह वैश्विक शक्तियों के लिए टकराव का एक बड़ा केंद्र कैसे बन गया है?
आइए, इस लेख में होरमुज जलडमरूमध्य के बारे में विस्तार से जानते हैं।
होरमुज जलडमरूमध्य के बारे में
होरमुज जलडमरूमध्य ओमान और ईरान के बीच स्थित है। यह फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच एक जोड़ने का काम करता है, जो आगे चलकर अरब सागर में मिलता है। हालांकि, अपने सबसे संकरे हिस्से में यह सिर्फ 33 किलोमीटर चौड़ा है, लेकिन व्यापारिक जहाज इसके अंदर और भी संकरे और नियंत्रित रास्तों का पालन करते हैं।
यह छोटा और संकरा जलमार्ग दुनिया के लगभग 20% तेल व्यापार को संभालता है। यह इसे दुनिया का सबसे महत्त्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्ति मार्ग बनाता है। समुद्री विश्लेषक डेविड ब्रूस्टर के अनुसार, अकेले 2011 में इस जलडमरूमध्य से गुजरने वाले टैंकरों ने दुनिया के एक-तिहाई से ज्यादा समुद्री तेल का परिवहन किया। भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश इस पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं।
2009 और 2013 के बीच, होरमुज से स्वेज नहर और मलक्का जलडमरूमध्य सहित किसी भी अन्य वैश्विक मार्ग से ज्यादा तेल का परिवहन हुआ।
होरमुज जलडमरूमध्य का इतिहास क्या है?
होरमुज जलडमरूमध्य के लिए सदियों का व्यापार और सत्ता संघर्ष:
तेल के कारण महत्त्वपूर्ण बनने से बहुत पहले होरमुज जलडमरूमध्य व्यापार और साम्राज्य निर्माण के लिए एक मुख्य मार्ग था। 10वीं से 15वीं सदी तक यह क्षेत्र इस्लामी दुनिया के लिए एक व्यस्त केंद्र बन गया। आसपास के बंदरगाहों - जैसे मक्का और बहरीन से पूर्वी अफ्रीका, भारत और चीन के बाजारों में इत्र, कीमती कपड़े, रेशम, हथियार और सूखे मेवे जैसी लक्जरी चीजें भेजी जाती थीं। बदले में वहां से चीनी मिट्टी के बर्तन, सूती कपड़े, कीमती पत्थर और हाथी दांत जैसी चीजें आती थीं।
इसके महत्त्व को समझते हुए पुर्तगालियों ने 1515 में होरमुज पर कब्जा कर लिया। वे मसाला मार्गों पर अपना दबदबा बनाना चाहते थे और मुस्लिम जहाजों को भारत पहुंचने से रोकना चाहते थे।
गोवा में केंद्रित उनके समुद्री साम्राज्य ने अपना अधिकार बनाए रखने के लिए नौसैनिक नाकाबंदी का इस्तेमाल किया। यह तब तक चला जब तक 1622 में एक संयुक्त एंग्लो-फारसी प्रयास ने उन्हें बाहर नहीं कर दिया। इसके साथ ही खाड़ी में एक सदी से ज्यादा समय तक चले पुर्तगाली प्रभुत्व का अंत हो गया।
भारत के लिए होरमुज जलडमरूमध्य कितना महत्त्वपूर्ण है?
भारत के लिए होरमुज जलडमरूमध्य सिर्फ एक दूर का जलमार्ग नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा आपूर्ति का एक अहम जरिया है। भारत अपने तेल का लगभग 70% आयात करता है, जिसका बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों से आता है। ऐसे में इस जलडमरूमध्य में किसी भी तरह की रुकावट भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है।
कुछ विश्लेषकों ने भारत की इस हालत को “होरमुज दुविधा” कहा है। यह चीन की “मलक्का दुविधा” की तरह ही है, क्योंकि दोनों देश ऊर्जा आयात के लिए संकरे समुद्री मार्गों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। होरमुज के पास स्थित पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर में चीन की भागीदारी ने भी चिंताएं बढ़ा दी हैं। इससे इस क्षेत्र में चीनी नौसेना की मौजूदगी बढ़ने का डर पैदा हो गया है।
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