कृत्रिम वर्षा क्या होती है और कैसे करायी जाती है?

Nov 16, 2017, 11:24 IST

भारत में कई बार पर्याप्त वर्षा ना होने के कारण फसलें अक्सर चौपट हो जाती है इसलिए यहाँ के किसान कर्ज के तले दबे हुए हैं. वैज्ञानिकों ने बारिश की अनिश्चिता या कम बारिश की समस्या से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा का उपाय खोजा है. कृत्रिम वर्षा कराने के लिए कृत्रिम बादल बनाये जाते हैं जिन पर सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ़ जैसे ठंठा करने वाले रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिससे कृत्रिम वर्षा होती है.

भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की अर्थव्यवस्था पूर्णतः कृषि पर निर्भर करती है. यहाँ के किसान कर्ज के तले दबे हुए हैं क्योंकि बारिश नही होने के कारण अच्छी फसल नही होती है. इसलिए वैज्ञानिकों ने बारिश की अनिश्चिता या कम बारिश की समस्या से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा के बारे में सोचा है. कृत्रिम वर्षा करने के लिए कृत्रिम बादल बनाये जाते हैं जिन पर सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ़ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिससे कृत्रिम वर्षा होती है.

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कृत्रिम वर्षा क्या है?
कृत्रिम वर्षा मानव निर्मित गतिविधियों के माध्यम से बादलों को बनाने और फिर उनसे वर्षा कराने की क्रिया को कहते हैं. कृत्रिम वर्षा को क्लाउड-सीडिंग भी कहा जाता है. क्लाउड-सीडिंग का पहला प्रदर्शन जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा फरवरी 1947 में बाथुर्स्ट, ऑस्ट्रेलिया में किया गया था.
साधारणतः वर्षा तब होती है जब सूरज की गर्मी से हवा गर्म होकर हल्की हो जाती है और ऊपर की ओर उठती है, ऊपर उठी हुई हवा का दबाव कम हो जाता है और आसमान में एक ऊंचाई पर पहुँचने के बाद वह ठंडी हो जाती है। जब इस हवा में और सघनता बढ़ जाती है तो वर्षा की बूंदे इतनी बड़ी हो जातीं हैं कि वे अब और देर तक हवा में लटकी नही रह सकतीं हैं, तो वे बारिश के रूप में नीचे गिरने लगती हैं. इसे ही सामान्य वर्षा कहते हैं. लेकिन कृत्रिम वर्षा में इस प्रकार की परिस्तिथियाँ मानव द्वारा पैदा की जातीं हैं.

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कृत्रिम वर्षा कैसे करायी जाती है?
कृत्रिम वर्षा से मतलब एक विशेष प्रक्रिया द्वारा बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से बदलाव लाना होता है, जो वातावरण को बारिश के अनुकूल बनाता है. बादलों के बदलाव की यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है.
कृत्रिम वर्षा कराने के लिए प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी की जाती है.
पहला चरण:
पहले चरण में रसायनों का इस्तेमाल करके वांछित इलाक़े के ऊपर वायु के द्रव्यमान को ऊपर की तरफ़ भेजा जाता है जिससे वे वर्षा के बादल बना सकें. इस प्रक्रिया में कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक और यूरिया के यौगिक और यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का प्रयोग किया जाता है. ये यौगिक हवा से जल वाष्प को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं.
दूसरा चरण:
इस चरण में बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, सूखी बर्फ़ और कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग करके बढ़ाया जाता है.
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तीसरा चरण:
ऊपर बताये गए पहले दो चरण बारिश योग्य बादलों के निर्माण से जुड़े हैं. तीसरे चरण की प्रक्रिया तब की जाती है जब या तो बादल पहले से बने हुए हों या मनुष्य द्वारा बनाये गए हों. इस चरण में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ़ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का बादलों में छिडकाव किया जाता है, इससे बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और सम्पूर्ण बादल बर्फीले स्वरुप (ice crystal) में बदल जाते हैं और जब वे इतने भारी हो जाते हैं कि और कुछ देर तक आसमान में लटके नही रह सकते हैं तो बारिश के रूप में बरसने लगते हैं. सिल्वर आयोडाइड को निर्धारित बादलों में प्रत्यारोपित करने के लिए हवाई जहाज, विस्फोटक रौकेट्स (Explosive Rockets) या गुब्बारे का प्रयोग किया जाता है. इस तकनीक को 1945 में विकसित किया गया था और आज लगभग 40 देशों में इसका प्रयोग हो रहा है. कृत्रिम वर्षा कराने के लिए इसी प्रक्रिया का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है.

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बादलों में केमिकल को कैसे छिड़का जाता है?
हवा के जरिये क्लाउड-सीडिंग करने के लिए आम तौर पर विमान की मदद ली जाती है. विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल उच्च दाब पर भरा होता है. लक्षित क्षेत्र में विमान हवा की उल्टी दिशा में चलाया जाता है ताकि घोल ज्यादा क्षेत्र में फैले. विमान के वांछित (expected) बादल के पास पहुँचते ही बर्नर चालू कर दिये जाते हैं.

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Imgae source:Kaleidoscope
यहाँ पर यह बात बताना भी जरूरी है कि यदि आसमान में बादल पहले से मौजूद हों तो सीधे तीसरे चरण की प्रक्रिया (सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ़ छिड़ककर) अपनाकर बारिश करायी जा सकती है. जिस क्षेत्र में बारिश की जानी है, वहां राडार पर बादल दिखाई देने पर विमानों को सीडिंग के लिए भेजा जाता है, ताकि हवाओं के कारण बादल आगे न बढ़ जायें.  
हालांकि कृत्रिम वर्षा कराना एक खर्चीला और लम्बी प्रक्रिया से गुजरने वाला काम है लेकिन कुछ देशों ने इसकी तकनीकी में इतनी वृद्धि कर ली है कि उनकी लागत बहुत कम हो गयी है जैसे अमरीका में एक टन वर्षा का पानी बनाने में 1.3 सैंट का ख़र्च आता है जबकि ऑस्ट्रेलिया में यह मात्र दशमलव 3 सैंट है जो कि काफी सस्ता है. चीन भी कृत्रिम वर्षा कराने के बहुत दक्षता हासिल कर चुका है.
तो इस प्रकार हमने देखा कि किस प्रकार मनुष्य ने प्रकृति के बनाये हुए नियमों को को भी चुनौती दे दी है. अब मनुष्य कृत्रिम वर्षा से लेकर कृत्रिम दिल, कृत्रिम खून बनाने में भी सफल हो गया है. लेकिन हर विकास की अपनी एक सीमा होती है, इसी कारण कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि कृत्रिम वर्षा तकनीक में प्रयोग होने वाले रसायन पानी और मिट्टी को प्रदूषित कर सकते हैं जो कि आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरनाक हो सकते हैं.
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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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