कुषाण, यूची और युएझ़ी नामक उन पांच जनजातियों में से एक थे जिनका संबंध चाइना से था। वे 170 ईसा पूर्व में क्ज़ियांग्नू के द्वारा बाहर निकाले जाने के बाद भारत की तरफ आये थे। सर्वाधिक प्रमाणिकता के आधार पर कुषाण वंश को चीन से आया हुआ माना गया है। कुषाण राजवंश में महत्वपूर्ण राजाओं की सूची में कुजुलकडफिशस, विमातक्तु, सदशाकन, विमकडफिशस, कनिष्क प्रथम, वासिस्कऔर कनिष्क द्वितीय थे।
कुजुलकडफाइसिस
यह भारत का पहला शासक था जिसने हिन्दुकुश पर्वत शैली को पार किया और वहां तक अपने साम्राज्य को स्थापित किया। उसने अपने आप को धर्म-थिदा और सचधर्मथिदा की उपाधि प्रदान की उसकी इस उपाधि को प्राप्त करने से ऐसा लगता है कि वह बौद्ध और शैव दोनों धर्मों में विश्वास करता था। मथुरा में इस शासक के तांबे के कुछ सिक्के प्राप्त हुए हैं।
विमकडफिशस
राबतक शिलालेख अफगानिस्तान में वर्ष 1933 में पाया गया था.इस अभिलेख में यह जानकारी मिलती है की विम कद फिशस विम ताकतों का पुत्र और कनिष्क का पिता था। यह अभिलेख एक पत्थर पर बक्ट्रियन भाषा और ग्रीक लिपि में लिखी गयी है। विम कड फिशस ने सर्वाधिक मात्र में सोने के सिक्कों को जारी किया था। इसके बारे में यह भी उल्लेख मिलता है की यह भारत का पहला शासक था जिसने सोने के सिक्कों को जरी किया। इसका विशाल साम्राज्य एक तरफ चीन के साम्राज्य को लगभग छूता था तो दूसरी तरफ उसकी सीमाएं दक्षिण के सातवाहन राज्य को छूती हुई थी।
कनिष्क प्रथम
यह कुषाण साम्राज्य का सबसे महत्वपूर्ण शासक था जोकि अपने विशाल साम्राज्य के लिए जाना जाता है। उसके साम्राज्य के प्रमुख राजधानी पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) थी। कुषाण साम्राज्य उसके अधीन अपने चरम पर पहुंच गया। कनिष्क ने अपने राज्यारोहण के समय से एक नया संवत प्रारम्भ किया, जो शक-संवत के नाम से जाना जाता है। उसके दरबार में वसुमित्र, अश्वघोष, नागार्जुन, पार्श्व, चरक, संघरक्ष, और माठर जैसे विख्यात विद्धानों के अतिरिक्त अनेक कवि और कलाकार भी थे। इसने अपने साम्राज्य को कश्मीर,मथुरा ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान तक विस्तार दिया। इसका पाटलिपुत्र के साथ एक संघर्ष भी हुआ था जिसके परिणामस्वरूप यह अश्वघोष, (बौद्ध भिक्षु) नामक एक विद्वान को प्राप्त किया और पुरुषपुर लाया। इसने हान साम्राज्य के शासक हो-ती के चीनी जनरल के उपर विजय प्राप्त की। इसने अपने साम्राज्य में बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और कश्मीर के कुंडलवन में चौथी बौद्ध परिषद को आयोजित किया। कनिष्क के समय में बौद्ध धर्म हीनयान और महायान में विभाजित हो गया था।
कला और संस्कृति
कला की दो परम्पराओं, मथुरा शैली और गांधार शैली का इस युग में काफी विकास हुआ।
हेलेनिस्टिक यूनानियों की सांस्कृतिक कला का प्रभाव इन कला शैलियों के उपर आसानी से देखा जा सकता है।
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