तुर्की के राष्ट्रपति की भारत यात्रा
भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों विशेष रूप से आर्थिक संबंधों को नया आयाम देने के उद्देश्य से तुर्की के राष्ट्रपति अब्दुल्ला गुल ने 7-11 फरवरी, 2010 को भारत की यात्रा की। पिछले 15 वर्र्षों के अंतराल के बाद तुर्की के राष्ट्रपति की यह पहली भारत यात्रा थी।
भारत की भूमिका को स्वीकारा
भारत ने तुर्की के राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान इस्तांबुल सम्मेलन में न बुलाए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई। गौरतलब है कि अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के दबाव में भारत को आमंत्रित नहीं किया गया था। भारत द्वारा कड़ी आपत्ति जताए जाने पर तुर्की ने भरोसा दिलाया कि आने वाले वक्त में भारत को अवश्य बुलाया जाएगा।
आतंकवाद पर भारत के रुख को समर्थन
तुर्की इस्लामी देशों के संगठन का महत्वपूर्ण सदस्य है और भारत यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के आतंकवाद संबंधी साझा घोषणापत्र पर सहमति व्यक्त की जिसे भारत की बड़ी सफलता माना जा सकता है। पाकिस्तान का नाम लिए बिना इस घोषणापत्र में उन देशों की स्पष्ट निंदा की गई, जो आतंकवाद को सुरक्षित ठिकाना प्रदान करते हैं। इस बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ओआईसी का सदस्य होने की वजह से तुर्की को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरुद्ध साझा संकल्प में भागीदार बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र में लाई जा रही कॉम्प्रिहेंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म (सीसीआईटी) की आवश्यकता को तुर्की ने पहली बार साझा घोषणापत्र में स्वीकार किया।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों के परस्पर सहयोग के लिए भी एक साझा घोषणापत्र दोनों द्वारा जारी किया गया। कुछ अन्य क्षेत्रों में भी सहयोग की संभावनाओं को तलाशा गया जिनमें सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, अंतरिक्ष विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी व पर्यावरण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र शामिल थे। मुक्त व्यापार समझौते पर भी दोनों पक्षों ने संभावनाओं को तलाशा।
भारत-तुर्की संबंध
देश की आजादी के तुरंत बाद भारत ने तुर्की के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित कर लिए थे। दोनों ही देश विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं। इजरायल-फिलीस्तीन विवाद को सुलझाने में दोनों ही देशों की भूमिका को अहम माना जाता है। हालांकि तुर्की के पाकिस्तान के साथ रणनीतिक संबंध होने की वजह से कभी-कभी दोनों देशों के संबंधों में दरार आ जाती है। पाकिस्तान को लेकर तुर्की का कभी-कभी भारत से तनाव हो जाता है। कश्मीर के मुद्दे पर भी तुर्की का रवैया भारत के लिए ठीक नहीं है। यद्यपि हाल के वर्र्षों में राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए दोनों देशों ने राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य क्षेत्रों में बेहतर संबंधों की स्थापना की है। हालांकि दोनों देशों के बीच व्यापार को अभी भी संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। तुर्की इस्लामिक देशों के संगठन का एक सक्रिय और महत्वपूर्ण सदस्य है, जिसकी वजह से भारत उसके साथ संबंधों को विशेष रूप से तवज्जो देता है। तुर्की के साथ संबंधों में प्रागढ़ता भारत के लिए एक बहुत बड़ी सफलता है। फिर भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें अभी भी तरक्की की काफी संभावनाएं हैं।
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