परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन
12 अप्रैल, 2010 को अमेरिका, वाशिंगटन में परमाणु सुरक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में कुल 47 देशों के शीर्ष नेताओं ने भागीदारी की। परमाणु आतंकवाद जैसे गंभीर मसले से जुड़ा होने के कारण यह सम्मेलन काफी महत्वपूर्ण था। परमाणु आतंकवाद के मूल मुद्दे के अतिरिक्त परमाणु अप्रसार तथा ईरान और उत्तरी कोरिया का परमाणु कार्यक्रम का मामला इस सम्मेलन के अन्य प्रमुख मुद्दे थे। सम्मेलन में भारत का नेतृत्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने किया।
सुरक्षा सम्मेलन और परमाणु आतंकवाद का खतरा
इस सम्मेलन का मुख्य फोकस परमाणु सामग्री व अवैध तस्करी के खतरों व आतंकवादियों द्वारा परमाणु सामग्री खरीदे जाने की संभावनाओं पर विचार करना था। साथ ही इसके खिलाफ पुख्ता कार्ययोजना तैयार करना था। सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बिना पाकिस्तान का नाम लिए हुए कहा कि वहां से परमाणु तकनीक के लीक होने का खतरा है। इसे भारत की सुरक्षा के लिए उन्होंने विशेष खतरा बताया। इस बारे में उन्होंने भारत के निर्विवाद रिकॉर्ड को भी उन्होंने प्रस्तुत किया।
परमाणु ऊर्जा साझेदारी केद्र
परमाणु सम्मेलन के दौरान परमाणु तकनीक के शान्तिपूर्ण इस्तेमाल और इनकी सुरक्षा के लिए वैश्विक पहल करते हुए एक विश्व परमाणु ऊर्जा साझेदारी केंद्र (Global Center for Nuclear Energy Partnership) खोलने की घोषणा सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने की। आधुनिक तकनीक से लैस इस संस्थान में परमाणु तकनीक और विशेषज्ञता आधारित रिसर्च व स्टडी के लिए चार अलग-अलग स्कूल परमाणु सुरक्षा, विकिरण सुरक्षा, रेडियोआइसोटोप्स व विकिरण तकनीक और उन्नत परमाणु ऊर्जा अध्ययन प्रणाली के लिए होंगे। इन केद्रों में सुरक्षित परमाणु तकनीक और क्लीन एनर्जी के लिए रिसर्च व स्टडी की जाएगी। इस बारे में मनमोहन सिंह को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से भरपूर समर्थन मिला।
सहयोग का संकल्प
परमाणु आतंकवाद का खतरा अब कोई कल्पना की बात नहीं रह गई है। आज दुनिया के कई ऐसे देश हैं जो चोरी-छिपे तरीके से इस तकनीक को हासिल कर चुके हैं और इनके आतंकवादियों के हाथ में पडऩे का पूरा खतरा है। इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए भारत सहित 47 देशों ने परमाणु तकनीक या सूचना के गलत हाथों में पडऩे से रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रभावी सहयोग का संकल्प इस सम्मेलने के दौरान लिया गया। सम्मेलन के समापन के अवसर पर एक घोषणापत्र भी जारी किया जिसके साथ कार्ययोजना भी जारी की गई।
घोषणापत्र में सभी संवेदनशील परमाणु सामग्रियों की सुरक्षा तथा परमाणु हथियारों के अल कायदा जैसे संगठनों के हाथों में पडऩे से रोकने के लिए अगले चार वर्र्षों के भीतर फूल प्रूफ सिक्योरिटी करने की बात कही गई। साथ ही यह भी कहा गया कि सभी तरह की न्यूक्लियर सामग्री व संबंधित तकनीक की सुरक्षा करना संबंधित राष्ट्रों का मौलिक दायित्व है और न्यूक्लियर सिक्योरिटी के लिए सभी देशों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए।
अगला परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन 2012 में दक्षिण कोरिया में आयोजित किया जाएगा।
सम्मेलन का महत्व
पिछले कुछ वर्र्षों में आतंकवादियों ने जिस तरह के हमले किए हैं उससे यह खतरा पैदा हो गया है कि परमाणु बम हासिल हो जाने की स्थिति में वे कहर बरपा कर सकते हैं। हाल ही में दुनिया भर में न्यूक्लियर सामग्री को चोरी किए जाने के कई प्रयास सामने आए हैं। इस बारे में अल कायदा के बारे में सबसे ज्यादा आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। इन आशंकाओं के चलते पूरा विश्व चिंताग्रस्त है और इसका पुख्ता समाधान ढूंढने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया।
यह सम्मेलन मात्र परमाणु सामग्री की चोरी तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसके एजेंडे में न्यूक्लियर आतंकवाद के खतरों में न्यूक्लियर प्रसार के अलावा न्यूक्लियर रिएक्टरों पर हमला, बम बनाने वाली सामग्री हासिल करना या बना बनाया बम चुराना जैसी समस्याओं से निपटना भी शामिल था।
आज पूरी दुनिया पाकिस्तान तथा उत्तरी कोरिया के द्वारा परमाणु सामग्री या बम बनाने की तकनीक आतंकवादी संगठनों तक पहुंच जाने को लेकर चिंतित है। पूर्व सोवियत संघ के कई गणराज्यों से काफी परमाणु सामग्री गायब हो चुकी है जो न केवल अमेरिका बल्कि यूरोप व भारत के लिए भी आने वाले वक्त में सिरदर्द साबित हो सकती है।
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