पर्यावरण प्रदूषण : अर्थ, प्रकार, प्रभाव, कारण तथा रोकने के उपाय

पर्यावरण के किसी भी घटक में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिससे जीव जगत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया, औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण आदि का महत्वपूर्ण योगदान है। पर्यावरणीय घटकों के आधार पर पर्यावरणीय प्रदूषण को भी ध्वनि, जल, वायु एवं मृदा प्रदूषण आदि में बाँटा जाता है |

Feb 19, 2016, 11:42 IST

सभी जीव अपनी वृद्धि एवं विकास तथा अपने जीवन चक्र को चलाने के लिए संतुलित पर्यावरण पर निर्भर करते हैं | संतुलित पर्यावरण से तात्पर्य एक ऐसे  पर्यावरण से है, जिसमें प्रत्येक घटक एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में उपस्थित होता है | परंतु कभी-कभी मानवीय या अन्य कारणों से पर्यावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा या तो आवश्यकता से बहुत अधिक बढ़ जाती है अथवा पर्यावरण में हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है। इस स्थिति में पर्यावरण दूषित हो जाता है तथा जीव समुदाय के लिए किसी न किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है। पर्यावरण में इस अनचाहे परिवर्तन को ही ‘पर्यावरणीय प्रदूषण’ कहते हैं।

प्रदूषण के प्रकार

पर्यावरणीय घटकों के आधार पर पर्यावरणीय प्रदूषण को भी मृदा, वायु, जल एवं ध्वनि प्रदूषण आदि में बाँटा जाता है -

मृदा प्रदूषण

मृदा के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में कोई ऐसा अवांछनीय परिवर्तन जिसका प्रभाव मानव पोषण तथा फसल उत्पादन व उत्पादकता पर पड़े और जिससे मृदा की गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो, 'मृदा प्रदूषण' कहलाता है। कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, कीटनाशक पदार्थ, रासायनिक उर्वरक, खरपतवारनाशी पदार्थ, विषैली गैसें आदि प्रमुख मृदा प्रदूषक हैं |

मृदा प्रदूषण के प्रभाव

मृदा प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • मृदा प्रदूषण से मृदा के भौतिक एवं रासायनिक गुण प्रभावित होते हैं और मिट्टी की उत्पादन क्षमता पर प्रभाव पड़ता है
  • कहीं-कहीं लोग मल जल से खेतों की सिंचाई करते है। इससे मृदा में उपस्थित छिद्रों की संख्या दिनों-दिन घटती जाती है और बाद में एक स्थिति ऐसी आती है कि भूमि की प्राकृतिक मल जल उपचार क्षमता पूरी तरह नष्ट हो जाती है
  • जब मृदा में प्रदूषित पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है तो वे जल स्रोतों में पहुंचकर उनमें लवणों तथा अन्य हानिकारक तत्वों की सान्द्रता बढ़ा देते हैं, परिणाम स्वरूप ऐसे जल स्रोतो का जल पीने योग्य नहीं रहता

मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारण

मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-   

  • असतत कृषि गतिविधियाँ
  • औद्योगिक कचरा
  • लैंडफिल से होने वाला रिसाव
  • घरेलू कूड़ा-कचरा
  • खुली जगह पर कूड़ा फेंकना
  • पालीथीन की थैलियाँ, प्लास्टिक के डिब्बे
  • अनियंत्रित पशुचारण

मृदा प्रदूषण रोकने के उपाय

मृदा प्रदूषण रोकने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं-

  • कूड़े-करकट के संग्रहण, निष्कासन एवं निस्तारण की व्यवस्था
  • कल-कारखानों से निकलने वाले सीवेज जल को मृदा पर पहुंचने से पूर्व उपचारित करना
  • नगर पालिका और नगर निकायों द्वारा अपशिष्ट का उचित निस्तारण
  • रासायनिक उर्वरको का उपयोग अधिक न किया जाए।
  • कीटनाशी, कवकनाशी एवं शाकनाशी आदि का उपयोग कम से कम किया जाए
  • आम जनता को मृदा प्रदूषण के दुष्प्रभावो की जानकारी दी जाए

वायु प्रदूषण

वायु गैसों का मिश्रण है और ये वायु में एक निश्चित मात्रा में पायी जाती हैं | जब मानव जनित स्रोतो से उत्पन्न बाहरी तत्वों के वायु में मिलने से वायु की गुणवत्ता मे हृास हो जाता है और यह जीव-जंतुओ और पादपों के लिए हानिकारक हो जाती है, तो उसे वायु प्रदूषण कहते हैं और जिन कारकों से वायु प्रदूषित होती है उन्हें वायु प्रदूषक कहते है। कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड,सल्फर के ऑक्साइड,नाइट्रोजन के ऑक्साइड,क्लोरीन,सीसा,अमोनिया,कैडमियम,धूल आदि प्रमुख मानव जनित वायु प्रदूषक हैं |

वायु प्रदूषण के प्रभाव

वायु प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • प्रदूषित वायु के कारण सूर्य के प्रकाश की मात्रा मे कमी आ जाती है जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है
  • वायु प्रदूषण से मानव का श्वसन तंत्र प्रभावित होता है और उसमें दमा, ब्रोंकाइटिस, सिरदर्द, फेफड़े का कैंसर, खांसी, आंखों में जलन, गले का दर्द, निमोनिया, हृदय रोग, उल्टी और जुकाम आदि रोग हो सकते है
  • वायु प्रदूषित क्षेत्रों में जब बरसात होती है तो वर्षा में विभिन्न प्रकार की गैसें एवं विषैले पदार्थ घुलकर धरती पर आ जाते हैं,जिसे अम्ल वर्षा कहा जाता है

वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण

वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  • वाहनों में जीवाश्म ईंधन का दहन
  • फैक्टरियों से निकालने वाला धुआँ
  • रेफ्रीजरेटर, वातानुकूलन आदि द्वारा निकालने वाली गैसें
  • कृषि कार्यों मे कीटनाशी एवं जीवाणुनाशी दवा का उपयोग
  • फर्नीचरों पर की जाने वाली पॉलिश और स्प्रे पेंट बनाने में प्रयुक्त होने वाला विलायक
  • कूड़े कचरे का सड़ना एवं नालियों की सफाई न होना

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय निम्नलिखित हैं-

  • उद्योगों की चिमनियों की उंचाई अधिक हो
  • कोयले अथवा डीज़ल के इंजनों का उपयोग कम किया जाए
  • मोटर वाहनों के कारबुरेटर की सफाई कर कार्बन मोनो आक्साइड का उत्सर्जन कम किया जा सकता है
  • लेड रहित पेट्रोल का ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाए
  • पुराने वाहन के संचालन पर प्रतिबंध लगाया जाए
  • घरों में सौर ऊर्जा का उपयोग ज्यादा किया जाए
  • यूरो मानकों का कड़ाई से पालन कराया जाए
  • ओज़ोन परत को क्षतिग्रस्त करने वाले क्लोरोफ्लोरो कार्बन (फ्रियॉन-11 तथा फ्रियॉन-12) के उत्पादन एवं उपयोग पर कटौती की जानी चाहिए।
  • कारखानों की चिमनियों में बैग फिल्टर का उपयोग किया जाना चाहिए

जल प्रदूषण

जल में निहित बाहरी पदार्थ जब जल के स्वाभाविक गुणों को इस प्रकार परिवर्तित कर देते हैं कि वह मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो जाए या उसकी उपयोगिता कम हो जाए तो इसे जल प्रदूषण कहलाता है। जो वस्तुएं एवं पदार्थ जल की शुद्धता एवं गुणों को नष्ट करते हैं वे वायु प्रदूषक कहलाते हैं।

जल प्रदूषण के प्रभाव

जल प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • प्रदूषित जल में शैवाल तेजी से प्रस्फुटित होने लगता है और कुछ विशेष प्रकार के पौधों को छोड़कर शेष नष्ट हो जाते हैं
  • प्रदूषित जल में काई की अधिकता होने से सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुंच पाता जिससे जलीय पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया और उनकी वृद्धि प्रभावित होती है
  • दूषित जल को पीने से पशु-पक्षियों को तरह-तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं
  • प्रदूषित जल से मानव में पोलियो, हैजा, पेचिस, पीलिया, मियादी बुखार, वायरल फीवर आदि बीमारियां फैलती हैं

जल प्रदूषण के स्रोत

जल प्रदूषण के स्रोत अथवा कारण निम्नलिखित हैं-

  • घरेलू कूड़े-कचरे का जल में बहाया जाना अथवा फेंका जाना
  • वाहित मल
  • दोषपूर्ण कृषि पद्धतियों के कारण मृदाक्षरण
  • उर्वरकों के उपयोग में निरन्तर वृद्धि
  •  उद्योगों आदि द्वारा भारी मात्रा मे अपशिष्ट पदार्थ जल स्रोतों यथा नदियों एवं जलाशयों में बहाया जाना
  • समुद्र के किनारे स्थित तेल के कुएं में लीकेज हो जाने से होने वाला तेल प्रदूषण
  • मृत, जले, अधजले शवों को जल में बहाना, अस्थि विसर्जन करना, साबुन लगाकर नहाना एवं कपड़े धोना आदि

जल प्रदूषण रोकने के उपाय

जल प्रदूषण रोकने के उपाय निम्नलिखित हैं-

  • जल स्रोतों के पास गंदगी फैलाने, साबुन लगाकर नहाने तथा कपड़े धोने पर प्रतिबन्ध हो
  • पशुओं के नदियों, तालाबों आदि मे नहलाने पर प्रतिबन्ध
  • सभी प्रकार के अपशिष्टों तथा अपशिष्ट युक्त बहिःस्रावों को नदियों तालाबों तथा अन्य जलस्रोतों मे बहाने पर प्रतिबन्ध
  • औद्योगिक बहिःस्राव या अपशिष्ट का समुचित उपचार
  • नदियो मे शवों , अधजले शवों, राख तथा अधजली लकड़ी के बहाने पर प्रतिबन्ध
  • उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग आवश्यकता अनुसार ही हो 
  • प्रदूषित जल को प्राकृतिक जल स्रोतों में गिराने से पूर्व उसमें शैवाल की कुछ जातियों एवं जलकुम्भी के पौधों को उगाकर प्रदूषित जल को शुद्ध करना
  • ऐसी मछलियों को जलाशयो मे छोड़ा जाना चाहिए जो मच्छरों के अण्डे, लारवा एवं जलीय खरपतवार कार क्षरण करती है।
  • कछुओं को नदियो एवं जलाशयो मे छोड़ा जाना
  • जन जागरूकता को बढ़ावा देना

ध्वनि प्रदूषण

अवांछनीय अथवा उच्च तीव्रता वाली ध्वनि को शोर कहते हैं। वायुमंडल में अवांछनीय ध्वनि की मौजूदगी या शोर को ही 'ध्वनि प्रदूषण' कहा जाता है। शोर से मनुष्यों में अशान्ति तथा बेचैनी उत्पन्न होती है। ध्वनि की सामान्य मापन इकाई डेसिबल कहलाती है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • जिन मज़दूरों को अधिक शोर मे काम करना होता है वे हृदय रोग, शारीरिक शिथिलता, रक्तचाप आदि अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते है
  • विस्फोटों तथा सोनिक बमों की अचानक उच्च ध्वनि से गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो सकता है
  • लगातार शोर में रहने वाली महिलाओ के नवजात शिशुओं में विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं

ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख कारण

ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-        

  • मोटर वाहनों से उत्पन्न होने वाला शोर
  •  वायुयानो,मोटर वाहनों व रेलगाड़ियों तथा उनकी सीटी से होने वाला शोर
  • लाउडस्पीकरों एवं म्यूजिक सिस्टम से होने वाला शोर
  • कारखानों में मशीनों से होने वाला शोर

ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय

ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय निम्नलिखित हैं-

  • अधिक शोर उत्पन्न करने वाले वाहनो पर प्रतिबंध ।
  • मोटर के इंजनो तथा अन्य शोर उत्पन्न करने वाली मशीनो की संरचना में सुधार
  • उद्योगों को शहरी तथा आवासीय बस्तियों से बाहर स्थापित करना
  • उद्योगों के श्रमिकों को कर्णप्लग अथवा कर्णबन्दक प्रदान करना
  • वाहनो के साइलेंसरो की समय समय पर जांच
  • बैंड-बाजों, लाउडस्पीकरों एवं नारेबाजी पर उचित प्रतिबंध

Image Courtesy: www.nature.nps.gov

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