भारत की सामान्य पादप प्रजातियां

एक समृद्ध जैव विविधता के साथ भारत प्रकृति से संपन्न वह देश है जहां पौधों की 40,000 से अधिक प्रजातियां और जानवरों की 75000 प्रजातियों पायी जाती हैं। करीब 3,000 प्रजातियों के पादपों के बीच वैश्विक वनस्पति की 12% संपत्ति भारत के पास है। भारत में लगभग 15,000 फूल पौधों की प्रजातियां पायी जाती हैं। भारत में 3000 से अधिक औषधीय पौधे हैं। यह सूची करीब 100 अद्धभुत पौधों का प्रतिनितिधत्व करती है जिसे एनविस डेटाबेस के अनुसार कारोबारी औषधीय पौधों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

Nov 17, 2015, 15:32 IST

भारत की सामान्य पादप प्रजातियां

सागौन: यह वृक्ष प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में पाये जाते हैं। यह पर्णपाती जंगलों में एक सामान्य वृक्ष होता है। एक उत्कृष्ट फर्नीचर बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाली इस लकड़ी की बहुत मांग है।

साल: यह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के जंगलों में कई प्रकार की एक आम प्रजाति है जो मध्य प्रदेश और उड़ीसा में फैले हुए हैं। इसके चमकीले हरे पत्ते होते हैं और इसका अग्रभाग लगभग साल भर तक हरा रहता है। साल की लकड़ी कठोर और टिकाऊ होती है। साल के भारी संख्या में बीज पैदा होते हैं जिनका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है।

आम:  पूरे देश में उगायी जाने वाली विभिन्न किस्मों के साथ यह हमारे सबसे लोकप्रिय बागवानी प्रजातियों में से एक है।

बरगदी प्रजातियां: महत्वपूर्ण वृक्षों के इस समूह के एक हिस्से में पीपल, बरगद और कई अन्य बरगदी प्रजातियां शामिल हैं। कीड़ों, पक्षियों और स्तनधारियों की कई अलग-अलग प्रजातियां बरगदी दानों पर निर्भर रहते हैं क्योंकि इन सबका पारिस्थितिकी तंत्र में अत्यंत महत्व है। दानों में से फूल पैदा होते हैं। इनमें एक विशिष्ट ततैया द्वारा परागण किया जाता है जो जामुन के अंदर अपने अंडे देती है जिससे लार्वा का भरण पोषण होता है। इस प्रकार से बरगदी प्रजातियां पारिस्थितिकी तंत्र में 'कीस्टोन' प्रजाति के रूप में जानी जाती हैं और कई पारिस्थितिक तंत्रों में वेब भोजन के एक प्रमुख भाग का समर्थन करती हैं। बरगदी पेड़ जैसे पीपल और बरगद को भारत में पवित्र और संरक्षित वृक्ष माना जाता है।

नीम: इस प्रजाति को अजादिराचता इंडिका (नीम) के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग परंपरागत रूप से स्वदेशी चिकित्सा के लिए किया जाता है। इसमें छोटा पीला फल होता है। इसकी पत्तियों और फलों का स्वाद कड़वा होता है। इसे एक पर्यावरणीय अनुकूल कीटनाशक के रूप में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में यह बहुत अच्छी तरह से विकसित होता है और इसे वनीकरण कार्यक्रम में वहां लगाया जा सकता है जहां की मिट्टी निर्गुण हो और वर्षा कम होती हो।

इमली: सबसे उत्कृष्ठ विदित भारतीय वृक्षों में एक, यह एक बड़े आकार में पैदा होती है और ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष की आयु 200 से अधिक वर्षों की होती है। खट्टे गूदे और बड़ी मात्रा में बीजों के साथ यह एक सामान्य घुमावदार फली होती है। ताजे फल में गूदा या तो हरा या फिर लाल होता है। पकने या तैयार होने पर यह चिपचिपा और भूरे रंग में बदल जाता है और छाल से अलग हो जाता है। आमतौर पर इस वृक्ष की खेती एक छाया वाले वृक्ष और इसके खट्टे फल के के रूप में की जाती है जिसमें विटामिन सी की उच्च सघनता शामिल हैं।

बबूल: यह एक कांटेदार प्रजाति है जो पश्चिमी भारत और दक्कन पठार के अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों की विशेषता है। यह वृक्ष चरागाहों और खेतों के आसपास के इलाकों में पैदा होता है। इसका प्रयोग चारे और ईंधन के लिए किया जाता है। यह वर्ष भर हरा रहता है यहां तक कि सूखी परिस्थितियों में भी । इसे जंगली जानवरों और पशुओं द्वारा खाया जाता है।

बेर: ये विशिष्ट लघु वृक्ष होते हैं और इसकी झाड़िया जो भारत के शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में पायी जाती हैं। जेड मॉरिटानिया और जेड जुजुबा सर्वाधिक नियमित प्रजातियां हैं। यह फलभक्षी पक्षियों की एक पसंदीदा प्रजाति है। पेड़ पर बड़े पैमाने में फल होते हैं और पक्षियों तथा स्तनधारियों की एक किस्म द्वारा इसका भक्षण किया जाता है।

तेंदु: यह एक मध्यम आकार का पर्णपाती वृक्ष है जो उपमहाद्वीप में शुष्क पर्णपाती जंगलों में आम है। इसकी लगभग 50 भारतीय प्रजातियां हैं। इसकी छाल बड़े आयताकार पैमाने पर निकाली जाती है। इसकी शाखाएं बहुत अधिक मात्रा में एक घने मुकुट के रूप में होती है। पत्तियां अंडाकार और कठोर होती हैं तथा बड़े पैमाने पर इसके ताजे पत्तों का उपयोग 'बीड़ी' बनाने के लिए किया जाता है।

जंगल की लौ (पलाश या ढाक): यह वृक्ष भारत के कई भागों में पैदा होता है। जब यह बिना पत्तों का होता है तो इसमें सुनहरे नारंगी फूल होते हैं,  इस प्रकार इसे 'जंगल की लौ' कहा जाता है। फल पूरी तरह से मिठास से भरे होते हैं जो बंदरों और कई निर्भर पक्षियों को आकर्षित करते हैं।

देवदार: असली देवदार की पांच प्रजातियां हैं जो भारत के हिमालय क्षेत्रों में पायी जाती हैं। इन पेड़ों की लकड़ी का प्रयोग अक्सर निर्माण, बढ़ईगीरी और कागज उद्योग में किया जाता है। देवदार के लीसे (लार) का प्रयोग तारपीन, रोजिन, तारकोल और डामर बनाने के लिए किया जाता है। देवदार तेल पत्तो और टहनी के आसवन से प्राप्त होता है। देवदार की पत्तिया पतली और सुई की तरह होती हैं।

साइकस: ये पौधे भारत में असामान्य हैं और एक ताड़ के पेड़ की तरह दिखते हैं। शंकुवृक्ष (कोनिफर) के साथ-साथ सिकड अनावृतबीजी (जिम्नोस्पर्म) का निर्माण करते हैं। ये सबसे प्राचीन बीज पौधों में से एक हैं और पिछले 200 मिलियन वर्षों से लगभग अपरिवर्तित बने  हुए हैं। भारत में ज्यादातर उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में इनकी पांच प्रजातियां मौजूद हैं।

ड्रोसेरा: आमतौर पर 5 या 6 सेमी. का यह एक छोटा सा कीटभक्षी पौधा होता है जिसके छोटे-छोटे बाल होते हैं जिसमें चिपचिपा तरल पदार्थ या बूंद होती है जिसमें कीड़े अटके होते हैं। संघर्ष कर रहे कीटों के आसपास की पत्ती धीरे-धीरे इसे पचा लेती है।

घास: घास दुनिया में फूल पौधों का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। ये पौधों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण समूह है जिसका प्रयोग विभन्न प्रायोजनों जैसे- फाइबर बनाने, कागज, छतों के लिए छाजन सामग्री, तेल, गम, दवाई और कई अन्य उपयोगी उत्पादों के लिए किया जाता है। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण घासों में गन्ना, बांस और अनाज जैसे- चावल, गेहूं, बाजरा, मक्का, आदि शामिल है।  घास इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह घरेलू पशुओं के लिए चारा उपलब्ध कराती है।

बांस: यह प्रजातियों की तरह बड़ी घासों का एक समूह है जो भारत के कई जंगलों में ऊंचे स्थानों पर एक पेड़ों का झुरमुट के रूप में विकसित होते हैं। यह अत्यंत उपयोगी होते हैं। इसका प्रयोग झोपड़ियों के निर्माण तथा ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोगी घरेलू समान जैसे टोकरी, कृषि औजार, बाड़, घरेलू उपकरण, चटाई, आदि बनाने के लिए किया जाता है। नये पौधों का भोजन के लिए उपयोग में लाया जाता है। बड़े पैमाने पर इसका प्रयोग कच्चे माल के रूप लुगदी और कागज उद्योग के लिए किया जाता है। बांस के फूल दो दशकों बाद तक आते हैं उसके बाद पौधा खत्म हो जाता है। फूल से हजारों बीजों की पैदा होते हैं जिसके परिणामस्वरूप बांस की धीरे-धीरे वृद्धि होती है। बांस हाथियों और जंगल के दूसरे बड़े शाकाहारी जानवरों जैसे-गौड और हिरणों का एक पसंदीदा भोजन है।

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Education Desk

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