भारतीय/थार मरुस्थल राजस्थान में अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में अवस्थित गर्म/उष्ण मरुस्थल है| थार मरुस्थल में वार्षिक वर्षा 25 सेमी. से भी कम होती है, इसीलिए यहाँ शुष्क जलवायु व नाममात्र की प्राकृतिक वनस्पति पायी जाती है| इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे ‘मरुस्थली’ के नाम से भी जाना जाता है| यह ‘विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला मरुस्थल’ है|
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ऐसा माना जाता है कि मेसोजोइक कल्प में यह क्षेत्र समुद्र के अंदर स्थित था| इस अनुमान की पुष्टि जैसलमर के पास ब्रह्मसर से प्राप्त हुए समुद्री अवसादों और आकल वुड फॉसिल पार्क से प्राप्त हुए प्रमाणों से होती है| वुड फॉसिल्स की आयु लगभग 180 मिलियन वर्ष आँकी गयी है| हालांकि मरुस्थल की चट्टानी संरचना भारत के प्रायद्वीपीय पठार का ही विस्तार है, फिर भी शुष्क परिस्थितियों व वायु की क्रियाओं व भौतिक अपरदन के कारण इसकी धरातलीय विशेषताएँ प्रायद्वीपीय पठार से भिन्न हैं| मशरूम रॉक, बालुका टिब्बे, बरखान, ज्यूगेन आदि प्रमुख मरुस्थलीय भूआकृतियाँ हैं|
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ढाल के आधार पर थार मरुस्थल को दो भागों में बांटा जाता है- उत्तरी भाग, जिसका ढाल पाकिस्तान के सिंध प्रांत की ओर है और दक्षिणी भाग, जिसका ढाल कच्छ के रन की ओर है| इस क्षेत्र की अधिकांश नदियां निम्न वर्षा, अत्यधिक ताप द्वारा वाष्पीकरण और किसी हिमनदीय उद्गम के अभाव में वर्षावाही (Ephemeral) होती हैं, अर्थात इन नदियों में केवल वर्षा के मौसम में ही जल पाया जाता है| यहाँ की अधिकांश नदियाँ अंतःप्रवाह अपवाह प्रणाली (Inland Drainage) का उदाहरण है, क्योंकि यहाँ की अधिकांश नदियाँ थोड़ी दूर तक प्रवाहित होने के बाद किसी झील या प्लाया में मिल जाती हैं और सागर तक नहीं पहुँच पाती हैं| प्लाया मरुस्थलीय भाग में स्थित लवणीय झीलें होती हैं, जिनसे नमक प्राप्त किया जाता है| इस क्षेत्र की सबसे प्रमुख नदी लूनी है,जोकि मरुस्थल के दक्षिणी भाग में प्रवाहित होती है| उच्च ताप के अत्यधिक वाष्पीकरण और निम्न वर्षा जैसी स्थितियाँ इस क्षेत्र को जलाभाव वाला क्षेत्र (Water Deficit Region) बनाती हैं|
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