राज्य सूचना आयोग

राज्य सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और दस राज्य सूचना आयुक्तों होते हैं। जिनकी नियुक्ति एक समिति की सिफारिश के बाद राज्यपाल द्वारा की जाती है। इस समिति का अध्यक्ष, राज्य का मुख्यमंत्री होता है तथा इसमें राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री द्वारा नामित राज्य का एक कैबिनेट मंत्री शामिल होता है। इस पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को सार्वजनिक जीवन में श्रेष्ठतम् व्यक्ति होना चाहिए और उसके पास लाभ का कोई अन्य पद नहीं होना चाहिए तथा वह किसी भी राजनीतिक दल के साथ या किसी भी व्यापार या किसी पेशे से नहीं जुड़ा हुआ होना चाहिए।

Dec 24, 2015, 11:30 IST

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005,  राज्य स्तर पर राज्य सूचना आयोग के निर्माण की अनुमति प्रदान करता है।

राज्य सूचना आयोग की संरचना

राज्य सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और दस राज्य सूचना आयुक्तों होते हैं। जिनकी नियुक्ति एक समिति की सिफारिश के बाद राज्यपाल द्वारा की जाती है। इस समिति का अध्यक्ष, राज्य का मुख्यमंत्री होता है तथा इसमें राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री द्वारा नामित राज्य का एक कैबिनेट मंत्री शामिल होता है। इस पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को सार्वजनिक जीवन में श्रेष्ठतम् व्यक्ति होना चाहिए और उसके पास लाभ का कोई अन्य पद नहीं होना चाहिए तथा वह किसी भी राजनीतिक दल के साथ या किसी भी व्यापार या किसी पेशे से नहीं जुड़ा हुआ होना चाहिए।

कार्यकाल और सेवा

राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त के पास 5 साल की अवधि या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक अपने पद पर बने रह सकते हैं। वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होते हैं।

राज्य सूचना आयोग की शक्तियां और कार्य

  • आयोग इस अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्व्यन से संबंधित अपनी वार्षिक रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत करता है। राज्य सरकार, राज्य विधानसभा के पटल पर इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करती है।
  • यदि कोई उचित आधार मिलता है तो राज्य सूचना आयोग किसी भी मामले में जांच का आदेश दे सकता है।
  • आयोग के पास लोक प्राधिकरण द्वारा अपने निर्णय के अनुपालन को सुरक्षित करने का अधिकार है।
  • यह आयोग का कर्तव्य है कि किसी भी व्यक्ति से प्राप्त एक शिकायत की पूछताछ करे।
  • एक शिकायत की जांच के दौरान आयोग ऐसे किसी भी रिकार्ड की जांच कर सकता है जो लोक प्राधिकरण के नियंत्रण में है और इस तरह के रिकॉर्ड को किसी भी आधार पर रोका नहीं जा सकता है।

जांच करते समय आयोग के पास निम्नलिखित मामलों के संबंध में सिविल न्यायालय की शक्ति है:

  • दस्तावेजों की पड़ताल और निरीक्षण की आवश्यकता होती है;
  • गवाहों, या द्स्तावेजों और अन्य किसी मामलों का, जिसका निर्धारण किया जा सकता है, की पूछताछ के लिए सम्मन जारी करना।
  • लोगों को बुलाना और या उन्हें उपस्थिति होने के लिए कहना तथा उन्हें सही मौखिक या लिखित सबूतों का प्रपत्र देना व दस्तावेजों या चीजों को उनके सम्मुख प्रस्तुत करना;
  • शपथ पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना
  • किसी भी अदालत या कार्यालय से कोई भी सार्वजनिक रिकार्ड प्राप्त करने के लिए प्रार्थन करना।
  • जब एक लोक प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रावधानों का पालन नहीं करता है तब आयोग इसके पालन को सुनिश्चत करने के लिए कदम उठाने की सिफारिश कर सकता है।

मूल्यांकन

केंद्र की तरह, इन आयोगों के पास भी बकाया मामलों का बोझ बढता जा रहा है। कम स्टाफ और रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं होने के कारण बकाया मामलों में बढोत्तरी होते जा रही है। अक्टूबर 2014 में, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा अपीले और शिकायतें लंबित थी। लेकिन, इस तरह के उदाहरण भी हैं जहां कोई भी बकाया मामला नहीं है जैसे- मिजोरम, सिक्किम और त्रिपुरा के पास कोई भी मामला लंबित नहीं है। जानकारी देने के लिए आयोग के पास सीमित शक्तियां हैं और विसंगतियों को देखने के बावजूद भी वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है।

हालांकि, राज्य सूचना आयोग सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। इस प्रकार ये भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, उत्पीड़न और अधिकार के दुरुपयोग से निपटने में मदद कर रहे हैं।

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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