IAS किंजल सिंह और उनके परिवार की कहानी बहुत ही दर्दनाक है, किंजल 2007 में IAS में चयनित हुईं थीं, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचना आसान नही था, किंजल मात्र 6 महीने की थी जब उनके पिता की हत्या कर दी गई थी। बचपन में पिता की हत्या की बाद भी उन्होंने खुद पढाई की और बहन को भी पढ़ाया और आज दोनों IAS है।
किंजल सिंह 2007 बैच की IAS अधिकारी हैं जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश कैडर में तैनात हैं। वह एक साधारण IAS अधिकारी नहीं हैं, IAS अधिकारी बनने के संघर्ष को उनके परिवार के लिए न्याय पाने के निश्चित उद्देश्य से भी जोड़ा जा सकता है।
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नीचे दिए गए लेख में, हमने एक ऐसी IAS अधिकारी की सफलता की कहानी साझा करने की कोशिश की है, जोकि अपने पिता को न्याय दिलाने के लिए IAS के मुकाम तक पहुंचा गयीं।
फर्जी एनकाउंटर हमारी रक्षा प्रणाली की जीवित वास्तविकता है और ऐसे एनकाउंटरों से जुड़े न्यायिक मामलों अक्सर संपूर्ण न्यायिक प्रणाली को अविश्वास के घेरे में डाल देते है।
फर्जी एनकाउंटर के एक ऐसे ही मामले पर निर्णायक ऐतिहासिक निर्णय हाल ही में घोषित किया गया है, जो लंबे समय पहले से उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में हुआ था। इस निर्णय ने गुन्हेगारो को दंडित किया है और पूर्व डीएसपी(DSP) एस पी सिंह के एक घायल परिवार को एक लंबे समय बाद रहत पहुचाई है।
किंजल सिंह कौन है?
किंजल सिंह ने 2007 में यूपीएससी(UPSC) परीक्षा में सफ़लता प्राप्त की और परीक्षा में 25वीं रैंक भी हासिल की। वह स्वर्गवासी डीएसपी(DSP) एस पी सिंह की बेटी है, जो 35 वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में फर्जी एनकाउंटर में अपने अधीनस्थों द्वारा हत्या कर दी गई थी।
एस पी सिंह की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी को वाराणसी के राजकोष में नौकरी दी गई और यहाँ से उनकी अपने पति के लिए न्याय पाने के संघर्ष की कठिन जीवन यात्रा शुरू हुई। दो पुत्रियों किन्जल और प्रांजल सिंह ने भी जीवन में त्वरित बदलाव किया और अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की। उनकी मां ने हमेशा उन्हें जीवन में एक मजबूत और स्वतंत्र महिला होने के लिए प्रेरित किया, वे दोनों वर्ष 2007 में देश की सबसे मुश्किल परीक्षा (IAS परीक्षा) को पास कर सके।
किन्जल सिंह को IAS अधिकारी बनने के लिए विभिन कारण में से एक कारण था अपने पिता के लिए न्याय प्राप्त करना और अपने पिता के हत्यारों को सलाखों के पीछे देख पाना। वर्तमान में, किन्जल सिंह समर्पित और ईमानदार IAS अधिकारी है और सिविल सेवाओं(Civil services) के प्रति उनका दृष्टिकोण वास्तव में एक प्रेरणा है। उनकी बहन प्रांजल सिंह ने भी यूपीएससी की परीक्षा 2007 में पास कर ली और इंडियन रेवेन्यू सर्विस (IRS) में शामिल हो गई।
किन्जल सिंह के दृढ़ संकल्प इतना मजबूत था कि उसने पूरी न्याय व्यवस्था को हिलाकर रख दिया और 2013 में, उनके संघर्ष के 31 वर्ष बाद, लखनऊ में सीबीआई(CBI) विशेष अदालत ने उनके पिता डीएसपी (DSP) सिंह की हत्या के पीछे सभी 18 आरोपों को दंडित किया।
वह मुश्किल से महीने-भर की थी जब उसके पिता की हत्या कर दी गई थी लेकिन 2004 तक कैंसर की दिक्कत के बावजूद उनकी मां ने न्याय के लिए संघर्ष को जारी रखा।
देश में नकली एनकाउंटर के बारे में
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के आंकड़ों के अनुसार, प्रति वर्ष 100 से अधिक नकली एनकाउंटर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में ही जगह लेते है। इन भयावह आंकड़ों के बावजूद विवादित गोंडा एनकाउंटर मामले पर हालिया निर्णय एक राहत का रूप है क्यूंकि यह निर्णय उन सब परिवारों को हिम्मत देगा जोकि आज भी न्याय के लिए लड़ रहे है।
“एनकाउंटर से हुई हत्या” मूल रूप से सशस्त्र बलों द्वारा हत्याओं का वर्णन करने के लिए प्रयोग की जाती है लेकिन शब्द का अक्सर गलत अर्थ निकला जाता है।
1982 के गोंडा एनकाउंटर के बारे में
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में स्थित माधवपुर गांव में 12 मार्च 1982 की रात एक समूह मुठभेड़ की वारदात हुई थी। डीएसपी(DSP) एस पी सिंह, अपराधियों के बारे में जानकारी पाने पर पुलिस को गांव में लेकर गए। बाद में एस पी सिंह को अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इसके अलावा, 12 अन्य लोगों की मृत्यु के भी आर बी सरोज( स ओ पुलिस स्टेशन) और उनके सहयोगियों द्वारा मुठभेड़ में हुई डकैतों की मृत्यु घोषित कर दिया।
पुलिस ने बाद में एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि डीएसपी(DSP) एक बम हमले में मारे गए जिस एनकाउंटर में पुलिसकर्मियों ने डकैतों को मारा था। लेकिन वास्तविक्ता अलग होने का आरोप था और कहा जाता था कि पुलिस अधीक्षक एस पी सिंह और उनके अधीनस्थों के बीच दुश्मनी ही उनकी हत्या की वजह बनी । एस पी सिंह को अपने अधीनस्थों पर स्थानीय अपराधियों को सहयोग करने का संदेह था।
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विभा सिंह ने उच्च न्यायालय से संपर्क किया और सीबीआई (CBI) जांच का आदेश सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप पर दिया गया। सीबीआई (CBI) ने डीएसपी(DSP) और ग्रामीणों की हत्या के लिए पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर मं प्राथमिकी(FIR) दर्ज की।
इस मामले में परिणाम न्यायिक प्रणाली बहुत ही धीमी गति चलाई गई क्योंकि इस हत्या के 31 साल बाद और आरोप पत्र के 27 साल बाद पहली फैसला दिया गया। सीबीआई (CBI) न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में कुल आठ पुलिसकर्मियों को दोषी है। मृतक डीएसपी(DSP) की बेटी किन्जल सिंह (IAS), जो लखिमपुर खेरी जिले के IAS अधिकारी और जिला मजिस्ट्रेट हैं, फैसले के दौरान भावुक हो गई और अपने पिता को ईमानदारी से याद करते हुए आरोपी के खिलाफ उनकी मां की लगातार लड़ाई को याद किया।
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निष्कर्ष
चाहे वह इशरत जहां एनकाउंटर मामला हो या 1984 के दंगों के दौरान एनकाउंटर मामले या एएफएसपीए(AFSPA) अधिनियम के कारण नकली एनकाउंटर मामले हों, ये सूची अंतहीन और भयावह है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के मुताबिक, कथित फर्जी एनकाउंटर के कई मामले देश में सामने आते हैं और इन में से राज्य उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मामले सामने आते हैं।
लेकिन डीएसपी(DSP) फर्जी एनकाउंटर मामले में मिला न्याय हमारे देश को सार्वभौमिक मानवाधिकार सिद्धांतों के साथ सम्मिलित बनाने की दिशा में एक स्वागत योग्य कदम है। इसके अलावा, यह एक बेटी (किन्जल सिंह, IAS) का भी उदाहरण है, जो देश की सेवा करने के लिए उसी सिविल सेवा में शामिल हुई जिस सिविल सेवा में कार्य करते हुए उनके पिता की हत्या हुई।
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