उद्यमिता की चुनौतियां

Jul 31, 2018, 11:05 IST

उद्योग जगत की ओर से अक्सर यह चिंता जाहिर की जाती रही है कि हमारे यहां स्किल्ड वर्कफोर्स और पर्याप्त इनोवेशन यानी नवाचार की कमी है, पर ऐसा कहते हुए शायद इंडस्ट्री इस सवाल का जवाब देना भूल जाती है कि स्किल और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए खुद उसने कितना प्रयास किया है? देश में उद्यमिता और नवाचार की चुनौतियां क्या हैं, विचार कर रहे हैं अरुण श्रीवास्तव

Entrepreneurial Innovation
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उद्योग जगत की ओर से अक्सर यह चिंता जाहिर की जाती रही है कि हमारे यहां स्किल्ड वर्कफोर्स और पर्याप्त इनोवेशन यानी नवाचार की कमी है, पर ऐसा कहते हुए शायद इंडस्ट्री इस सवाल का जवाब देना भूल जाती है कि स्किल और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए खुद उसने कितना प्रयास किया है? देश में उद्यमिता और नवाचार की चुनौतियां क्या हैं, विचार कर रहे हैं अरुण श्रीवास्तव...

डस्ट्री के दिग्गज पिछले कई वर्षों से यह कहते आ रहे हैं कि मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा देने के लिए उन्हें जिस स्तर की और जिस संख्या में स्किल्ड वर्कफोर्स की जरूरत है, वह उन्हें उपलब्ध नहीं हो पा रही है। वह इसके लिए सरकार से लेकर शिक्षा संस्थानों तक को दोषी ठहराती है, जो इसके लिए समुचित प्रयास करने में नाकाम रहे हैं। देश की दूसरे नंबर की आइटी कंपनी इंफोसिस के संस्थापक और उसके पूर्व चेयरमैन एन.आर. नारायणमूर्ति तक ने कई बार इस बात को दोहराया है। कुछ दिनों पहले भी उन्होंने एक शिक्षा संस्थान में यह बात उठाई और इस कमी के लिए देश की शिक्षा प्रणाली को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि उनकी बात नवाचार की दिशा में सक्रिय नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन प्रो. अनिल गुप्ता के गले नहीं उतरती और वे इस बात से असहमति जताते हुए इंडस्ट्री के स्थापित उद्यमियों पर ही सवाल उठा देते हैं कि आखिर उन्होंने शिक्षा संस्थानों के स्तर पर उद्यमिता को प्रोत्साहित करने में खुद कितना योगदान दिया है? प्रो. गुप्ता खुद जमीनी स्तर पर विभिन्न संस्थानों के जरिए लगातार इनोवेशन को बढ़ावा देने के मिशन में जुटे हैं।

आइटी इंडस्ट्री बनाम इनोवेशन

पिछले करीब दो दशकों से भारतीय आइटी पेशेवरों का डंका भारत से लेकर अमेरिका की सिलिकॉन वैली तक में बजता रहा है। इस दौरान देश की आइटी कंपनियों ने दुनियाभर में अपनी पहचान बनाई और खूब पैसे बनाए। शुरुआती वर्षों में इसका फायदा आइटी प्रोफेशनल्स को भी खूब मिला। उन्हें देश और दुनिया में आकर्षक पैकेज मिला। पर पिछले कुछ वर्षों से न सिर्फ आइटी इंडस्ट्री की चमक फीकी पड़ी, बल्कि इसमें होने वाली हायरिंग और पैकेज भी उत्साहित करने वाला नहीं रह गया। यहां तक कि कई आइटी कंपनियों में बड़े पैमाने पर पिंक स्लिप तक की भी नौबत आई, खासकर हायर पोजीशन पर बैठे प्रोफेशनल्स के साथ। एंट्री लेवल के पैकेज में भी काफी कमी देखी गई। हालांकि माना यह भी जा रहा है कि आइटी कंपनियां न सिर्फ बंधुआ मजदूरी करवाकर खुद कमाई कर रही हैं, बल्कि देश के तमाम संस्थानों से निकलने वाली इंजीनियरिंग प्रतिभाओं को क्लर्क में तब्दील कर उनकी प्रतिभा को ही नष्ट किए दे रही हैं। ऐसे में खुद आइटी उद्यमियों द्वारा टैलेंट की कमी पर चिंता जाहिर करना उचित नहीं कहा जा सकता।

पहल का अभाव

इस बात की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है कि स्किल्ड वर्कफोर्स की कमी को दूर करने के साथ-साथ देश के युवाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार सक्षम बनाने के लिए स्थापित उद्यमियों को सिर्फ चिंता जाहिर करने की बजाय आगे बढ़कर शिक्षा संस्थानों का हाथ थामना चाहिए। लेकिन यह विडंबना ही कही जाएगी कि इस दिशा में गिने-चुने उद्यमियों ने ही पहल की है। सरकार की तरफ से भी उद्यमियों पर इस तरह का दबाव बनाने की कोई कारगर पहल नहीं की गई। नतीजा यह हुआ कि निजी क्षेत्र के तमाम संस्थान ऊंची फीस लेकर डिग्री बांटने वाली शिक्षा की दुकान बनकर रह गए। बेशक आइआइटी और उसके समकक्ष कुछ संस्थानों ने बदलते वक्त की चुनौतियों और इंडस्ट्री की बदलती जरूरतों को समझते हुए खुद को अपडेट रखने कर प्रयास करते हुए इनोवेशन की दिशा में काफी कुछ किया है, लेकिन 1.3 अरब की आबादी वाले अपेक्षाकृत युवा देश के लिए इसे कतई पर्याप्त नहीं माना जा सकता।

व्यावहारिक हों कदम

इनोवेशन की दिशा में कोई कदम तभी कारगर होगा, जब छात्रों को किताबी पढ़ाई की बजाय व्यावहारिक शिक्षा देने का कारगर उपक्रम किया जाएगा। इसके लिए सरकार और शिक्षा जगत के नियामकों के साथ संस्थानों को भी पहल करनी होगी। पाठ्यक्रम में समयानुकूल बदलाव के साथ-साथ इंडस्ट्री के विशेषज्ञों को भी नियमित विजिटिंग फैकल्टी में शामिल करना होगा। अगर इंडस्ट्री को पर्याप्त संख्या में काबिल युवा चाहिए, तो उसे भी आगे बढ़कर शिक्षा संस्थानों को गोद लेना होगा। उनके परिसर में अपनी यूनिट लगानी होगी या शिक्षा संस्थानों की लेबोरेटरी को उन्नत करने में अपना सहयोग देना होगा। इंडस्ट्री सीमित वेतन के साथ शिक्षा संस्थानों से स्टूडेंट्स को नियमित रूप से इंटर्नशिप भी ऑफर कर सकती है। प्रैक्टिकल ट्रेनिंग मिलने पर ये स्टूडेंट इंडस्ट्री की कसौटी के मुताबिक तैयार हो सकते हैं।  इससे तुरंत नौकरी मिलने में भी इन युवाओं को मदद मिलेगी। साथ में इस दौरान उन्हें रटाने की बजाय नवाचार के लिए प्रेरित किया जा सकता है। उनमें सीखने-जानने की भूख पैदा की जा सकती है। ऐसा करने से देश के युवा शुरुआत से ही इनोवेशन की दिशा में प्रेरित हो सकेंगे।

नाकाफी हैं प्रयास

कुछ एक को छोड़ दें, तो निजी क्षेत्र के ज्यादातर संस्थान न सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने में नाकाम रहे हैं, बल्कि इनोवेशन की दिशा में उन्होंने कोई उल्लेखनीय काम भी नहीं किया। नवाचार के नाम पर उन्होंने अब तक जो कुछ किया भी है, उसे महज दिखावे और अपने विज्ञापन के लिए, ताकि इससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा एडमिशन मिल सकें और वे दोनों हाथ से पैसे बटोर सकें। कुछ संस्थान तो नामी कंपनियों के साथ गठजोड़ दिखाकर स्टूडेंट्स के साथ सीधे-सीधे सीनाजोरी कर रहे हैं। उन्हें सपने दिखा रहे हैं कि अगर आपने उनके यहां दाखिला लिया, तो आपको कैंपस प्लेसमेंट के जरिए बैठे-बिठाए नामी-गिरामी कंपनियों में नौकरी मिलेगी और वह भी सपने सरीखे पैकेज पर।

चले बदलाव की बयार

भारत जैसी युवाशक्ति को ‘नवाचार शक्ति’ में बदलने के लिए सभी संबंधित पक्षों को ईमानदारी से गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। सबसे पहले तो सरकार और उसके शिक्षा नियामकों को सचेत और भविष्यगामी होने की जरूरत है, ताकि वे संस्थानों को शिक्षा की दुकान बनने देने की बजाय इनोवेशन की फैक्ट्री में तब्दील करने के लिए सहज-सरल व्यावहारिक उपाय लागू करने के साथ उसकी लगातार निगरानी करें। शिक्षा संस्थान संचालित करने वाले लोगों को देश के प्रति अपने सामाजिक सरोकारों को समझते हुए युवाओं को लूटने और किसी तरह की मरीचिका के भ्रम में फंसाने की बजाय कम से कम फीस में सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का ईमानदार प्रयास करना चाहिए।

Jagran Josh
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Education Desk

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