दोस्तों आज से 25 या 35 साल पहले तक कोचिंग का मतलब हमारे समाज में दूसरा होता था या यह कह लें कि कोचिंग कि आवश्यकता उन छात्रों के लिए मानी जाती थी जो पढ़ाई में कमज़ोर हुआ करते थे. एक बात और बतादें की पहले कोचिंग का नाम और मतलब केवल वो छात्र समझते थे जिनको किसी बड़े एग्जाम की तेयारी करनी होती थी और इस ज़रूरत को देखते हुए कोचिंग संस्थान भी बहुत कम थे. समय के साथ साथ आखिर क्या ऐसा बदलाव आया की कोचिंग ने हमारे देश में एक इंडस्ट्री का रूप लेलिया.
कोचिंग इंडस्ट्री पर एक नज़र:
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने 2010-2011 में भारत में कोचिंग इंडस्ट्री के आकार का अंदाज 40,187 करोड़ रुपये लगाया था, जो 2014-2015 में 75,629 करोड़ रुपया हो चुका था. ऐसोचैम के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में कोचिंग इंडस्ट्री का आकार 2.60 लाख करोड़ रुपया है. एशियाई विकास बैंक द्वारा 2012 में किए गए अध्ययन के अनुसार, भारत में हाई स्कूलों में पढ़ रहे 83 प्रतिशत विद्यार्थी कोचिंग कक्षाओं में जाते हैं
कोचिंग की ज़रूरत क्यों:
आज के इस भाग दौड़ की लाइफ में जहाँ किसी के पास टाइम नहीं, सब्र नहीं, हर लाइन में नंबर 1 होने कि चाहत तथा समाज में एक मक़ाम बनाने की चाहत; इन तमाम चीज़ों ने हमको इतना मजबूर कर दिया है कि हम इन सब चीज़ों को पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को रेडी हैं और ये समझने कि कोशिश ही नहीं कर रहे हैं कि क्या मैं इस चीज़ को करने में शक्षम हूँ या नहीं.
हर माता-पिता को अपने बच्चों से 99% रिजल्ट चाहिए भले ही उनका बच्चा किसी और चीज़ में अच्छा करने कि सलाहियत रखता हो. यही वजह है कि आज हर बच्चा एग्जाम में टॉप स्कोर लाने के लिए कोचिंग ले रहा है और उसको ऐसा विश्वाश दिलाया गया है कि अगर तुम कोचिंग जाओगे तो ही अच्छे मार्क्स आएँगे.
इसका दूसरा पहलु यह भी है कि स्कूल में टीचर्स भी अपनी पूरी ज़िम्मेदारी और इमानदारी से बच्चों को नहीं पढ़ाते हैं. हम अक्सर बहुत सारे स्कूल का सर्वे पढ़ते है कि इस स्कूल में टीचर्स ही उस योग्यता के नहीं हैं कि सही तरीके से चीज़ों को लिख पाएं. ऐसे में बच्चों के पास केवल कोचिंग ही एक आप्शन होता है.
भारत में स्कूली विद्यार्थी सबसे ज्यादा कोचिंग इंजीनियरिंग और मेडिकल में प्रवेश पाने के लिए करते हैं. इंजीनियर बनने का सपना देखने वाला हर विद्यार्थी आईआईटी में दाखिला चाहता है. आईआईटी संस्थानों की 11279 सीटों पर प्रवेश के लिए जिस संयुक्त प्रवेश परीक्षा ( जे ईई-मेन) का आयोजन हर वर्ष किया जाता है, उसमें करीब 11 से 12 लाख विद्यार्थी अपना भाग्य आजमाते हैं। उनमें से सिर्फ 2 से 2.24 लाख विद्यार्थियों का चयन जेईई (एडवांस) परीक्षा के लिए किया जाता है.
अब सवाल ये होता है कि ऐसी परिस्थिति में बच्चा या उसके माता-पिता कैसे जाने कि उसको कोचिंग की ज़रूरत है या नहीं
हर बच्चे को या उसके माता-पिता को निम्न बताई गई बातों को ज़रूर जानना चाहिए अगर उनको लगता है कि उनके बच्चे को कोचिंग भेजना ज़रूरी है
1. स्कूल की पढ़ाई पर माता-पिता रखें नज़र:
अक्सर हमने देखा है कि वो माता-पिता जिनके बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं, ज़यादा सीरियस होते है और टाइम टू टाइम स्कूल में जाकर अपने बच्चों की पढ़ाई के बारे में बात भी करते है क्योंकि स्कूल की पर्रेंट टीचर मीटिंग(PTM) में उनका जाना ज़रूरी होता है. मगर जहां एजुकेशन को लेकर इतनी शिकायत है(सरकारी स्कूल ), वहां न तो हम जाते है और न ही स्कूल बुलाता है. ऐसे में माता-पिता खुद स्कूल में जाएं और अपने बच्चे की पढ़ाई के बारे में उसके टीचर्स से बात करें. ऐसा भी हो सकता है कि स्कूल में पढ़ाई ठीक चल रही हो परन्तु बच्चा ठीक से न पढ़ रहा हो. पहले बच्चे को उसकी क्षमता के हिसाब से पढ़ाई करवाने की कोशिश करें और अगर आप ऐसा करते है तो आपको ज़रूर इम्प्रोव्मेंट देखने को मिलेगा
2. घर की पढ़ाई पर माता पिता रखें नज़र:
कई बार बच्चे स्कूल से आकर घर पर केवल होम वर्क करने में रह जाते हैं और पढ़ाई नहीं करते और माता-पिता को लगता है कि बच्चा पढ़ाई कर रहा है. हर दिन स्कूल में बच्चों को कुछ न कुछ तो पढ़ाया जाता है और अगर बच्चे घर पे आकर उसको नहीं दोहराते हैं तो यकीन मानिए की उनका स्कूल में पढ़ाया गया टॉपिक/ चैप्टर फिर से वैसा हो जाएगा जैसा पहले था और बाद में हमको ऐसा लगता है कि इसको कोचिंग की बेहद ज़रूरत है.
इस बार कई बोर्ड के टॉपर्स ने इस बात को अच्छे से बताया की उन्होंने कोई चोअचिंग नही ली.
3. बच्चों के रिजल्ट्स की एनालिसिस करना
बहुत सारे पेरेंट्स तो ऐसे होते है कि उनको यही नहीं पता होता कि उनका बच्चा या बच्ची की क्लास में पढ़ रहे हैं. हर साल परीक्षा ख़तम होने के बाद बस उनको यह पता चलता है कि उनका बच्चा पास हो गया. कितने नंबर आए या किस विषय में कम नंबर आए उनको कुछ पता नहीं होता और न ही वह जानने कि इक्षा रखते है जिसका रिजल्ट यह होता है कि बच्चा जिस हालत में था उसी हालत में पास होते-होते क्लास 10 या क्लास 12 में पहुँच गया और अब पेरेंट्स को इस बात कि चिंता शरू हो जाती है कि बच्चे को क्या बनाना है और फिर कोई रास्ता नहीं दीखता तो किसी एग्जाम की तैयारी के लिए कोचिंग में एडमिशन दिला देते हैं
निष्कर्ष:
इस लेख में बताई गई बातों को अगर आप अपनाएंगे तो सही माने में आपको पता चलेगा कि आपको अपने बच्चे को कोचिंग में एडमिशन दिलाना ज़रूरी है या नही.अगर बच्चे ने अपने स्कूल के पढ़ाई अच्छे से नहीं की है तो कोचिंग में जाकर भी वो केवल परेशान होगा क्योंकि वहां पढ़ाया जाने वाला कांसेप्ट बेसिक के उपर आधारित होता है और अगर बच्चे का बेस क्लियर नहीं है तो केवल कोचिंग आना जाना हाथ आएगा और रिजल्ट कुछ नहीं मिलेगा.
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