देश स्थित अपनी ड्रीम यूनिवर्सिटी या शिक्षण-संस्थानों में आवेदन करने के लिए ढेरों औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं। सभी जरूरी डॉक्यूमेंट्स के संकलन व उन्हें प्रमाणित करने आदि से लेकर कुछ अन्य जरूरी औपचारिकताएं भी पूरी करनी होती हैं। उदाहरण के लिए, स्टेटमेंट ऑफ पर्पज का सटीक लेखन, अनुशंसा-पत्र के लिए एक्सपर्ट का चयन और उनका बेहतर प्रेजेंटेशन आदि। इसलिए विदेश स्थित शिक्षण संस्थानों में आवेदन करने के लिए या उन्हें सही ढंग से दाखिल करने के लिए छोटी-छोटी बातों पर आपको गंभीरता से अमल करना होगा। और जब आप ऐसा करते हैं, तो न केवल आवेदन से संबंधित सभी शर्तो को आसानी से पूरी कर सकते हैं, बल्कि अपने फेवॅरिट या ड्रीम डेस्टिनेशन में दाखिला पाने में कामयाब भी हो सकते हैं।
बढें प्लानिंग से आगे
मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट, ट्रॉबिनगन, जर्मनी की रिसर्च की छात्रा कीर्ति ढींगरा का कहना है कि संबंधित शिक्षण-संस्थानों में आवेदन करने का सेफ आइडिया है, बेहतर प्लानिंग के साथ आगे बढना। तात्पर्य यही है कि यदि आप कम से कम बारह-से-अठारह माह पहले आवेदन भेजते हैं, तो यह एक गुड-आइडिया कहा जाएगा। वहीं, यदि आप कोई फाइनैंशियल सपोर्ट या स्कॉलरशिप चाहते हैं और जल्द एडमिशन की ख्वाहिश भी रखते हैं, तो आपको थोडी और लंबी प्लानिंग करनी होगी। जैसे, दो से तीन वर्ष पूर्व ही आपको मन बना लेना चाहिए कि आपको अमुक यूनिवर्सिटी में पढने जाना है, ताकि आप बिना किसी परेशानी के आवेदन करने से संबंधित औपचारिकताओं को पूरी कर सकें।
मुख्य दस्तावेज : विदेश स्थित यूनिवर्सिटी या कॉलेज में आमतौर पर आवेदन के साथ निम्नलिखित दस्तावेजों को जमा कराना होता है..
शैक्षणिक योग्यताओं की प्रमाणित कॉपियां।
पासपोर्ट की फोटोकॉपी (पहले और अंतिम पन्ने की)।
आईईएलटीएस, टॉफेल, जीआरई आदि के अंक-पत्र।
एसओपी या स्टेटमेंट ऑफ पर्पज।
रेकॅमन्डेशन लेटर (एक से ज्यादा भी हो सकते हैं)।
रेज्यूमे आदि।
रेकॅमन्डेशन लेटर या अनुशंसा-पत्र : रेकॅमन्डेशन लेटर से एडमिशन कमिटी को ऐसी जानकारी मिल सकती है, जो कि प्राय: आवेदन से प्राप्त नहीं हो पाते हैं। जैसे, कैंडिडेट का एकेडमिक ऐंड वर्क अचीवमेंट्स, पर्सनल डिटेल्स, कैरेक्टर आदि बातों से जुडी कुछ जरूरी जानकारी। दरअसल, संबंधित शिक्षण-संस्थान में दाखिला मिलने में रेकॅमन्डेशन लेटर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सच तो यह है कि जहां एक ओर बेहतर रेकॅमन्डेशन लेटर दाखिले में आपका सबसे बडा मददगार हो सकता है, वहीं दूसरी ओर एक असंयोजित रेकॅमन्डेशन लेटर आपको अपने फेवॅरिट कॉलेज में दाखिला पाने से वंचित भी कर सकता है।
एसओपी यानी स्टेटमेंट ऑफ पॅर्पज : आप कौन हैं, आपकी करियर की राहें किन-किन बातों से तय होती हैं, आगे आपको क्या करना है, प्लॉनिंग क्या कर रहे हैं आदि सवालों का जिक्र होता है, एसओपी में। दरअसल, एसओपी पूरे ऐप्लिकेशन-पैकज का एक महत्वपूर्ण पार्ट है, जिसकी मदद से एडमिशन कमिटी को आपके बारे में एक कम्प्लीट जानकारी मिलती है। चूंकि कैंडिडेट इसे खुद तैयार करते हैं, इसलिए यह कह सकते हैं कि इस पर उनका फुल-कंट्रोल होता है! यानी यह उनके हाथ में होता है कि वे कैसे बेहतर ढंग से खुद को प्रेजेन्ट करें। लेकिन सच तो यह है कि एक बेहतर एसओपी को लिखना सबसे कठिन कार्य होता है। क्योंकि इसे लिखने में न केवल ईमानदारी बरतनी पडती है, बल्कि छोटी-छोटी बातों का भी खास खयाल रखना पडता है। लोवा यूनिवर्सिटी, यूएस के रिसर्च छात्र कुलदीप बाधवा कहते हैं- स्टूडेंट्स को हर हाल में एसओपी लिखते वक्त न केवल ऑनेस्ट रहना चाहिए, बल्कि स्वाभाविक भाषा का भी प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि बाद में भले ही आप ईमानदारी से परे रहकर गलत सूचनाओं का प्रयोग कर बेहतर एसओपी तैयार करें और इसके कारण आपको अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल भी जाए, लेकिन एक सच यह भी है कि बाद में आपका काम ही आपका साथ देगा, न कि अच्छा कॉलेज!
क्या करें
डेडलाइन्स को नोट करके रखें।
बेहतर रिसर्च, स्टडी से ही बनेगी अच्छी एसओपी।
एसओपी लिखने में एक्सपर्ट और सीनियरों की लें मदद।
रेकॅमन्डेशन लेटर के लिए चुनें वरिष्ठ एक्सपर्ट, जो कि आपके कार्यो और उपलब्धियों से भली-भांति परिचित हों।
न करें
न लें झूठ का सहारा।
रेकॅमन्डेशन लेटर के लिए ऐसे व्यक्ति को न कहें, जो कि अच्छे लेखक न हों।
रेकॅमन्डेशन लेटर या एसओपी को समय रहते तैयार करें और इनके लिए अंतिम समय का न करें इंतजार।
एस. झा
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