सिखों का प्रमुख त्योहार “गुरू नानक गुरूपर्व”

Jan 2, 2020, 14:42 IST

गुरु नानक जी सिखों के प्रथम गुरु थे और उन्होंने ही सिख धर्म की स्थापना की थी. “गुरू नानक गुरूपर्व", “गुरू नानक का प्रकाश उत्सव” और “गुरू नानक जयंती” के रूप में भी जाना जाता है. आइये इस लेख के माध्यम से गुरु नानक गुरुपर्व और गुरु नानक जी के बारे में जानते हैं.

Guru Nanak Jayanti
Guru Nanak Jayanti

“गुरू नानक गुरूपर्व” सिख धर्म के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक है| सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को “राय-भोई-दी” तलवंडी में  हुआ था| वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान के शेखुपुरा जिले में है और इसे ननकाना साहिब के नाम से भी जाना जाता है|

गुरू नानक का जन्मदिवस कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि अर्थात “कार्तिक पूर्णिमा” को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह उत्सव आम तौर पर नवंबर के महीने में होता है लेकिन इसकी तारीख भारतीय कैलेंडर के पारंपरिक तिथियों पर आधारित है जो साल दर साल बदलता रहती  है| इस तिथि को भारत में राजपत्रित अवकाश घोषित किया गया है।

आएये आगे देखतें है कैसे इस पर्व को मनाया जाता है और क्या विशेष होता है ?

यह उत्सव आमतौर पर अन्य “गुरूपर्व” के समान ही है, केवल इसके भजन अलग हैं। यह उत्सव “प्रभातफेरी” के साथ शुरू होता है, जिसमें लोग सुबह-सुबह बस्तियों में भजन गाते हुए जुलूस के रूप में चलते हैं, जिसकी शुरूआत गुरूद्वारे से होती है| आमतौर पर जन्मदिवस से दो दिनों के पहले गुरूद्वारों में अखण्ड पाठ का आयोजन किया जाता है जिसमें सिखों के पवित्र पुस्तक गुरू ग्रंथसाहिब का 48 घंटों तक लगातार पाठ होता है|

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जन्मदिवस से एक दिन पहले “नगरकीर्तन” का आयोजन किया जाता है, जिसका नेतृत्व “पंच प्यारे” (पांच प्रिय लोग) करते हैं| पंच प्यारे अपने हाथों में सिखों का झंडा (निशान साहिब) और गुरू ग्रंथ साहिब की पालकी (डोली) को लेकर चलते हैं| उनके पीछे गायकों एवं भक्तों की टोली सामूहिक रूप से भजन गाते हुए चलती है| उनके साथ वादक मण्डली भी चलती है जो विभिन्न प्रकार के “धुन” बजाते रहते हैं| इनके साथ “गटका” टोली भी चलती है जो विभिन्न मार्शल आर्ट के माध्यम से “तलवारबाजी” और पारंपरिक हथियारों के माध्यम से “नकली लड़ाई” का प्रदर्शन करते हैं। जिन रास्तों से नगरकीर्तन करने वालों जुलूस गुजरता है उसे बैनर, झंडों, तोरणद्वारों एवं फूलों से सजाया जाता है| इस जुलुस के माध्यम से गुरू नानक के संदेश का प्रचार-प्रसार किया जाता है|

गुरूपर्व के दिन उत्सव की शुरूआत सुबह 4-5 बजे से ही हो जाती है| इस दिन इस समय को “अमृत बेला” के रूप में जाना जाता है| दिन की शुरूआत “आसा-दी-वार” (प्रातः कालीन भजन) के गायन से होती है। इसके बाद गुरू की प्रशंसा में कथा (शास्त्र की व्याख्या) और कीर्तन (शास्त्रों के भजन) का आयोजन किया जाता है| इसके बाद गुरूद्वारों में स्वयंसेवकों के द्वारा “लंगर” (विशेष सामूहिक भोजन) की व्यवस्था की जाती है| लंगर के आयोजन के पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि हर किसी को  जाति, वर्ग या पंथ की परवाह किए बिना सेवा और भक्ति-भावना दिखानी चाहिए।

कुछ गुरूद्वारों में रात की प्रार्थना का भी आयोजन किया जाता है, जो सूर्यास्त के आसपास शुरू होता है जब रेह्रस (संध्याकालीन प्रार्थना) का पाठ होता है| साथ ही देर रात तक कीर्तन का भी आयोजन किया जाता है| मण्डली रात में 1:20 बजे के आसपास  गुरबानी गाना शुरू करते हैं, जो गुरू नानक के जन्म का वास्तविक समय है| यह समारोह रात के लगभग 2 बजे समाप्त होता है|

गुरू नानक गुरूपर्व पूरी दुनिया में सिख समुदाय द्वारा मनाया जाता है और सिख कैलेंडर के अनुसार यह सिखों के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में इस उत्सव का नजारा देखने लायक होता है| इसके अलावा कुछ सिंधी भी इस त्योहार को मनाते हैं।

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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