7 ऐसे ऐतिहासिक केस जिसके कारण भारतीय कानून में बदलाव हुए

समाज के बदलते स्वरूप के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए कई बार भारतीय संविधान में भी परिवर्तन करना पड़ता है। हमारे देश में, कुछ ऐसे मामले भी हुए हैं जिनके कारण नए कानून बनाये गए हैं| इनकी वजह से न सिर्फ संविधान में संशोधन हुआ है बल्कि इससे लोगों के दृष्टिकोण और राय में भी बदलाव हुआ है|

Dec 2, 2016, 17:43 IST

हम सब यह जानते हैं कि अदालत द्वारा दिया जाने वाला फैसला एक आधिकारिक विचार या औपचारिक निर्णय होता है। लेकिन वर्तमान समय में हमारा समाज बदलाव के दौर से गुजर रहा है और इसकी वजह से न्याय प्रणाली में भी बदलाव की आवश्यकता है। समाज के बदलते स्वरूप के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए भारतीय संविधान भी परिवर्तन के राह पर चल पड़ा है। हमारे देश में, कुछ ऐसे मामले भी हुए हैं जिनके कारण नए कानून बनाये गए हैं| इनकी वजह से न सिर्फ संविधान में संशोधन हुआ है बल्कि इससे लोगों के दृष्टिकोण और राय में भी बदलाव हुआ है|    

7 ऐसे ऐतिहासिक केस जिसके कारण भारतीय कानून में बदलाव हुए

1. निर्भया केस

संशोधन: 2000 का किशोर न्याय अधिनियम

Source:www. missionsharingknowledge.files.wordpress.com

16 दिसंबर, 2012 को सामूहिक बलात्कार और हत्या के एक क्रूर मामले ने देश को हिला कर रख दिया था। एक 23 वर्षीय लड़की पर एक बस में पहले हमला किया गया और फिर 6 पुरुषों ने उसके साथ बलात्कार किया। बलात्कार के बाद उन लोगों ने उसे सड़क पर फेंक दिया। इन 6 पुरुषों में से 5 व्यस्क एवं एक 17 वर्ष का नाबालिग लड़का था। जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो 5 व्यस्कों को 10 वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई। इनमें से एक ने अदालत में सुनवाई के दौरान जेल में आत्महत्या कर ली थी। 17 वर्षीय नाबालिग अपराधी को सुधार गृह में तीन वर्षों के लिए भेजा गया। लेकिन इस मामले में की गई क्रूरता ने लोगों को विश्वास से परे हैरान किया था। आखिरकार, दिल्ली की अदालत ने चार दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी।

इस घटना ने देश की अंतरात्मा को हिला कर रख दिया था और इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देश भर में किए गए थे। इन प्रदर्शनों की वजह से किशोर न्याय अधिनियम 2000 को प्रतिस्थापित किया गया यानि व्यस्क होने की आयु सीमा को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दिया गया।

वास्तव में केंद्र और दिल्ली सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने, ऐसी घटनाओं को रोकने और मामलों की सुनवाई को जल्द पूरा किए जाने हेतु कई कदम उठाए हैं।

2. शाह बानो बेगम बनाम मोहम्मद अहमद खान

संशोधन: आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 में संशोधन।

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शाह बानो 5 बच्चों की मां थी और 62 वर्ष की उम्र में, 1978 में उसके पति मो. अहमद खान ने उसे तलाक दे दिया था। तलाक देने वाले पति से भरण–पोषण के लिए मुआवजे की मांग लेकर वह अदालत पहुंची थी। उसने गुजारा भत्ते की मांग की थी जो इस्लाम के खिलाफ है। यहाँ तक कि सरकार ने भी उसके पति के पक्ष में फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने उम्र और वृद्धावस्था को देखते हुए शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया और धर्मनिर्पेक्षता एवं महिलाओं के कल्याण की रक्षा की। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में संशोधन कराया। इस फैसले ने तलाक के मामले में सभी मुस्लिम महिलाओं को राहत दी क्योंकि नए कानून में उनके लिए पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने की व्यवस्था कर दी गई थी। 

3. केएम नानावटी बनाम महाराष्ट्र राज्य

प्रभावः यदि जूरी को प्रभावित किया जा सकता है, तो जूरी प्रणाली को समाप्त करें यानि जूरी सुनवाई का निलंबन 

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के.एम.नानावटी जब 34 वर्ष के थे तो उनका पूरा जीवन बदल गया था। वे एक नौसेना अधिकारी थे और सिल्विया से उन्होंने शादी की थी। अपनी पत्नी और बच्चों के साथ वे मुंबई में रहते थे। नानावटी की अनुपस्थिति में अकेलेपन ने सिल्विया को उनके मित्र प्रेम आहूजा से मिलने और उसके प्रेम में पड़ने को मजबूर कर दिया।  27 अप्रैल 1959 को सिल्विया ने अपने पति के सामने यह बात स्वीकार की; कि वह आहूजा से प्रेम करती है लेकिन यह डर भी जाहिर किया कि आहूजा उससे शादी नहीं करेगा। फिर नानावटी प्रेम आहूजा के घर यह पूछने गए कि क्या वह सिल्विया से शादी करेगा और बच्चों की जिम्मेदारी उठाएगा लेकिन वह मुकर गया। गुस्से में नानावटी ने उसके शरीर पर 3 गोलियां चलाईं और उसकी मौत हो गई। यह एक ओपन केस था, इसे मीडिया में काफी कवरेज मिली और आखिरकार जूरी का फैसला नानावटी के पक्ष में हुआ।   

बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने जूरी के फैसले को खारिज कर दिया और नानावटी को हत्या का दोषी पाते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। तीन वर्ष बाद वह जेल से रिहा हुए। इस मामले ने यह साबित कर दिया कि प्रभावित जूरी पैनल भी खतरनाक हो सकता है अतः जूरी प्रणाली को समाप्त कर दिया गया था। 

4. मैरी रॉय बनाम केरल राज्य

संशोधन: भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925, त्रावणकोर और कोचीन में रहने वाले ईसाईयों पर भी लागू होगा। इसके तहत बेटियों को भी समान अधिकार मिला|

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मैरी रॉय के पति बिना वसीयत बनाए स्वर्गवासी हो गए। वे अरुंधती रॉय की मां थी और उन्होंने उत्तराधिकार अधिनियम को चुनौती देने का फैसला किया क्योंकि इस अधिनियम में कहा गया है कि बिना वसीयत के बेटियों का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा। त्रावणकोर ईसाई उत्तराधिकार अधिनियम, 1092, में कहा गया है कि, यदि कोई व्यक्ति अपनी बेटी के लिए वसीयत किए बिना मर जाता है तो बेटी किसी भी संपत्ति या पिता के यहाँ की किसी भी वस्तु की हकदार नहीं होगी। इसलिए संपत्ति सिर्फ बेटे को मिलेगी।

मैरी रॉय ने अपनी बेटी के लिए लड़ाई लड़ी और संपत्ति पर बेटी के समान अधिकार की बात कहते हुए अनुच्छेद 14 का हवाला दिया। इसके बाद, उन्होंने कहा कि सभी सीरियाई, ईसाई, महिलाओं को भी संपत्ति का समान अधिकार दिया जाना चाहिए। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने रॉय के पक्ष में फैसला सुनाया और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 कोचीन में रहने वाले ईसाईयों पर भी लागू हुआ। इसके साथ ही बच्चा (लड़का या लड़की) जन्म से ही समान रूप से वारिस बना दिए गए। इसका अर्थ है यदि पिता की मौत वसीयत किये बिना हो जाए तो लकड़ी के अधिकार अपने भाई के समान ही होंगे। 

5. मथुरा

संशोधन: आपराधिक कानून अधिनियम, 1983


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क्यों समान नागरिक संहिता भारत के लिए जरुरी है?

मथुरा एक नाबालिग आदिवासी लड़की थी। वर्ष 1972 में 26 मार्च को उसे रात में पुलिस थाने बुलाया गया। पुलिस थाने के एक अधिकारी ने उसका बलात्कार किया और वापस घर भेज दिया। मथुरा ने उस अधिकारी के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करने का फैसला किया लेकिन क्या आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस अधिकारी के पक्ष में फैसला सुनाया था। जैसा कि कहा गया था, मथुरा के शरीर पर किसी भी प्रकार की जबरदस्ती किए जाने के निशान नहीं थे और उसने न तो चीख– पुकार मचाई और न ही किसी को मदद के लिए पुकारा।

लेकिन इस मामले को जनता का काफी समर्थन मिला और आखिरकार आपराधिक कानून अधिनियम, 1983 में संशोधन किया गया। इस संशोधन के अनुसार हिरासत में किया गया बलात्कार एक अपराध है और इसलिए यह दंडनीय है एवं उसके बाद से ही ऐसे अपराधों को भारत के बलात्कार कानूनों के तहत निपटाए जाने की व्यवस्था कर दी गई। 

6. विशाखा बनाम राजस्थान राज्य

प्रभाव: महिलाओं के लिए कानून बने जो उन्हें कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संरक्षण प्रदान करते हैं 


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भंवरी देवी एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं जिनका वर्ष 1992 में राजस्थान के एक गांव में सामूहिक बलात्कार किया गया था, क्योंकि वे अपनी बच्ची को विवाह से बचाने की कोशिश कर रहीं थीं। उनकी बच्ची मात्र एक वर्ष की थी और वह नहीं चाहती थीं कि उसका विवाह इस छोटी सी उम्र में कर दिया जाए। इसलिए वह अपने परिवार के खिलाफ खड़ी हुई। उन्होंने मामला दर्ज कराया और न्याय की मांग की। उन्हें कई सारे स्वयंसेवी संगठनों से समर्थन मिला जिसने सुप्रीम कोर्ट को प्रमुख फैसला करने को मजबूर किया। इस फैसले ने महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने और आम समानता स्थापित करने में मदद की।

क्या आप जानते हैं कि 1997 से पहले कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के बारे में ऐसा कोई दिशानिर्देश नहीं था और अप्रैल 2013 में अदालत ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न निषेध अधिनियम यानि रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम, 2013 बनाया। विशाखा केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इन निर्देशों ने इन कानूनों को बनाने और तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

7. राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य

प्रभाव: अनुच्छेद 19 की सीमाओं में विस्तार कर भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को शामिल किया गया

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वर्ष 1994 में, हत्या के एक आरोपी ने आत्मकथा लिखी। वह मद्रास के साप्ताहिक पत्रिका प्रकाशित करने वाले एक पब्लिशिंग हाउस में गया और अपनी आत्मकथा प्रकाशित करने की इच्छा व्यक्त की। उसकी आत्मकथा में हत्या और उसमें शामिल कई वरिष्ठ अधिकारियों के बारे में लिखा था। अब, अधिकारी डर गए और कहानी को झूठा बताते हुए पत्रिका एजेंसी पर मुकदमा दायर कर दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए पब्लिशिंग हाउस के पक्ष में फैसला सुनाया कि इन पर तभी मुकदमा चलाया जा सकता है जब मुद्रित कहानी झूठी हो। इस फैसले ने अभिव्यक्ति और निजता के अधिकार के क्षेत्र में एक नया दरवाजा खोला। 

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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