भारत को नदी जोड़ने के अभियान से क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं

Oct 18, 2017, 14:45 IST

नदी जोड़ो परियोजना का उद्देश्य भारतीय नदियों को जलाशयों और नहरों के माध्यम से आपस में जोड़ना है. इससे सुखा और बाढ़ जैसी समस्याओं का समाधान होगा. किसानों को भी लाभ होगा आदि. यह लेख नदी जोड़ो परियोजना पर आधारित है जिसमें इसके इतिहास और इस परियोजना से लोगों को होने वाले लाभ के बारे में बताया गया है.

What is River Linking project in India
What is River Linking project in India

नदी जोड़ो परियोजना एक सिविल इंजीनियरिंग परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारतीय नदियों को जलाशयों और नहरों के माध्यम से आपस में जोड़ना है. इससे किसानों को खेती के लिए मानसून पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और साथ ही बाढ़ या सूखे के समय पानी की अधिकता या कमी को दूर किया जा सकेगा. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि विश्व में जितना भी पानी उपलब्ध है उसका केवल चार फीसदी ही भारत के पास है और भारत की आबादी विश्व की कुल आबादी का लगभग 18 फीसदी है. परन्तु हर साल करोड़ों क्यूबिक क्यूसेक पानी बह कर समुद्र में चला जाता है और भारत को केवल 4 फीसदी पानी से ही अपनी जरूरतों को पूरा करना पड़ता है. हर योजना के दो पक्ष होते है परन्तु हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए की इसका लाभ कितना अधिकाधिक लोगों तक पहुंचेगा. यह लेख नदी जोड़ो परियोजना पर आधारित है जिसमें इसके इतिहास और इस परियोजना से लोगों को होने वाले लाभ के बारे में बताया गया है.
नदी जोड़ो परियोजना क्या हैं
इस परियोजना के तेहत भारत की 60 नदियों को जोड़ा जाएगा जिसमें गंगा नदी भी शामिल हैं. उम्मीद है कि इस परियोजना की मदद से अनिश्चित मानसूनी बारिश पर किसानों की निर्भरता में कटौती आएगी और सिंचाई के लिए लाखों खेती योग्य भूमि भी होगी. इस परियोजना को तीन भागों में विभाजित किया गया है: उत्तर हिमालयी नदी जोडो घटक; दक्षिणी प्रायद्वीपीय घटक और 2005 से शुरू, अंतरराज्यीय नदी जोडो घटक. इस परियोजना को भारत के राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण (एनडब्ल्यूडीए), जल संसाधन मंत्रालय के अन्तर्गत प्रबंधित किया जा रहा है.
नदी जोड़ो परियोजना का इतिहास

History of National River Linking Project in India
Source: www. www.researchgate.net.com
नदी जोड़ो परियोजना पर काफी लंबे समय से विचार-विमर्श चल रहा है. भारत में जिन क्षेत्रों की नदियों में अधिक पानी है और जिनमें कम पानी है उनको जोड़ने का सुजाव काफी समय से हो रहा है.
- सबसे पहले नदियों को जोड़ने का विचार 150 वर्ष पूर्व 1919 में मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्य इंजीनियर सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तुत किया गया था.
- 1960 में फिर तत्कालीन उर्जा और सिंचाई राज्यमंत्री कएल राव ने गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने के विचार को पेश कर इस विचार धरा को फिर से जीवित कर दिया था.
- पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 1982 में नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी का गठन किया था.
- सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्टूबर, 2002 में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को इस योजना को शीघ्रता से पूरा करने को कहा और साथ ही 2003 तक इस पर प्लान बनाने को कहा और 2016 तक इसको पूरा करने पर ज़ोर दिया गया था.
- प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया था और यह अनुमान लगाया गया था कि इस परियोजना में लगभग 560000 करोड़ रुपयों की लागत आएगी.
- 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से केंद्र सरकार को निर्देश दिया की इस महत्वकांशी परियोजना को समयबद्द तरीके से अम्ल करके शुरू किया जाए ताकि समय ज्यादा बढ़ने की वजह से इसकी लागत और न बढ़ जाए.
- 2017 में सबसे पहले केन-बेतवा परियोजना लिंक जिसमें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हिस्से शामिल है को जोड़ा जाएगा और इसमें तकरिबन 10 हजार करोड़ की लगात आने का अनुमान है. इस परियोजना के तहत मध्य प्रदेश से केन नदी के अतिरिक्त पानी को 231 किमी लंबी एक नहर के जरिये उत्तर प्रदेश में बेतवा नदी तक लाया जाएगा. इससे बुंदेलखंड के एक लाख 27 हजार हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई की जा साकेगी क्योंकि यह सबसे ज्यादा सुखा ग्रस्त क्षेत्र है.

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भारत को नदी जोड़ने के अभियान से क्या लाभ हो सकता हैं
- इस परियोजना से सूखे तथा बाढ़ की समस्या से राहत मिल सकती है क्योंकि जरूरत पड़ने पर बाढ़ वाली नदी बेसिन का पानी सूखे वाले नदी बेसिन को दिया जा सकता है. गंगा और ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में हर साल आने वाली बाढ़ से निजात मिल सकता है.
- सिंचाई करने वाली भूमि भी तकरीबन 15 फीसदी तक बढ़ जाएगी.
- 15000 किलोमीटर नेहरों का और 10000 किलोमीटर नौवाहन का विकास होगा. जिससे परिवहन लागत में कमी आएगी.
- बड़े पैमाने पर वनीकरण होगा और तकरीबन 3000 टूरिस्ट स्पॉट बनेंगे.
- इस परियोजना से पीने के पानी की समस्या दूर होगी और आर्थिक रूप से भी समृद्धि आएगी.
- इससे ग्रामीण क्षेत्रों के भूमिहीन किसानों को रोजगार भी मिलने की सम्भावना है.
नदी जोड़ो परियोजना के दुष्प्रभाव
हर परियोजना के लाभ और साथ ही कुछ ना कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते है. नदिया शुरू से हमारे प्रक्रति का अभिन्न अंग मानी जाती रहीं हैं, तथा इनमें किसी भी प्रकार का मानव हस्तक्षेप विनाशकारी भी सिद्ध हो सकता है. नदी जोड़ो परियोजना को पूरा करने हेतु कई बड़े बाँध, नहरें और जलाशय बनाने होंगे जिससे आस पास की भूमि दलदली हो जाएगी और कृषि योग्य नहीं रहेगी. इससे खाद्यान उत्पादन में भी कमी आ सकती है. कहाँ से कितना पानी लाना है, किस नहर को स्थानांतरित करना है, इसके लिए पर्याप्त अध्ययन और शोध करना अनिवार्य है. देखा जाए तो 2001 में इस परियोजना की लागत 5 लाख साठ हजार करोड़ हाकी गई थी परन्तु वास्तविक में इससे कई ज्यादा होने कि संभावना है.
गंगा के पानी को विंध्या के उपर उठाकर कावेरी की और लेजाने में काफी ज्यादा लागत आएगी और इसके लिए बड़े-बड़े डीजल पम्पों का इस्तेमाल करना होगा और तो और 4.5 लाख लोगों को लगभग विस्थापित करना होगा, 79,292 जंगल भी पानी में डूब जाएंगे. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि नदी को जोड़े बिना भी बाढ़ और सूखे की समस्या से निजात पाया जा सकता है. अगर हम देखे तो पुराने समय में शहरों में तालाब हुआ करते थे, जिससे बाढ़ की समस्या का भी हल होता था और बारिश के समय में जो पानी इकट्ठा होता था वह जब सुखा पड़ता था तब काम आजाता था. दूसरी तरफ देखे तो जमीन को लेकर भी इस परियोजना के तहत विवाद खड़े हो सकते है. भारत में राज्यों में पानी को लेकर विवाद होता ही रहता है जैसे की कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच में कावेरी जल विवाद या फिर राजस्थान और मध्यप्रदेश में चम्बल नदी को लेकर विवाद. इतनी बड़ी परियोजना के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर भी सहमती जरुरी हो जाती है.
अंत मे यह कहा जा सकता है कि भारत जैसे भू-सांस्कृतिक विविधता वाले देश में जहां पर सिंचाई और पानी पीने के लिए प्रबंध अलग-अलग स्रोतों से होता आ रहा हो, जहां इतनी आबादी हो वहा इतनी बड़ी परियोजना को शुरू करने के लिए केंद्र सरकार अथवा शोध कर्ताओं को विचार कर लेना आवश्यक है ताकि बाद के दुष्परिणामों से बचा जा सके. परन्तु दूसरी तरफ इसको भी नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता है, जहां सूखे ग्रस्त इलाके है और जहां हर साल बाढ़ आ जाती है वहा सरकार को कोई ना कोई समाधान निकलना पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए भी अनिवार्य है. समाज को पानी के महत्व से समय रहते अवगत कराना और नदियों की विशेषता बताना, कैसे पानी को इस्तेमाल किया जाए भी जरूरी हैं. अर्थात यह देश हमारा है सरकार के साथ-साथ हमें भी पानी के महत्व को समझना होगा.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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