म्यांमार 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद निरंतर विद्रोहियों से ग्रस्त रहा है. इसे विश्व के "सबसे लंबे समय से चल रहे गृह युद्धों" में गिना जाता है. दिसंबर 2016 तक रोहिंग्या शरणार्थियों की आबादी इतनी बढ़ गयी है कि दुनिया के हर 7 वें देशहीन व्यक्ति में से 1 रोहिंग्या शरणार्थी है. ज्ञातव्य है कि म्यांमार में 90% आबादी बौद्ध धर्म मानने वालों की है और 4% मुसलमान और 4% ईसाई हैं.
रोहिंग्या मुसलमान कौन हैं?
रोहिंग्या' यह शब्द म्यांमार में एक तरह से वर्जित शब्द है. रोहिंग्या म्यांमार में रह रहे अल्पसंख्यक मुसलमान हैं. म्यांमार की सरकार रखाइन प्रांत में रहने वाले मुस्लिम अल्पसंख्यक रोहिंग्या की पहचान को खत्म करने के लिए उन्हें बांग्लादेश से आया हुआ बंगाली मानती है. म्यांमार के 1982 नागरिकता कानून के तहत रोहिंग्या को 135 निम्न जातीय समूहों में भी शामिल नहीं किया गया है.
रोहिंग्या मुस्लिम इंडो-आर्यन समुदाय के लोग हैं जो कि मुख्य रूप से म्यांमार के पश्चिमी तट पर रहते हैं. रोहिंग्या समुदाय के लोग भारत, बांग्लादेश, सऊदी अरब और अन्य कई देशों में पाए जाते हैं लेकिन म्यांमार में सबसे ज्यादा संख्या में पाए जाते हैं. म्यांमार के भीतर, वे पश्चिम तट के किनारे स्थित, रखाइन प्रांत (Rakhine State) में केंद्रित हैं. म्यांमार में रहने वाले 520 लाख लोगों में से लगभग 13 लाख रोहिंग्या मुस्लिम हैं.
यह गृह युद्ध क्यों हो रहा है?
दरअसल रोहिंग्या म्यांमार में पूर्ण नागरिक का दर्जा चाहते हैं और सरकार और बौद्ध बहुल समुदाय इन्हें देश का नागरिक नही मानती है और देश से बाहर भेजना चाहते हैं क्योंकि इनकी नजर में ये लोग देश में आतंकबाद और अस्थिरता फैला रहे हैं. यही विवाद का कारण है.
म्यांमार में सेना और अराकान रोहिंग्या रक्षा सेना के बीच लड़ाई जारी है. अराकान रोहिंग्या रक्षा सेना (ARSA) उत्तरी म्यांमार के रखाइन प्रांत से संचालित होती है. रखाइन प्रांत रोहिंग्या मुसलमान बहुल इलाका है जहां सबसे ज़्यादा हिंसा हुई है. यहां रह रहे लोगों को म्यांमार सरकार ने नागरिकता देने से इंकार कर दिया है और इन्हें बांग्लादेश से आए अवैध अप्रवासी घोषित किया है.
आईसीजी की रिपोर्ट बताती है ARSA में शामिल अधिकतर युवा रोहिंग्या पुरुष हैं. ये सभी साल 2012 में हुए दंगों के बाद सरकार की हिंसक प्रतिक्रिया से नाराज़ हैं और इस नरसंहार का बदला लेना चाहते हैं.
सन 1962 में सेना ने तख्तापलट के बाद नागरिक सरकार को उखाड़ दिया था. देश में सेना का शासन 2015 तक जारी रहा और इस दैरान देश में देश में कई दंगे, विरोध प्रदर्शन, कर्फ्यूज, आगजनी की तमाम घटनाएँ लगातार होतीं रहीं ताकि देश को दुबारा लोकतंत्र के रस्ते पर लाया जा सके. इस दौरान सबसे ज्यादा शिकार रोहिंग्या मुस्लिम हुए हैं.
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म्यांमार में अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले 16 वीं सदी से ही जारी हैं. अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा बौद्ध विरोधी गतिविधियों (जैसे बुद्ध की मूर्तियों को तोडा जाना) को भी म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय ने रोहिंग्या के खिलाफ प्रचारित किया और उन पर तमाम अत्याचार किये. कई सांप्रदायिक दंगे हुए, सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, लाखों को अपना घर छोड़ना पड़ा, उनके मौलिक अधिकारों और आवश्यकताओं को ख़त्म कर दिया गया. इस बीच, रखाइन प्रांत में एक हिंसक विद्रोह ने 1.20 लाख से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया.
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सन 2015 में लोकतंत्र के आगमन के बाद से रोहिंग्या के खिलाफ अपराधों में कमी नहीं हुई है. 2015 में सत्ता में आने के बाद हिंसा का अंत करने के लिए पर्याप्त कार्य नहीं करने के लिए 'आंग सांग सू की' सरकार की आलोचना की गई है. लेकिन सरकार ने इस समुदाय के लोगों पर अत्याचार होने से इनकार किया है.
रोहिंग्या मुसलमानों की हालत
रोहिंग्या मुसलमानों को अधिकारियों की अनुमति के बिना अपनी बस्तियों और शहरों से देश के दूसरे भागों में जाने की इजाजत नही होती. लोग झुग्गियों और खुले में रहते हैं साथ ही इन्हें स्कूल,दुकान, मकान और मस्जिद आदि बनाने की अनुमति नही है.
भारत और रोहिंग्या मुसलमान
भारत में रोहिंग्या समुदाय के लोग भारत दिल्ली, हैदराबाद, कश्मीर, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में एक बड़ी संख्या में मौजूद हैं. भारत सरकार ने उन्हें आधिकारिक तौर पर शरणार्थी नहीं माना है, लेकिन उनके लिए एक पहचान कार्यक्रम संचालित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त शरणार्थी (UNHCR) को अनुमति दी है. UNHCR ने भारत में लगभग 16,500 रोहिंग्या को पहचान पत्र जारी किए जो कि उन्हें "उत्पीड़न, मनमाने ढंग से गिरफ्तारी, हिरासत और निर्वासन को रोकने में मदद करता है". हाल ही में, भारत सरकार ने रोहिंगिया शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने का निर्णय लिया है हालाँकि अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
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संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि-1951: इस संधि पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किया हैं. 1967 में इसके द्वारा लाए गए प्रोटोकॉल का भी भारत हिस्सा नहीं है. भारत की तरफ से शरण की अनुमति मिलने के बाद शरणार्थियों को लॉन्ग टर्म वीजा (LTV) दिया जाता है; इसका हर साल नवीनीकरण होता है जिसके बाद शरणार्थी आम भारतीयों जैसी सुविधाएं हासिल कर पाते हैं.
भारत सरकार को इस मामले पर बहुत संभालकर चलने की जरुरत है क्योंकि भारत सरकार को आशंका है कि रोहिंग्या शरणार्थियों का आतंकवादियों के साथ संबंध हो सकता है.
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