EVM का इतिहास
भारत में पहले जनरल इलेक्शन 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच हुए थे. पहले चुनावों में बैलट पत्रों का प्रयोग किया गया था.
भारत में सर्वप्रथम ईवीएम का प्रयोग 1982 में केरल के नॉर्थ परूर विधानसभा क्षेत्र के लिए हुए उपचुनाव में कुछ मतदान केन्द्रों पर किया गया था. वर्ष 2004 से सभी लोक सभा और विधान सभा चुनावों में EVM का प्रयोग किया जाने लगा था.
EVM के बारे में;
ईवीएम 6 वोल्ट के एक साधारण बैटरी से चलता है जिसका निर्माण “भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बंगलौर” और “इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद” द्वारा किया जाता है.
एक ईवीएम में अधिकतम 2000 मतों को रिकॉर्ड किया जा सकता है और एक ईवीएम में अधिकतम 64 उम्मीदवारों के नाम अंकित किए जा सकते हैं.
एक “मतदान इकाई” (Ballot Unit) में 16 उम्मीदवारों का नाम अंकित रहता है और एक ईवीएम में ऐसे 4 इकाइयों को जोड़ा जा सकता है.
यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में 64 से अधिक उम्मीदवार होते हैं तो मतदान के लिए traditional ballot paper “मतपत्र या बॉक्स विधि” का प्रयोग किया जाता है.
ईवीएम मशीन के बटन को बार-बार दबाकर एक बार से अधिक वोट करना संभव नहीं है, क्योंकि मतदान इकाई में किसी उम्मीदवार के नाम के आगे अंकित बटन को एक बार दबाने के बाद मशीन बंद हो जाती है. इसलिए चुनावों में EVM का प्रयोग करना सुरक्षित है.
भारत की 7 राष्ट्रीय पार्टियों के चुनाव चिन्हों का इतिहास
ईवीएम के प्रयोग के फायदे (Benefits of EVM in the Elections)
1. वर्तमान में यह लागत एक M3 मशीन के लिए लगभग 17 हजार रुपये है. लेकिन यह लागत मत पत्रों की छपाई, उसके परिवहन और भंडारण तथा इनकी गिनती के लिए कर्मचारियों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक के रूप में खर्च होने वाले लाखों रूपए की तुलना में बहुत कम है.
2. एक अनुमान के मुताबिक ईवीएम मशीन के प्रयोग के कारण भारत में एक राष्ट्रीय चुनाव में लगभग 10,000 टन मतपत्र बचाया जाता है. इस कारण EVM के माध्यम से पर्यावरण की सुरक्षा की जाती है.
3. ईवीएम मशीनों को मतपेटियों की तुलना में आसानी से एक जगह से दूसरे जगह ले जायी जा सकती है इस कारण इसे पहाड़ी और अन्य दुर्गम इलाकों में भी लोगों को मताधिकार का अधिकार देती है.
4. ईवीएम मशीनों के द्वारा मतगणना तेजी से होती है जिससे चुनाव रिजल्ट तेजी से आते हैं और मतगणना में लगे लोग अपने पैरेंट डिपार्टमेंट में जल्दी ड्यूटी ज्वाइन कर लेते हैं जिससे लोगों को कम असुविधाओं का सामना करना पड़ता है.
5. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि निरक्षर लोगों को भी मतपत्र प्रणाली की तुलना में ईवीएम मशीन के द्वारा मतदान करने में आसानी होती है.
6. ईवीएम मशीनों के द्वारा चूंकि एक ही बार मत डाला जा सकता है अतः फर्जी मतदान में बहुत कमी दर्ज की गई है.
7. मतदान होने के बाद ईवीएम मशीन की मेमोरी में स्वतः ही परिणाम स्टोर हो जाते हैं जिससे मतदान के बाद गड़बड़ी की संभावना खत्म हो जाती है.
8. ईवीएम की “नियंत्रण इकाई” मतदान के परिणाम को दस साल से भी अधिक समय तक अपनी मेमोरी में सुरक्षित रख सकती है जिसके कारण किसी विवाद की स्थिति में दुबारा गणना करायी जा सकती है.
9. ईवीएम मशीन में केवल मतदान और मतगणना के समय में मशीनों को सक्रिय करने के लिए केवल बैटरी की आवश्यकता होती है और जैसे ही मतदान खत्म हो जाता है तो बैटरी को बंद कर दिया जाता है. इस सुविधा से उन दुर्गम इलाकों में भी मतदान कराया जा सकता है जहाँ पर लाइट नहीं है.
10. एक भारतीय ईवीएम को लगभग 15 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है इसका मतलब है कि यह बहुत ही कम लागत में चुनाव कराती है.
भारत द्वारा ईवीएम मशीन का निर्यात किन-किन देशों को किया गया है?
भारत द्वारा भूटान, नेपाल,पाकिस्तान, नामीबिया, फिजी और केन्या जैसे देशों ने ईवीएम मशीन का निर्यात किया गया है. नामीबिया द्वारा 2014 में संपन्न राष्ट्रपति चुनावों के लिए भारत में निर्मित 1700 “नियंत्रण इकाई” और 3500 “मतदान इकाई” का आयात किया गया था. इसके अलावा कई अन्य एशियाई और अफ्रीकी देश भारतीय ईवीएम मशीनों को खरीदने में रूचि दिखा चुके हैं.
सारांशतः यह कहा जा सकता है कि लोक सभा और विधान सभा चुनावों में EVM का प्रयोग देश में कम लागत में निष्पक्ष चुनाव कराने के साथ-साथ पेड़ों की कटाई से होने वाले पर्यावरण के नुकसान को भी कम करती है.
हालाँकि चुनाव आयोग को सभी रजनीतिक दलों द्वारा EVM की विश्वसनीयता पर उठाये गए सवालों का जबाव भी देना चाहिए तभी सही मायने में EVM से लोकतंत्र की जीत सुनिश्चित होगी.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation