चुनाव आयोग द्वारा भारतीय चुनावों में खर्च की अधिकत्तम सीमा क्या है?

May 17, 2019, 18:49 IST

चुनाव आयोग ने हाल ही में प्रत्येक लोकसभा सीट के लिए व्यय सीमा बड़े राज्यों में 40 लाख रुपए से बढाकर 70 लाख और छोटे राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए यह सीमा 22 लाख रुपये से बढाकर 54 लाख कर दी है| विधान सभा में चुनाव के लिए बड़े राज्यों में चुनाव खर्च की अधित्तम सीमा 16 लाख से बढाकर 28 लाख रुपये कर दी है |

हाल ही में इकनोमिक इंटेलिजेंस यूनिट ने एक डेमोक्रेसी इंडेक्स जारी किया है जिसमें 167 देशों को शामिल किया गया है. इस इंडेक्स में भारत को 41वें स्थान पर रखा गया है और भारत का स्कोर 7.23/10 है. इस डेमोक्रेसी इंडेक्स में बताया गया है कि विश्व में केवल 4.5% लोग "फुल डेमोक्रेसी" में रहते हैं. बदलते समय में देश में चुनाव में बढ़ते खर्चों को देखते हुए अब इस बात पर चिंता व्यक्त की जाने लगी है कि क्या संसद में सिर्फ वही लोग चुनकर पहुँच रहे हैं जिनके पास रुपया है क्या जनता का प्रतिनिधि होने के लिए सिर्फ धनी होना ही जरूरी है लोगों में सेवा भावना और ईमानदारी की कोई क़द्र नही है?

इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए इस लेख में यह जानने का प्रयास किया गया है कि आखिर विभिन्न चुनावों में कितना रुपया खर्च किया जाना कानूनी रूप से वैद्य है |

चुनाव में कितना धन खर्च करने की अनुमति चुनाव आयोग देता है ?

चुनाव आचार संहिता के नियम 90 में हाल ही में परिवर्तन किया गया है जिसमे निर्वाचन आयोग ने चुनाव व्यय को लोकसभा और विधान सभा के लिए बढ़ा दिया है| हालांकि उम्मीदवारों के लिए चुनाव खर्च की ऊपरी सीमा हर राज्य में अलग अलग होगी| इन राज्यों को उनकी जनसंख्या के आधार पर छोटे और बड़े राज्यों में बांटा गया है|

बड़े राज्यों में बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल,आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक आदि और छोटे राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, गोवा, अंडमान एवं निकोबार और अन्य पहाड़ी और पूर्वोत्तर के राज्य शामिल हैं। चुनाव आयोग ने हाल ही में प्रत्येक लोकसभा सीट के लिए व्यय सीमा बड़े राज्यों में 40 लाख रुपए से बढाकर 70 लाख और छोटे राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए यह सीमा 22 लाख रुपये से बढाकर 54 लाख कर दी है|लेकिन ध्यान रहे कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए खर्च की सीमा 70 लाख है.  

विधान सभा में चुनाव के लिए बड़े राज्यों में चुनाव खर्च की अधित्तम सीमा 16 लाख से बढाकर 28 लाख रुपये कर दी है| लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए 25,000 रुपये सुरक्षा राशि के रूप में जमा करना अनिवार्य होता है। यदि उम्मीदवार चुनाव में डाले गए कुल मतों का छठा हिस्सा प्राप्त करने में विफल रहता है, तो इस राशि को चुनाव आयोग जब्त कर लेता है।

बता दें कि भारत में पहले 3 लोक सभा चुनावों में सरकारी खर्च हर साल लगभग 10 करोड़ रुपये था. यह खर्च 2009 के लोक सभा चुनावों में 1,483 करोड़ था जो कि 2014 में 3 गुना बढ़कर 3,870 करोड़ रुपये हो गया था.
एक और रोचक तथ्य यह है कि 1952 में हर एक वोटर पर सरकार को 62 पैसे का खर्च आता था जो कि 2004 में बढ़कर 17 रुपये और 2009 में 12 रुपये प्रति वोटर पर आ गया था.

भारत में एक राजनीतिक पार्टी को रजिस्टर करने की प्रक्रिया क्या है?

Election Expenditure

चुनाव आयोग ने चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार के लिए प्रतिदिन के खर्च का ब्यौरा देना अनिवार्य कर दिया है| चुनाव खर्च को लेकर हर उम्मीदवार को एक अलग से बैंक अकाउंट खुलवाना जरूरी बना दिया गया है| चुनाव आयोग ने चुनाव खर्च की सीमा को बहुत ही सख्ती से लागू करने के बारे में दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं और सुप्रीम कोर्ट भी राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव में किये जाने वाले खर्चों को लेकर काफी सख्ती दिखा चुका है ताकि हर तबके का आदमी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदार हो सके |

चुनाव के होने वाले सामान्य खर्चे कौन-कौन से हैं

चुनाव के दौरान हर पार्टी को प्रतिदिन डीजल, पेट्रोल, बैनर, होर्डिंग्स, पर्चे, और अन्य प्रचार सामग्री, वाहन किराया, टीवी और अखवारों में मार्केटिंग पर होने वाला खर्च पार्टी कार्यालय पर कार्यकर्ताओं के खाने पीने का खर्च, और कुछ मामलों में तो मतदाताओं को सीधे तौर पर नकदी भी उपलब्ध करायी जाती है और अब तो फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से भी प्रचार शुरू हो गया है|

कई राजनीतिज्ञ इस बात को स्वीकार करते हैं कि इन चुनावों में मुख्य खर्च बूथ प्रबंधन (booth management) पर होता है यहाँ पर मतदान केंद्रों पर पार्टी कार्यकर्ताओं के ऊपर बहुत बड़ी मात्रा में रुपया खर्च किया जाता है |

I. चुनाव प्रचार के दौरान वाहनों पर खर्च = 34%

II. अभियान सामग्री पर खर्च=23%

III. सार्वजनिक जन सभाओं पर खर्च= 13%

IV. इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर खर्च=7%

V. बैनर, होर्डिंग्स, पर्चे पर खर्च =4%

VI. चुनाव क्षेत्र भ्रमण पर खर्च =3 %

crminals in politicians

image source:IBNLive

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कुछ प्रत्याशियों ने तो यहाँ तक स्वीकार किया है कि चुनाव आयोग लोकसभा के चुनाव को लड़ने के लिए एक प्रत्याशी को सिर्फ 70 लाख रुपये खर्च करने की अनुमति देता है लेकिन वास्तव में इस चुनाव में लगभग 2 करोड़ रुपये प्रति प्रत्याशी तक खर्च हो जाते हैं| यह बात भी किसी से छिपी नही है कि भारत के चुनावों में बड़े पैमाने पर काले धन का इस्तेमाल किया जाता है| एक पूर्व दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे ने कहा था कि उन्होंने अपने लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए 8 करोड़ रुपये खर्च किये थे | 

चुनाव लड़ने की लगत बढ़ने के क्या नुकशान हैं?

भारत का सुप्रीम कोर्ट भी इस बात पर सख्त नाराज है कि भारत में चुनाव लड़ने की लागत साल दर साल बढती ही जा रही है इसका सबसे बुरा असर उन प्रत्याशियों पर पड़ता है जो कि गरीब हैं लेकिन जनता की सेवा सच्चे मन से करना चाहते हैं परन्तु अधिक रुपया नही होने के कारण चुनाव में अपना प्रचार लोगों तक नही पहुंचा पाते हैं फलस्वरूप ऐसे लोग चुनाव नही जीत पाते हैं और जनता के प्रतिनिधि ऐसे लोग बन जाते हैं जो कि जनता की समस्याओं के प्रति बिलकुल भी गंभीर नही होते हैं| इसलिये अब भारत के चुनावों को money, muscles and mind का संयोजन कहा जाने लगा है|

corrupt politicians

image source:International Business Times, India

आकंडे तो यह भी बताते हैं कि वर्तमान में 16वीं लोकसभा में 34% प्रतिनिधियों का आपराधिक रिकॉर्ड है जिनमे कुछ पर तो हत्या, लूट और बलात्कार जैसे गंभीर आरोप भी लगे हुए हैं| यह शुरुआत भारत के लोकतांत्रिक विकास के लिए सही नही है|

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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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