आगामी 17वीं लोकसभा के चुनाव निकट आ रहे हैं. इन चुनावों में लगभग 90 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. इसलिए यह मतदाताओं की संख्या और प्रति मतदाता की लागत के मामले में ये चुनाव विश्व के सबसे बड़े चुनाव होंगे.
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय चुनावों में जिस तरह से धन और बल का प्रयोग बढ़ रहा है उससे तो यह लगता है कि भारत में चुनाव वही जीत सकता है जिसके पास “3M”; अर्थात मनी, मसल्स और माइंड हों.
ध्यान रहे कि भारत के पहले लोकसभा चुनाव 1951 में हुए थे जिसमें लगभग 17 करोड़ लोगों ने मतदान किया था और प्रति मतदाता के ऊपर चुनाव आयोग ने लगभग 60 पैसे खर्च किये थे.
भारत में पहले 3 लोकसभा चुनावों में सरकारी खर्च हर साल लगभग 10 करोड़ रुपये था. यह खर्च 2009 के लोक सभा चुनावों में 1,483 करोड़ था जो कि 2014 में 3 गुना बढ़कर 3,870 करोड़ रुपये हो गया था और अब 17वीं लोक सभा के लिए 6500 करोड़ रुपये हो जाने की पूरी उम्मीद है.
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ज्ञातव्य है कि पहले लोक सभा चुनावों में, चुनाव आयोग ने प्रति मतदाता पर केवल 60 पैसे खर्च किये थे जो कि 2004 में बढ़कर 17 रुपये और 2009 में 12 रुपये प्रति वोटर पर आ गया था. लेकिन 2014 के चुनावों में इसमें बहुत उछाल आया और यह 46 रुपये प्रति मतदाता हो गया जो कि वर्ष 2019 में इसके 72 रुपये प्रति मतदाता हो जाने की पूरी संभावना है.
भारत में सबसे सस्ते लोक सभा चुनाव 1957 के थे; जब चुनाव आयोग ने केवल 5.9 करोड़ रुपये खर्च किये थे और प्रति व्यक्ति मतदाता खर्च केवल 30 पैसा था.
आपको जानकर हैरानी होगी कि पहले आम चुनाव से लेकर पंद्रहवें आम चुनाव तक चुनाव का खर्च 20 गुना बढ़ गया है.
वर्ष 1952 से प्रति मतदाता खर्च का विवरण निम्नानुसार है;
वर्ष | खर्च (करोड़ रु.) | मतदाताओं की संख्या | प्रति मतदाता खर्च (रु में) |
1952 | 10.45 | 17,32,12,343 | 0.6 |
1957 | 5.9 | 19,36,52,179 | 0.3 |
1962 | 7.32 | 21,63,61,569 | 0.3 |
1967 | 10.8 | 25,02,07,401 | 0.4 |
1971 | 11.61 | 27,41,89,132 | 0.4 |
1977 | 23.04 | 32,11,74,327 | 0.7 |
1980 | 54.77 | 35,62,05,329 | 1.5 |
1984-85 | 81.51 | 40,03,75,333 | 2 |
1989 | 154.22 | 49,89,06,129 | 3.1 |
1991-92 | 359.1 | 5,11,533,598 | 7 |
1996 | 597.34 | 59,25,72,288 | 10 |
1998 | 666.22 | 60,58,80,192 | 11 |
1999 | 947.68 | 61,95,36,847 | 15 |
2004 | 1113.88 | 67,14,87,930 | 17 |
2009 | 846.67 | 71,69,85,101 | 12 |
2014 | 3870 | 83.4 cr | 46 |
2019 | 6500 | 90 cr | 72 |
Source: PIB & Election Commission of India
चुनाव आयोग को प्रस्तुत विवरण से पता चलता है कि भाजपा ने लगभग 22 राज्यों के चुनाव जीतने के लिए पिछले पांच वर्षों में चुनाव लड़ने पर 1,760 करोड़ रुपये खर्च किये हैं.
चुनाव आयोग ने प्रत्येक लोकसभा सीट के लिए व्यय सीमा बड़े राज्यों में 40 लाख रुपए से बढ़ाकर 70 लाख और छोटे राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए यह सीमा 22 लाख रुपये से बढ़ाकर 54 लाख कर दी है. लेकिन ध्यान रहे कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए खर्च की सीमा 70 लाख है.
विधान सभा में चुनाव के लिए बड़े राज्यों में चुनाव खर्च की अधित्तम सीमा 16 लाख से बढाकर 28 लाख रुपये कर दी गयी है.
उपर्युक्त लेख से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि चुनाव की लागत में “दिन दूनी और रात चौगुनी वृद्धि” हो रही है जो कि लोकतंत्र के स्वस्थ विकास के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि इस तरह के चुनाव केवल अमीरों द्वारा जीते जायेंगे और देश की जनसँख्या का एक बड़ा वर्ग बिना प्रतिनिधि के रह जायेगा.
इसलिए अब समय की जरूरत है कि चुनाव आयोग चुनावों में धन और बल के बढ़ते महत्व पर लगाम लगाने के लिए कठोर कदम उठाय और जो पार्टी और उम्मीदवार चुनाव आयोग द्वारा तय की गयी 70 लाख रुपये की सीमा को पार करे उसे सिर्फ चेतावनी देकर ना छोड़े बल्कि ऐसी दंड दे कि अन्य उम्मीदवार इस गलती को दोहराने की कोशिश ना करें.
चुनाव आयोग द्वारा भारतीय चुनावों में खर्च की अधिकत्तम सीमा क्या है?
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