भारत के वे तीन राज्य, जहां कभी गिरे थे उल्कापिंड, पढ़ें

May 24, 2025, 11:46 IST

भारत में महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान में हजारों साल पहले उल्कापिंड गिरे थे। आज भी इन जगहों पर सतह पर मौजूद उल्कापिंडों के निशान को देखा जा सकते हैं।  

भारत में मौजूद उल्कापिंड के निशान
भारत में मौजूद उल्कापिंड के निशान

धरती और अंतरिक्ष का इतिहास उठाकर देखें, तो इतिहास में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनका प्रभाव धरती पर पड़ा है। इनमें से एक घटना अंतरिक्ष से धरती पर उल्कापिंडों का पहुंचने की थी।

पृथ्वी ने हजारों साल पहले कई उल्कापिंडों को अपनी तरफ आते देखा। इनमें से कुछ उल्कापिंड धरती के वायुमंडल में आने पर जलकर खत्म हो गए, तो कुछ उल्कापिंड ने धरती पर निशान छोड़े।

कुल मिलाकर अब तक धरती पर 190 उल्कापिंड गिरे, जिनमें से तीन उल्कापिंड भारत की जमीन पर भी पहुंचे थे। ऐसे में इस लेख में हम भारत की उन तीन जगहों के बारे में जानेंगे, जहां उल्कापिंडों ने अपनी मौजदूगी दर्ज कराई थी। 

महाराष्ट्र का लोनार क्रेटर

महाराष्ट्र में मौजूद लोनार क्रेटर प्रसिद्ध क्रेटर है। यह ज्वालामुखीय बैसाल्ट पर बना है। ऐसे में पहले इसे ज्वालामुखीय प्रभाव के तौर पर देखा जाता था। हालांकि, बाद में पता चला है कि यह करीब-करीब 50 हजार साल पहले बना उल्कापिंड क्रेटर है।

यह गड्ढा 500 फीट गहरा और व्यास में 1.8 किलोमीटर है। वहीं, इसका किनारा जमीन से 65 फीट ऊपर उठा हुआ है। इस जगह पर करीब 10 लाख टन का उल्कापिंड टकराया था, जिसकी रफ्तार 90,000 किमी प्रतिघंटा रही होगी। 

मध्यप्रदेश का ढाला क्रेटर

मध्यप्रदेश का ढाला क्रेटर शिवपुरी जिले में स्थित है, जिसका निर्माण करीब 2500 मिलियन वर्ष पहले हुआ था। ऐसे में यह भारत का सबसे पुराना क्रेटर माना जाता है। इसका व्यास 11 किलोमीटर का है, जो कि इसे एशिया का सबसे बड़ा क्रेटर बनाता है।

शोधकर्ताओं को यह चट्टानों के साक्ष्य खोजे हैं, जिससे पता चलता है कि इतने बड़े गड्ढे का निर्माण उल्कापिंड के टकराने से ही हुआ होगा। इसकी भौगोलिक सरंचना इसे अन्य क्रेटर से अलग व आकर्षक बनाती है, जिससे शोधकर्ता इसकी तरफ एकाएक आकर्षित होते हैं। 

राजस्थान के रामगढ़ का क्रेटर

राजस्थान के रामगढ़ में मौजूद क्रेटर भारत का तीसरा क्रेटर है। इसका निर्माण 165 मिलियन वर्ष पहले हुआ था, जिसका व्यास आकार 10 किलोमीटर का है। यह स्थान कोटा जिले से 110 किलोमीटर की दूरी पर है।

यह इतना बड़ा है कि करीब 50 किलोमीटर की दूरी से ही इसे देखा जा सकता है। वहीं, इस गड्ढे के बीच में बनी एक चोटी इसे अन्य क्रेटर से अलग बनाती है। यही वजह है कि इस अद्भूत स्थान को देखने के लिए बड़ी संख्या में शोधकर्ता व खगोलविद् पहुंचते हैं। 

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Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

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