हरित क्रांति के जनक MS Swaminathan का निधन, जानें उनके बारें में 5 प्रमुख बातें

प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक और भारत में 'हरित क्रांति' के जनक एमएस स्वामीनाथन का चेन्नई में 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया. स्वामीनाथन ने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.  एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले में हुआ था. जानें उनके बारें में 5 प्रमुख बातें.

Sep 28, 2023, 13:44 IST
नहीं रहे भारत के हरित क्रांति के जनक
नहीं रहे भारत के हरित क्रांति के जनक

Father of India’s ‘Green Revolution: प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक और भारत में 'हरित क्रांति' के जनक मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन (एमएस स्वामीनाथन) का चेन्नई में 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया. स्वामीनाथन ने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

साथ ही उन्होंने भारत के कम आय वाले किसानों को अधिक उपज पैदा करने के लिए प्रेरित किया था. उन्होंने भारत में कृषि क्षेत्र में एक क्रन्तिकारी परिवर्तन लाने में मदद की थी. अपने जीवनकाल में स्वामीनाथन ने विभिन्न विभागों में विभिन्न पदों पर कार्य किया.  

पीएम मोदी ने जताया दुःख:

एमएस स्वामीनाथन पर पीएम मोदी ने भी दुःख व्यक्त किया है. उन्होंने X (पूर्व में ट्विटर) पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि ''डॉ. एमएस स्वामीनाथन जी के निधन से गहरा दुख हुआ. हमारे देश के इतिहास के एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय में, कृषि में उनके अभूतपूर्व कार्य ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया और हमारे देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की''

साथ ही उन्होंने कहा कि ''कृषि में अपने क्रांतिकारी योगदान के अलावा, डॉ. स्वामीनाथन नवप्रवर्तन के पावरहाउस और कई लोगों के लिए एक प्रेरक गुरु थे. अनुसंधान और परामर्श के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने अनगिनत वैज्ञानिकों और नवप्रवर्तकों पर एक अमिट छाप छोड़ी है.''

हरित क्रांति के जनक:

एमएस स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक (Father of India’s ‘Green Revolution) कहा जाता था. उन्होंने देश में पैदावार बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किये थे. देश में 'हरित क्रांति' की सफलता के लिए 1960 और 70 के दशक के दौरान सी सुब्रमण्यम और जगजीवन राम सहित कृषि मंत्रियों के साथ मिलकर उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया था.  

रासायनिक-जैविक प्रौद्योगिकी के अनुकूलन के माध्यम से गेहूं और चावल की उत्पादकता बढ़ाने में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. उन्हें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा "आर्थिक पारिस्थितिकी के जनक" (Father of Economic Ecology) के रूप में भी मान्यता दी गयी थी. 

वर्ल्ड फ़ूड प्राइज से किये गए थे सम्मानित:

भारत में गेहूं और चावल की किस्मों को विकसित करने और उनकी उत्पादकता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें 1987 में पहले विश्व खाद्य पुरस्कार (World Food Prize) से सम्मानित किया गया था. उन्होंने चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MS Swaminathan Research Foundation) की स्थापना भी की थी.     

स्वामीनाथन के बारें में 5 प्रमुख बातें:

1. एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले में हुआ था. वह एक कृषिविज्ञानी, कृषि वैज्ञानिक और प्रशासक थे. उन्होंने धान की उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई थी.  

2. स्वामीनाथन ने विभिन्न विभागों में विभिन्न पदों पर कार्य किया. उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का निदेशक (1961-72), आईसीएआर का महानिदेशक और भारत सरकार, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग का सचिव (1972-79) नियुक्त किया गया था. 

3. साथ ही वह प्रमुख सचिव, कृषि मंत्रालय (1979-80), कार्यवाहक उपाध्यक्ष और बाद में सदस्य (विज्ञान और कृषि). वह अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, फिलीपींस के महानिदेशक भी रहे थे. साल 2004 में, स्वामीनाथन को किसानों के लिए बने राष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जो आत्महत्या के मामलों के बीच किसानों के संकट को देखने के लिए गठित किया गया था. 

4. स्वामीनाथन को पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. स्वामीनाथन को 1971 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार सहित कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किये गए थे. इसके अलावा उन्हें  एच के फिरोदिया पुरस्कार, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार और इंदिरा गांधी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.   

5. स्वामीनाथन के परिवार में उनकी तीन बेटियां सौम्या स्वामीनाथन, मधुरा स्वामीनाथन और नित्या स्वामीनाथन हैं. उनकी पत्नी मीना का साल 2022 में निधन हो गया था. देश में अपने काम के अलावा, स्वामीनाथन विश्व स्तर पर एक शानदार व्यक्ति थे, जिन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कृषि और पर्यावरण पहलों में योगदान दिया था.  टाइम पत्रिका द्वारा उन्हें 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगों में से एक के रूप में नामित किया था. 

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