सभ्यताएं समय और समाज का प्रमाणित दर्पण होती हैं। पर्वत, आकाश, भूमि, वनस्पति और नदी जैसी प्राकृतिक संरचनाएं नीस मानव से लेकर संस्कृतियों के विकास तक संबंधित हैं, लेकिन ये संरचनाएं हमें प्रकृति में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों की धारणा बनाने में मदद करती हैं। इसके अलावा सभ्यताएं कई कारणों से नदी घाटियों में विकसित हुईं, क्योंकि मनुष्य हमेशा नदियों के बाढ़ के मैदानों में बसे थे।
इसमें बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि वहां होने वाली नियमित बाढ़ के कारण ये मिट्टी पोषक तत्वों से भरपूर थी और पानी प्रचुर मात्रा में था।
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भारतीय नदियों के प्राचीन एवं आधुनिक नाम
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
कुभु | कुर्रम |
कुभा | काबुल |
वितस्ताता | झेलम |
अस्किनी | चिनाब |
पुरुष्नी | रवि |
शतुद्रि | सतलुज |
विपाशा | ब्यास |
सदानीरा | गंडक |
दृषद्वति | घाघरा |
गोमती | गोमल |
सुवास्तु | स्वात |
सिंधु | सिंधु |
सरस्वती/दृष्टवर्ती | घाघर/राक्षी/चित्तग |
सुशोमा | सोहन |
मरुदवृध | मरुवर्मन |
जब हम भारतीय सभ्यता और संस्कृति की बात करते हैं, तो यह वैदिक संस्कृति और वैदिक संस्कृति के चार मूल ग्रंथों- ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद और सामवेद के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। ये ग्रन्थ ईश्वर को सर्वव्यापक निराकार रूप मानते हैं। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में नदियों का काफी महत्व रहा है। शायद इसीलिए हम भारतीय सामाजिक संस्कृति को 'गंगा-जमुनी संस्कृति' या 'गंगा-जमुनी तहज़ीब' भी कहते हैं।
इसलिए, हम कह सकते हैं कि किसी भी सभ्यता की विशेषताएं जैसे शहरी विकास, सामाजिक स्तरीकरण, श्रम की विशेषज्ञता, केंद्रीकृत संगठन और संचार के लिखित या अन्य औपचारिक साधन नदियों और उसकी घाटी के आसपास हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि नदी निवासियों को पीने और कृषि के लिए पानी का एक विश्वसनीय स्रोत देती है।
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