भारत में पायी जानी वाली मिट्टी की रूपरेखा का संक्षिप्त विवरण

Sep 6, 2017, 15:04 IST

मृदा खनिज और कार्बनिक घटकों का मिश्रण है जो पौधों के विकास का आधार है। इसका निर्माण इसके मूल चट्टानों के टूटने या उनमें होने वाली भौतिक और रासायनिक बदलावों के कारण होता है। इस लेख में हम भारत में पायी जानी वाली मिट्टी की रूपरेखा का संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं जिसका प्रयोग विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में अध्ययन सामग्री के रूप में किया जा सकता है।

मृदा खनिज और कार्बनिक घटकों का मिश्रण है जो पौधों के विकास का आधार है। इसका निर्माण इसके मूल चट्टानों के टूटने या उनमें होने वाली भौतिक और रासायनिक बदलावों के कारण होता है।

Soil Profile of India

इस लेख में हम भारत में पायी जानी वाली मिट्टी की रूपरेखा का संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं जिसका प्रयोग विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में अध्ययन सामग्री के रूप में किया जा सकता है।

भारत में पायी जानी वाली मिट्टी की रूपरेखा का संक्षिप्त विवरण

भारत में मुख्यतः चार प्रकार की मिट्टी पायी जाती है जिसका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है।

भारत में प्राकृतिक वनस्पति

जलोढ़ मिट्टी

1. इनका निर्माण नदियों द्वारा लाया गया अवसादों से होता है।

2. इसको 'नदी के मिट्टी' के नाम से भी जाना जाता है तथा नदी के घाटियों में मुख्य रूप से पाया जाता है।

3. यह रेत, मिट्टी और गाद का मिश्रण होता है जिसको दोमट भी कहा जाता है।

4. खादर जलोढ़ मिट्टी, मृदा के सबसे उपरी यानी नई परत को कहते हैं जो मानसून के दौरान जमा हो जाते हैं।

5. बांगर जलोढ़ मिट्टी सबसे पुरानी और निचले परत की मिट्टी को कहते हैं तथा यह चूने के नोड्यूल (कंकर) से बना होता हैं।

6. चावल, गेहूं, गन्ना, कपास, तंबाकू, ग्राम और तिलहन जैसे फसलों की खेती के लिए अनुकूल होता हैं। यह निचले गंगा ब्रह्मपुत्र घाटी में पटसन की खेती के लिए भी उपयोगी है।

7. यह सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के अंतर्देशीय मैदानों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम और राजस्थान के कुछ हिस्सों पायी जाती है।

भूमि संसाधन

काली मिट्टी

1. यह उनके मूल स्थान पर बनता है, अंतर्निहित चट्टानों के आवरण में इसका निर्माण होता है।

2. दक्कन लावा के इलाकों का हिस्सा जैसे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, यूपी, तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में दक्कन लावा के इलाकों के कुछ हिस्सों में पायी जाती है।

3. इस तरह की मिट्टी मृण्मय होती हैं और इनमे प्रचुर मात्र में चूने, लोहा और मैग्नीशियम होता है तथा फास्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की मात्रा कम होती है। इस मिट्टी की एक खासियत है की ये शुष्क मौसम में सिकुड़ कर फट जाते हैं जिसके वजह हवा का संचलन मिट्टी के अन्दर सही रहता है।

4. कपास, अनाज, ज्वार, तिलहन, तंबाकू, गन्ना, गेहूं, सब्जियां, चना की खेती के लिए भी उपयोगी है।

भारत में झीलें

लाल मिट्टी

1. पुराने क्रिस्टलीय चट्टानों से इनका निर्माण हुआ है।

2. इसमें बहुत सारे लोहे के आक्साइड होते हैं जो इसे भूरे रंग या भूरे रंग का बना देता है।

3. तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और दक्षिण-पूर्व महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, बुंदेलखंड, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड के कुछ हिस्सों में पायी जाती है।

4. यह छिद्रयुक्त मिट्टी होती है जिसमे लोहे के ऑक्साइड प्रचुर मात्र में होती है तथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम और धरण की मात्र कम होती है।

5. लगभग सभी फसल के प्रकारों के लिए उपयुक्त होते हैं, खासकर सब्जियां, चावल, रागी, तंबाकू, भूरा अखरोट और आलू।

नदी के पानी की उपयोगिता

मखरला (Laterite) मिट्टी

1. शुष्क एवं आद्र मौसम में उच्च तापमान और वर्षा के फलस्वरूप चट्टानों के अपक्षय के कारण इसका निर्माण हुआ है. इसके अलावा इसका निर्माण निक्षालन प्रकिया के तहत भी होता है।

2. प्रसार: प्रायद्वीपीय पठार के ऊंचाई वाले क्षेत्र विशेष रूप से सह्याद्री, पूर्वी घाट, राजमहल पहाड़ियों और प्रायद्वीप क्षेत्र के पूर्वी हिस्से।

3. विशेषता: उच्च अम्लता और कम नमी को धारण करने के कारण कम उपजाऊ. कम ऊंचाई वाले क्षेत्र में खाद का प्रयोग कर भूमि को रागी, चावल, गन्ना और धान के लिए उपयुक्त बनाया जा सकता है, जबकि अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में चाय, सिनकोना, रबड़ और कॉफी की खेती की जा सकती है।

उपरोक्त लेख में हमने भारत में पायी जानी वाली मिट्टी की रूपरेखा का संक्षिप्त विवरण दिया है जिसका प्रयोग विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में अध्ययन सामग्री के रूप में किया जा सकता है।

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