दिल्ली का इतिहास उठाकर देखें, तो यह सदियों से व्यापार और वाणिज्य का केंद्र रहा है। यहां सालों से ऐसे परिवार रहे हैं, जिन्हें न सिर्फ सेठ या लाला कहा जाता था, बल्कि इन्होंने दिल्ली के विकास में भी अहम योगदान दिया। इस कड़ी में दिल्ली के एक सेठ ऐसे भी हैं, जो कभी दिल्ली के सबसे अमीर आदमी हुआ करते थे।
यह वह सेठ हैं, जिनके घर दिल्ली में सबसे पहले बिजली, कार और टेलीफोन कनेक्शन पहुंचा था। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इन सेठ ने ही दिल्ली में यमुना पर बनने वाले लोहे पुल के लिए अंग्रेजों को आर्थिक मदद की थी। कौन थे यह सेठ और दिल्ली में कहां से हैं इनका ताल्लुक, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
चांदनी चौक के सेठ चुन्नामल
चांदनी चौक इतिहास के कई परतों में सिमटा हुआ है। यहां परत दर परत अतीत की कई कहानियां और किस्से छिपे हुए हैं। इस कड़ी में यहां सेठ चुन्नामल और उनकी हवेली भी है। यह हवेली करीब 200 साल पुरानी है, जिसे सेठ राय चुन्नामल द्वारा बनवाया गया था।
कौन थे सेठ चुन्नामल
सेठ चुन्नामल कपड़ों के एक बड़े व्यापारी थे। साथ ही, दिल्ली लंदन बैंक में उनका बड़ा शेयर था। वह एक बड़े साहूकार थे, जो कि राजा-महाराजाओं को भी उधारी देने का काम करते थे। उन्होंने अपने समय पर अंग्रेजों को भी उधारी दी थी। सेठ चुन्नामल ब्रिटिश काल में नगर निगम के पहले आयुक्त भी रहे हैं।
1857 की क्रांति के बाद बने दिल्ली के सबसे अमीर व्यक्ति
दिल्ली में जब 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों का कब्जा हुआ, तो दिल्ली में उस समय बहुत ही कम लोग बचे थे, जिनमें बड़े व्यापारी और लाला शामिल थे। इनमें से एक सेठ चुन्नामल भी शामिल थे। सेठ चुन्नामल अपने कपड़ा व्यापार और उधारी के लिए जाने जाते थे। धीरे-धीरे उन्होंने व्यापार को बढ़ाया और दिल्ली के सबसे अमीर व्यक्ति बने।
सबसे पहले खरीदी कार, टेलीफोन कनेक्शन और बिजली
सेठ चुन्नामल दिल्ली के उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने दिल्ली में सबसे पहली कार खरीदी थी। वहीं, दिल्ली में सबसे पहला टेलीफोन कनेक्शन भी दिल्ली की चुन्नामल हवेली में ही पहुंचा था। दिल्ली में सबसे पहले बिजली कनेक्शन भी यहां लगाया गया था।
खरीद ली थी फतेहपुरी मस्जिद
सेठ चुन्नामल की हवेली दिल्ली के चांदनी चौक के मुख्य रोड पर है। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज चांदनी चौक की फतेहपुरी मस्जिद को तोड़ दुकानें बनाना चाहते थे। लेकिन, सेठ चुन्नामल ने उस समय 19,000 रुपये में अंग्रेजों से फतेहपुरी मस्जिद को खरीद लिया था। उन्होंने इस मस्जिद को खरीदा और 1877 तक इस मस्जिद को संरक्षित रखा। 1877 में जब दिल्ली में फिर से लोगों की आवाजाही शुरू हुई, तो अंग्रेजों ने फिर से फतेहपुरी मस्जिद को वापस ले लिया और इसके बदले में सेठ चुन्नामल को चार गावों की जागीरदारी दी गई थी।
पढ़ेंःउत्तर प्रदेश का वह जिला, जो दो राज्यों में आता है, यह है नाम
Comments
All Comments (0)
Join the conversation