सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) क्या है?

Oct 4, 2019, 13:10 IST

AFSPA; वर्तमान मेंजम्मू और कश्मीर, असम, नागालैंड, मणिपुर (इम्फाल नगरपालिका क्षेत्र को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश के 3 जिलों तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग के साथ-साथ असम से लगने वाले अरुणाचल प्रदेश के अधिकार क्षेत्र वाले के 8 पुलिस स्टेशनों में अभी भी लागू है. सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA); उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था. जब 1989 के आस पास जम्मू & कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां भी लागू कर दिया गया था. 

AFSPA
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सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) क्या है?

सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था. जब 1989 के आस पास जम्मू & कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां भी लागू कर दिया गया था.

किसी क्षेत्र विशेष में AFSPA तभी लागू किया जाता है जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को “अशांत क्षेत्र कानून” अर्थात डिस्टर्बड एरिया एक्ट (Disturbed Area Act) घोषित कर देती है. AFSPA कानून केवल उन्हीं क्षेत्रों में लगाया जाता है जो कि अशांत क्षेत्र घोषित किये गए हों. इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं.

AFSPA को सितंबर 1958 को अरुणाचल प्रदेश, असम,त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था. पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा रोकने के लिए इसे लागू किया गया था.

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किसी राज्य या क्षेत्र को डिस्टर्ब क्षेत्र कब घोषित किया जाता है?

जब किसी क्षेत्र में नस्लीय, भाषीय, धार्मिक, क्षेत्रीय समूहों, जातियों की विभिन्नता के आधार पर समुदायों के बीच मतभेद बढ़ जाता है, उपद्रव होने लगते हैं तो ऐसी स्थिति को सँभालने के लिये  केंद्र या राज्य सरकार उस क्षेत्र को “डिस्टर्ब” घोषित कर सकती है.

अधिनियम की धारा (3) के तहत, राज्य सरकार की राय का होना जरूरी है कि क्या एक क्षेत्र “डिस्टर्ब” है या नहीं. एक बार “डिस्टर्ब” क्षेत्र घोषित होने के बाद कम से कम 3 महीने तक वहाँ पर स्पेशल फोर्स की तैनाती रहती है.

किसी राज्य में AFSPA कानून लागू करने का फैसला या राज्य में सेना भेजने का फैसला केंद्र सरकार नहीं बल्कि राज्य सरकार को करना पड़ता है. अगर राज्य की सरकार यह घोषणा कर दे कि अब राज्य में शांति है तो यह कानून अपने आप ही वापस हो जाता है और सेना को हटा लिया जाता है.

AFSPA कानून में सशस्त्र बलों के अधिकारी को क्या-क्या शक्तियां मिलती हैं?

AFSPA कानून का सबसे बड़ा विरोध इसमें सशस्त्र बलों को दी जाने वाली दमनकारी शक्तियां ही हैं. कुछ शक्तियां इस प्रकार हैं;

1. किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है.

2. सशस्त्र बल बिना किसी वारंट के किसी भी घर की तलाशी ले सकते हैं और इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल किया जा सकता है.

3. यदि कोई व्यक्ति अशांति फैलाता है, बार बार कानून तोड़ता है तो मृत्यु तक बल का प्रयोग कर किया जा सकता है.

4. यदि सशस्त्र बलों को अंदेशा है कि विद्रोही या उपद्रवी किसी घर या अन्य बिल्डिंग में छुपे हुए हैं (जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो) तो उस आश्रय स्थल या ढांचे को तबाह किया जा सकता है.

5. वाहन को रोक कर उसकी तलाशी ली जा सकती है.

6. सशस्त्र बलों द्वारा गलत कार्यवाही करने की दशा में भी, उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही नही की जाती है.

AFSPA के पक्ष में तर्क; (Points in Favour of ASFPA)

1. AFSPA द्वारा मिली शक्तियों के आधार पर ही सशस्त्र बल देश में उपद्रवकारी शक्तियों के खिलाफ मजबूती से लड़ पा रहे हैं और देश की एकता और अखंडता की रक्षा कर पा रहे हैं.

2. AFSPA की ताकत से ही देश के अशांत हिस्सों जैसे जम्मू & कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में आतंकी संगठनों और विद्रोही गुटों जैसे उल्फा इत्यादि से निपटने में सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ा है.

3. देश के अशांत क्षेत्रों में कानून का राज कायम हो सका है.

AFSPA के विपक्ष में तर्क; (Points against ASFPA)

1. सुरखा बलों के पास बहुत ही दमनकारी शक्तियां हैं जिनका सशस्त्र बल दुरूपयोग करते हैं.फर्जी एनकाउंटर, यौन उत्पीड़न आदि के मामले इसका पुख्ता सबूत हैं.

2. यह कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है.

3. इस कानून की तुलना अंग्रेजों के समय के “रौलट एक्ट” से की जा सकती है क्योंकि इसमें भी किसी को केवल शक के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है.

4. यह कानून नागरिकों के मूल अधिकारों का निलंबन करता है.

AFSPA कानून के आलोचकों का तर्क है कि जहाँ बात वैलेट से बन सकती है वहां पर बुलेट चलाने की कोई जरुरत नही है. यदि यह कानून लागू होने के 60 वर्ष बाद भी अपने उद्येश्यों में सफल नही हो पाया और इसके द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों का पुख्ता तौर पर हनन हुआ है तो निश्चित रूप से इस कानून के प्रावधानों की समीक्षा की जाने की जरुरत है.

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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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