बॉम्बे ब्लड ग्रुप एक बहुत ही दुर्लभ ब्लड टाइप है। इसे सबसे पहले 1952 में भारत के मुंबई (पहले बॉम्बे) शहर में डॉ. वाई. एम. भेंडे ने खोजा था। इसे hh ब्लड ग्रुप या बॉम्बे फीनोटाइप भी कहा जाता है। इसकी पहचान यह है कि लाल रक्त कोशिकाओं पर H एंटीजन बिल्कुल नहीं होता है। यह H एंटीजन सामान्य ABO ब्लड ग्रुप एंटीजन बनाने के लिए एक जरूरी हिस्सा है।
बॉम्बे ब्लड ग्रुप: मुख्य विशेषताएं
एंटीजन प्रोफाइल:
बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले लोगों की लाल रक्त कोशिकाओं पर A, B, और H एंटीजन नहीं होते हैं। उनके प्लाज्मा में इन तीनों (एंटी-A, एंटी-B, और एंटी-H) के खिलाफ एंटीबॉडी होते हैं। इसलिए, उनका खून बाकी सभी जाने-माने ब्लड टाइप से अलग होता है।
व्यापकता
यह बहुत दुर्लभ है। भारत में यह 10,000 लोगों में से 1 में और दुनिया भर में 10 लाख लोगों में से 1 में पाया जाता है। दक्षिण एशिया के कुछ इलाकों में यह ज्यादा पाया जाता है। इसका कारण जेनेटिक है, जैसे कि एक ही समुदाय में शादियां होना।
जेनेटिक आधार
बॉम्बे फीनोटाइप FUT1 जीन में म्यूटेशन (बदलाव) के कारण होता है। यह जीन H एंटीजन (फ्रुक्टोसिलट्रांसफेरेज) बनाने का काम करता है। H एंटीजन के बिना शरीर A या B एंटीजन नहीं बना पाता, भले ही उनके लिए जीन मौजूद हों।
खोज और इतिहास
बॉम्बे ब्लड ग्रुप की खोज 1952 में मुंबई के दो मरीजों में खून चढ़ाने के दौरान हुई अजीब प्रतिक्रियाओं के बाद हुई। सामान्य ब्लड टाइपिंग का तरीका काम नहीं कर रहा था, क्योंकि उनका खून किसी भी ABO ग्रुप से मेल नहीं खा रहा था। बहुत जांच-पड़ताल के बाद, उसी समुदाय के एक व्यक्ति की पहचान की गई, जिनका ब्लड ग्रुप इन मरीजों से मेल खाता था। यह इस तरह का पहला दर्ज किया गया मामला था।
खून चढ़ाने से जुड़ी चुनौतियां
बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले लोग किसी भी दूसरे ब्लड ग्रुप का खून नहीं ले सकते, यहां तक कि O-टाइप का भी नहीं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बाकी सभी ग्रुप में H एंटीजन होता है, जो एक खतरनाक और कभी-कभी जानलेवा इम्यून रिएक्शन (एक्यूट हेमोलिसिस) पैदा कर सकता है।
गलत पहचान का खतरा
सामान्य ABO ब्लड ग्रुपिंग टेस्ट में अक्सर बॉम्बे ब्लड ग्रुप को गलती से O टाइप मान लिया जाता है, जब तक कि H एंटीजन के लिए विशेष जांच न की जाए। खून चढ़ाने के दौरान होने वाली जानलेवा प्रतिक्रियाओं से बचने के लिए इसकी सही पहचान बहुत जरूरी है।
ब्लड बैंक में रजिस्ट्री
इस ब्लड ग्रुप वाले लोगों के लिए यह जरूरी है कि वे विशेष नेटवर्क और ब्लड बैंकों में अपना नाम दर्ज कराएं। इससे आपातकालीन स्थिति में दुर्लभ डोनर को जल्दी ढूंढा जा सकता है।
बॉम्बे ब्लड ग्रुप की पहचान कैसे होती है?
इसकी पहचान के लिए खास तौर पर एंटीजन H की जांच करनी पड़ती है, जो सामान्य ब्लड ग्रुपिंग में शामिल नहीं होती। साथ ही, एंटी-H एंटीबॉडी की मौजूदगी का पता लगाने के लिए रिवर्स ग्रुपिंग की जाती है, जो इसे सामान्य O टाइप से अलग करती है।
गलत खून चढ़ाने के लक्षण
जब गलत पहचान के कारण सामान्य खून चढ़ा दिया जाता है, तो इसके लक्षणों में बुखार, पीठ दर्द और लाल-भूरे रंग का पेशाब शामिल है। यह खतरनाक हेमोलिटिक रिएक्शन और किडनी को नुकसान पहुंचने का संकेत है।
वैश्विक और सामाजिक प्रभाव
दक्षिण एशिया में खास तौर पर मुंबई में, इसके मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। इसका कारण जेनेटिक ट्रांसमिशन और स्थानीय विवाह परंपराएं हैं।
मेडिकल स्टाफ को बॉम्बे फीनोटाइप की पहचान करने और इसकी जांच करने के लिए शिक्षित करने की जरूरत है। यह उन समुदायों में और भी जरूरी है जहां यह ज्यादा आम है।
बॉम्बे ब्लड ग्रुप के बारे में रोचक तथ्य
-बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले लोग किसी भी दूसरे ABO ग्रुप को खून दे सकते हैं (क्योंकि उनके खून में ABO एंटीजन नहीं होते)। लेकिन, वे खून सिर्फ अपने ही ग्रुप से ले सकते हैं।
-इसका नाम इसकी खोज की जगह पर रखा गया,
क्योंकि इसकी खोज मुंबई में हुई थी, इसलिए इसका अंतरराष्ट्रीय नाम "बॉम्बे ब्लड ग्रुप" पड़ा।
-बॉम्बे ब्लड ग्रुप (hh फीनोटाइप) मानव जेनेटिक विविधता और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन का एक दुर्लभ, लेकिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण पहलू है। इस अनोखे ब्लड टाइप वाले लोगों की सुरक्षा के लिए इसकी पहचान, सही जांच और विशेषज्ञ ब्लड बैंक नेटवर्क बहुत जरूरी हैं।
Comments
All Comments (0)
Join the conversation