जम्मू और कश्मीर, 31 अक्टूबर 2019 को केंद्र शासित प्रदेश बन गया था.वर्तमान में भारत 28 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों का एक संघ है. इस प्रदेश में बहुत लम्बे समय से सुरक्षा और अन्य कारणों से या तो इन्टरनेट सेवाएँ बंद थीं या फिर केवल 2G इन्टरनेट सेवाएँ चल रहीं हैं.
सुस्त इन्टरनेट सेवाओं के कारण कश्मीर के कई संगठन लगातार मांग कर रहे हैं कि प्रदेश में 4G इन्टरनेट सेवाएँ जल्दी बहाल की जानी चाहिए.
लेकिन इसके ऊपर विवाद की स्थिति बन चुकी है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार इसे सुरक्षा को ठीक रखने की दिशा में उठाया गया कदम मान रहे हैं और कश्मीर के लोग इसे अपने मूल अधिकारों का उल्लंघन मान रहे हैं.
सरकारों का मानना है कि कश्मीर में अभी भी आतंकवादी मॉड्यूल का अस्तित्व है और इस मॉड्यूल को चलाने वाले आतंकी सरगना सीमापार बैठकर घाटी में फर्जी ख़बरों,और भड़काने वाले संदेशों के द्वारा कश्मीर के युवाओं को भड़काते हैं. इस प्रकार कश्मीर में यदि तेज इन्टरनेट सेवा बहाल कर दी जाती है तो इसका दुरूपयोग बड़े पैमाने पर होगा जिससे प्रदेश में शांति और व्स्वस्था की स्थिति बिगड़ेगी.
जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने अदालत को बताया था कि आतंकवादी गतिविधियों और भड़काऊ सामग्रियों के माध्यम से लोगों को उकसाने के कई मामले सामने आये हैं. विशेष रूप से नकली वीडियो और भड़काऊ तस्वीरें, जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा और कानून व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले हैं.
दूसरी तरफ यह भी सच्चाई है कि कश्मीर में केवल 2G इन्टरनेट सेवाओं की बहाली से बच्चों को ऑनलाइन क्लास करने में भी आपत्ति हो रही है क्योंकि कोरोना वायरस के कारण स्कूल और कॉलेज बंद चल रहे हैं.
इसके अलावा बहुत से ऐसे बिज़नेस भी होते हैं जो कि केवल तेज इन्टरनेट के माध्यम से ही चलाये जाते हैं. इस कारण केवल 2G सेवाओं से प्रदेश में व्यवसाय पर भी बुरा असर पड़ रहा है.
इसी बात को मद्देनजर रखते हुए फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स, और जम्मू कश्मीर प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने 11 मई, 2020 को सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि कश्मीर में तत्काल 4G इन्टरनेट सेवाएँ बहाल की जाएँ ताकि बच्चों की शिक्षा और व्यवसाय शुरू किया जा सके.
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Supreme Court decision of the writ Petition):-
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एनवी रमन ने कहा कि हम समझते हैं कि केंद्र शासित प्रदेश (जम्मू और कश्मीर) संकट में है और अदालत देश भर में उत्पन्न हुई कोरोना महामारी से संबंधित चिंताओं का भी संज्ञान ले रही है. लेकिन अदालत को यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच संतुलन होना चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए कि मानवाधिकारों से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो".
11 मई को जम्मू-कश्मीर में हाई-स्पीड इंटरनेट की बहाली की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को घाटी में तेज़ इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध की समीक्षा के लिए एक समिति गठित करने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "विशेष समिति" में जम्मू और कश्मीर के मुख्य सचिव, केंद्रीय गृह सचिव (अध्यक्ष) और केंद्रीय संचार सचिव शामिल होने चाहिए. कोर्ट ने आदेश दिया कि समिति इस बात पर चर्चा करे कि क्या जम्मू और कश्मीर में प्रचलित इंटरनेट प्रतिबंध आवश्यक हैं साथ ही याचिकाकर्ताओं की चिंताओं पर विचार करे?
यह बहुत आश्चर्य की बात है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के एक महीने बाद भी विशेष समिति का गठन नहीं किया गया है. इससे भी ज्यादा यह बात हास्यास्पद है कि जिन दो अधिकारियों ने प्रदेश में 4G सर्विसेज को रोका था उन्हें ही इस समिति का सदस्य बनाया गया है.
अब गेंद केंद्र और राज्य सरकार के पाले में हैं कि वह तय करे कि किस तरह से मानव अधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच तारतम्य बैठाया जाये ताकि राष्ट्र के हितों से समझौता किये बिना मानवाधिकारों की भी रक्षा की जा सके.
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