सौरमंडल में शनि ग्रह सूर्य से छठे स्थान पर है और ब्रहस्पति के बाद यह सबसे बड़ा ग्रह है.
इस ग्रह को पृथ्वी से देखा जा सकता है. यह पृथ्वी से सूर्य, चाँद, शुक्र और ब्रहस्पति ग्रह के बाद सबसे ज्यादा चमकीला दिखता है.
शनि ग्रह सबसे ज्यादा चपटा (flat) ग्रह है. इसका ध्रुवीय व्यास इसके भू-मध्य रेखिए व्यास का 90% है क्योंकि इसका घनत्व कम है और अपनी धुरी के समक्ष तेजी से घूमता है.
क्या आप जानते है कि शनि ग्रह 10 घंटे और 34 मिनट में अपनी धुरी के समक्ष एक चक्कर पूरा कर लेता है. इसलिए ब्रहस्पति के बाद इसका एक दिन बाकी सभी ग्रहों से छोटा होता है. ब्रहस्पति का एक दिन 9 घंटे 55 मिनट का है.
शनि ग्रह में बड़े-बड़े छल्ले होते हैं, इसलिए इसे "सौरमंडल के गहने" के रूप में जाना जाता है. इसकी यह अनूठी प्रणाली एक मुकुट की तरह दिखती है.
इसी प्रकार के छल्ले ब्रहस्पति, यूरेनस और नेपच्यून ग्रहों में भी होते है परन्तु शनि ग्रह के छल्ले आकार और संख्या में ज्यादा हैं.
आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते है कि शनि ग्रह में छल्ले क्यों होते है और यह कैसे बनते हैं.
शनि ग्रह के छल्लों के पीछे का इतिहास
-ग्रह को गैलिलियो (Galileo) ने सन 1610 में सबसे पहले दूरबीन द्वारा देखा था.
- सन 1656 में, क्रिस्टियान हाइगेन्स (Christian Huygens) ने सबसे पहले इन अनूठे छल्लों के स्वरूपों की पहचान की थी.
- जीन कैसिनी (Jean Cassini ) ने बताया कि शनि ग्रह में दो संकिंद्रिक छल्लें (concentric rings) हैं, जो कि डार्क बैंड (dark band) के द्वारा अलग होते हैं. यह सारे छल्ले एक चपटे चक्र में एक के अन्दर एक हैं.
- सौ वर्ष या उससे अधिक के भीतर एक और आंतरिक छल्ला जो आंशिक रूप से पारदर्शी था, की पहचान की गई.
- सन 1856 में, एडम्स पुरस्कार (Adams Prize) विषय पर गणितीय रूप से शनि ग्रह के छल्ले की संरचना निर्धारित करने का निर्णय लिया गया था.
- इसके अलावा, मैक्सवेल (Maxwell's) के तरीके सरल थे; उन्होंने प्लेनेट-रिंग कॉन्फ़िगरेशन (planet-ring configuration) की खोज की थी.
- मैक्सवेल (Maxwell) के अनुसार ठोस छल्ला साध्य और समरूपी नहीं था इसलिए उन्होंने तरल पदार्थ से बने छल्ले का अध्ययन किया और पाया कि यह तरल छल्ले फोर्स को संतुलित करते हैं ताकि ग्रह के चारो और चक्कर लगा सकें. उन्होंने छल्लों में तरंग गति का भी विश्लेषण किया था.
- कीलर की पुष्टि (Keeler's confirmation): जेम्स कीलर अमेरिकी खगोल वैज्ञानिक थे, 9 अप्रैल 1895 को उन्होंने साबित किया कि छल्ले छोटे उल्कात्मक (meteoric) कणों से बने होते हैं.
शनि ग्रह के छल्ले किससे बने हुए हैं
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- शनि ग्रह के छल्ले छोटे-छोटे कणों से बने हुए हैं. यह कण मुख्य रूप से पानी की बर्फ के बने हैं पर इनमें चट्टानों के कण भी शामिल हैं. इन कणों का आकार कुछ सेंटीमीटर से लेकर कुछ मीटर तक का है. यह कण अपने छल्ले में रहकर स्वतंत्र रूप से शनि की परिक्रमा करते हैं.
- शनि ग्रह का आंतरिक ढांचा लोहा, निकल, सिलिकॉन और ऑक्सीजन यौगिक चट्टानों के एक कोर से बना है. यह हाइड्रोजन धातु की एक मोटी परत से घिरा हुआ है. तरल हाइड्रोजन और तरल हीलियम की एक मध्यवर्ती परत तथा एक बाह्य गैसीय परत भी होती है. इस ग्रह का रंग हलका पीला लगता है क्योंकि इसके उपरी वायुमंडल में अमोनिया के क्रिस्टल होते है. हाइड्रोजन की परत होने के कारण ग्रह के भीतर विद्युतीय धारा, इसके चुंबकीय क्षेत्र को उभार देती है.
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शनि ग्रह में कितने छल्ले होते हैं
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- वैज्ञानिकों के अनुसार शनि ग्रह में मुख्य तौर पर सात अलग-अलग प्रकार के छल्ले है और इन्हें इनकी खोज के अनुसार ही वर्णित किया गया है. शनि ग्रह के सबसे नजदीक जो छल्ला है वह है D जो कि तीन उज्ज्वल और सबसे बड़े छल्लों, C, B और A द्वारा घिरा हुआ है. छल्ला A, छल्ला F से घिरा हुआ है और उसके बाहर G छल्ला है और फिर अंततः छल्ला E है.
- इन छल्लों को ऐसे भी समझा सकता है कि शनि ग्रह के सभी छल्ले एक तल पर ही हैं. इसे 14 मुख्य भागों में बांटा गया है जिनमें से 12 छल्ले है और 2 रिक्त स्थान. जो निम्नलिखित है: D Ring, C Ring, B Ring, Cassini Division, A Ring, Roche Division, F Ring, Janus Ring, G Ring, Methone Ring Arc, Anthe Ring Arc, Pallene Ring, E Ring and Phocbe Ring.
- आपको बता दें कि A, B और C छल्ले पृथ्वी से देखे जा सकते हैं. A और B छल्लों के बीच के रिक्त स्थान को कासीनी डिवीजन (Cassini Division) कहते हैं.
- नासा (NASA) के अनुसार, छल्ले 175,000 मील तक फैले हुए हैं, अर्थात् ग्रह से 282,000 किलोमीटर. ये सभी छल्ले एक दूसरे के करीबी पड़ोसी हैं, लेकिन छल्ला A और B को छोड़कर जिसका कैसिनी गेप 2,920 मील चौड़ा और दूरी 4700 किलोमीटर है. यह 17वीं सदी में एक इतालवी खगोलविद Giovanni Domenico Cassini द्वारा खोजा गया था.
- अविश्वसनीय चौड़ाई होने पर भी, ये छल्ले पैनकेक की तरह पतले हैं, अधिकांश स्थानों में 33 फीट या 10 मीटर की मोटाई या अन्य में एक किलोमीटर मोटे है. हैरान करने वाली बात यह है कि शनि ग्रह इतना विशाल हैं कि 764 पृथ्वी इस चक्राकार ग्रह में फिट हो सकती हैं.
- प्रत्येक छल्लों में अलग-अलग घनत्व होता है. कुछ छल्लों में प्रोपेलर्स (propellers) के रूप में जाने वाली एक विषम विशेषता होती हैं, जो छोटे-छोटे चंद्रमा के कारण होती हैं, जो कि कैसिनी अंतराल (Cassini gaps) जैसी दरार को खोलने के लिए हैं. छल्लों में भी प्रवक्ता होते हैं, जो छल्ले में रेखाओं की तरह लगते हैं. ये प्रवक्ता कुछ नहीं बल्कि बर्फ के कण हैं जो छल्ले की सतह के ऊपर पाए जाते हैं लेकिन वे अस्थायी हैं.
शनि ग्रह के छल्ले कैसे बनते हैं?
- अलग-अलग वैज्ञानिकों का इस पर अलग-अलग विचार है कि शनि ग्रह में छल्ले कैसे बनते हैं. कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार जब सौरमंडल का आदिग्रह चक्र हमारे सूरज और ग्रहों को जन्म दे रहा था, तो कुछ मलबा शनि के इर्द-गिर्द बच गया जो आगे चलकर उसके छल्लों के रूप में स्थाई हो गया और बताया गया कि इन छल्लों में 11% से भी अधिक बर्फ़ है.
- कुछ वैज्ञानिक कहते है कि यह छल्ले धूलकणों से बनते हैं. G छल्ले के आसपास उपग्रह नहीं होने के कारण इसके धूलकण एक निश्चित स्थान पर नहीं रह पाते. शनि का उपग्रह एनसिलाडस अपने निकटवर्ती वलय को सीधे तौर पर नए धूलकणों की आपूर्ति करता है, जबकि प्रोमेथियस और पंडोरा उपग्रह एफ-रिंग के कणों को एक निश्चित क्षेत्र में बाँधे रखने में सहायक होते हैं.
शनि ग्रह के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
सूर्य से दूरी : 142 करोड़ 66 हज़ार 422 किलोमीटर (9.58 AU)
एक दिन : 10 घंटे 34 मिनट
एक साल : पृथ्वी के 29.45 साल या 10,755.70 दिन के बराबर
Mass : 5,68,319 खरब किलोग्राम यानी पृथ्वी से 95.16 गुणा ज्यादा
भू-मध्य रेखिए घेरा : 3,62,882 किलोमीटर
सतह पर औसतन तापमान : - 139 डिग्री सेल्सियस
उपरोक्त लेख से ज्ञात होता है कि शनि ग्रह में धूल की चट्टान और बर्फ के कण वाले छल्ले हैं जो सबसे बड़े और चमकीले हैं, यह छल्ले किस अवस्था में शनि ग्रह में मौजूद है, कैसे बनते है आदि.
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