भारत में लोकतंत्र का महापर्व यानि कि लोकसभा चुनाव का पर्व शुरू हो गया है। देश की 18वीं लोकसभा के लिए 19 अप्रैल से लोग चुनावी रंग में रंगने जा रहे हैं। चुनावी प्रक्रिया को सात चरणों में संपन्न किया जाएगा, जो कि 19 अप्रैल से शुरू होकर एक जून को समाप्त होगी।
ऐसे में लगभग डेढ़ माह भारत में मतदान प्रक्रिया चलेगी। मतदान के बाद हमें सोशल मीडिया पर लोगों की चुनावी स्याही लगी अंगुली के साथ फोटो नजर आती है। यह स्याही कई दिनों तक हमारी अंगुली का साथ नहीं छोड़ती है। हालांकि, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्या वजह है कि जो यह स्याही कई दिनों तक हमारी अंगुली पर लगी रहती है। क्या है इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण, जानने के लिए यह पूरा लेख पढ़ें।
कहां तैयार होती है चुनावी स्याही
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि आखिर करोड़ों अंगुलियों पर लगने वाली यह चुनावी स्याही भारत में कहां तैयार होती है, तो आपको बता दें कि यह भारत के कर्नाटक राज्य में तैयार होती है।
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कौन-सी कंपनी तैयार करती है चुनावी स्याही
अब सवाल है कि आखिर भारत में कौन-सी कंपनी है, जो कि लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व के लिए चुनावी स्याही को तैयार करती है। दरअसल, एक दक्षिण भारत की कंपनी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड द्वारा चुनावी स्याही को तैयार किया जाता है। मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार द्वारा इसकी शुरुआत की गई थी।
साल 1937 में इस कंपनी की शुरुआत हुई थी। यह कंपनी अन्य देशों के लिए भी चुनावी स्याही को तैयार करने का काम करती है। साथ ही पेंट का भी निर्माण करती है।
भारत में पहली बार कब इस्तेमाल हुई स्याही
भारत में पहली बार इस स्याही को साल 1962 के चुनावों में इस्तेमाल किया गया था। चुनावी प्रक्रिया में इसे इस्तेमाल करने का श्रेय पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है।
क्यों नहीं मिटती स्याही
इस इंक को हम इलेक्शन इंक या इनडेलिबल इंक के रूप में भी जानते हैं। इसमें सिल्वर नाइट्रेट केमिकल मिला होता है, जो कि हमारे शरीर पर लगने के बाद शरीर में मौजूद सोडियम क्लोराइड(नमक) से प्रतिक्रिया करता है। यह हमारे शरीर के नमक से प्रतिक्रिया के बाद सिल्वर क्लोराइड बनाता है, जो कि पानी के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता है, बल्कि पानी पड़ने पर यह काला पड़ जाता है।
ऐसे में यह स्याही 72 घंटे तक अपने निशान नहीं छोड़ती है। शरीर पर जिस जगह पर चुनावी स्याही लगी है, वहां नए सेल के उत्पन्न होने से इसके निशान जाते हैं।
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