भारत में अलग-अलग जगहों पर शिव मंदिर हैं। वहीं, इन्हीं शामिल है शिव के 12 ज्योतिर्लिंग, जो कि भक्तों की आस्था का केंद्र हैं और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में दो ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश राज्य में हैं। इनमें से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के रूप में प्रसिद्ध है, जो कि उज्जैन में है। वहीं, दूसरा ज्योतिर्लिंग खंडवा में है, जो कि नर्मदा नदी के किनारे है। यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध मंदिर है, जहां दुनियाभर से शिवभक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। आज हम इस लेख के माध्यम से इस मंदिर से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में जानेंगे। जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
ओंकारेश्वर का परिचय
ओंकारेश्वर मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर है। इस शब्द का सबसे पहला उच्चारण ब्रह्मा के मुख से हुआ था। यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के प्रमुख शहर इंदौर से 44 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहीं, यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो कि नर्मदा नदी के उत्तर तट पर स्थित है।
ऊं द्वीप पर है यह मंदिर
मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, इस जगह पर नर्मदा नदी दो भागो में बटकर मंधाता या शिवपुरी द्वीप का निर्माण करती है। यह द्वीप चार किलोमीटर लंबा और दो किलोमीटर चौड़ा है। इस द्वीप का आकार ऊं के दृश्य के रूप में दिखता है।
मंदिर की वास्तुकला
मंदिर का निर्माण उत्तर भारतीय वास्तुकला में किया गया है। हालांकि, मंदिर के संबंध में यह जानकारी नहीं है कि मंदिर का निर्माण किस सदी में किया गया था। यह मंदिर पांच मंजिला मंदिर है, जिसमें सबसे नीचे श्री ओंकारेश्वर देव फिर श्री महाकालेश्वर, श्री सिद्धनाथ, श्री गुप्तेश्वर और अंत में ध्वजाधारी देवता हैं।
क्या है पौराणिक मान्यता
भगवान शिव का यह मंदिर कई शिवभक्तों की आस्था का केंद्र है। यहां पर दिन के तीनों पहर में आरती की जाती है। वहीं, शाम की आरती के बाद यहां पर चौपड़ बिछाने के साथ श्यनकक्ष लगाया जाता है। जागरण डॉट कॉम पर साझा की गई जानकारी के मुताबिक, ऐसी मान्यता है कि शाम की आरती के बाद यहां भगवान शिव और पार्वती चौपड़ खेलने के लिए आते हैं। ऐसे में आरती के बाद यहां पर शाम को मंदिर के पुजारी चौपड़ बिछा देते हैं, जिसके बाद मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है। मंदिर के कपाट बंद होने के बाद किसी भी व्यक्ति को इस मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाता है। वहीं, अगली सुबह ही मंदिर के कपाट को भक्तों के लिए खोला जाता है। मान्यताओं के अनुसार, अगले दिन चौपड़ की गोटियां बिखरी हुई मिलती हैं। ऐसे में पुराने समय से इस परंपर का पालन किया जा रहा है।
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