मिलिए भारत के सबसे युवा CEO ब्रदर्स से, स्कूल में पढ़ते हुए खड़ी कर दी थी कंपनी

भारत में उद्यमिता के क्षेत्र में लगातार युवाओं की भागीदारी बढ़ रही है। इस कड़ी में सरकार की ओर से भी स्टार्टअप योजना के तहत युवाओं को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कई युवा नौकरी करने के बजाय खुद को नौकरी देने वाला बना रहे हैं। ऐसे में इस लेख के माध्यम से हम भारत के सबसे कम उम्र के दो भाइयों के बारे में जानेंगे, जिन्हें भारत का सबसे युवा CEO भी कहा जाता है।
सबसे कम उम्र के CEO
सबसे कम उम्र के CEO

भारत में बीते कई वर्षों में उद्यमिता के क्षेत्र में युवाओं की भागीदारी बढ़ी है। आज के युवा स्कूल और कॉलेज के बाद नौकरी करने के बजाय अपने स्टार्टअप पर ध्यान दे रहे हैं, जिससे वह नौकरी करने वालों की लाइन से हटकर नौकरी देने वालों के समूह में शामिल हो जाए। 

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यही वजह है कि युवाओं के कौशल को निखारने के साथ-साथ सरकार स्टार्टअप योजना के तहत युवाओं के सपनों को पंख लगाने का काम कर रही है। ऐसे में इस लेख के माध्यम से हम आप भारत के दो ऐसे भाइयों के बारे में जानेंगे, जिन्हें भारत का सबसे युवा CEO भी कहा जाता है। 

 

स्कूल में पढ़ते-पढ़ते बन गए कंपनी के मालिक

चेन्नई के रहने वाले श्रवण और संजय कुमारन, जब 8 और 10 वर्ष के थे, तो दोनों भाई छठी और आठवीं कक्षा क्रमशः पढ़ा करते थे। इस दौरान दोनों भाइयों ने अपना स्टार्टअप करने की योजना बनाई। दोनों ने मिलकर एक एप डिवेलप किया और इसके संस्थापक बन गए, जिसके बाद ये दोनों सुर्खियों में आ गए थे। 

 

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किस नाम से बनाया था एप

श्रवण और संजय कुमारन ने स्कूल में पढ़ते हुए साल 2011 में गो डाइमेंशन नाम से एप बनाया और इसमें  संजय ने आधिकारिक मुख्य कार्यकारी अधिकारी(CEO) और श्रवण ने अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला। उनके द्वारा बनाया गया यह एप लोगों ने पसंद किया और उन्हें प्रसिद्धी के मुकाम तक पहुंचाया।

कुछ ही वर्ष में बना दिए 7 से अधिक एप

अपने पहले एप के बाद भाइयों ने प्रोग्रामिंग के माध्यम से कुछ ही वर्षों में सात से अधिक एप बना दिए, जिन्हें 50 से अधिक देशों में हजारों लोगों ने डाउनलोड किया। ऐसे में दोनों भाइयों का टैलेंट धीरे-धीरे विदेश तक पहुंचना शुरू हुआ।

 

पिता ने पैदा किया प्रोग्रामिंग के प्रति जुनून

दोनों भाइयों के एप डिवेलपर बनने के पीछे उनके पिता का हाथ है। दरअसल, उनके पिता कुमार सुरेंद्रन ने ही अपने बेटों को प्रोग्रामिंग को लेकर शिक्षा देना शुरू किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों भाई शुरुआत से कंप्यूटर से बहुत सहज थे और कंप्यूटर चला लेते थे।

यहां तक की चार साल की उम्र में पीपीटी भी बना लिया करते थे। ऐसे में बेटेों के इस हुनर को देखते हुए उन्होंने कम उम्र में ही बेटों को प्रोग्रामिंग सिखाने का फैसला कर लिया था। 

 

किस तरह के बनाए एप

दोनों भाइयों ने मिलकर अलग-अलग एप बनाए, जिसमें एक कैच मी कॉप भी शामिल था। यह एप भारतीय खेल चोर-पुलिस के आधार पर तैयार किया गया था, जिसे लोगों ने पसंद किया।

इसके अलावा दोनों भाइयों ने मिलकर अल्फाबेट बोर्ड, इमरजेंसी बूथ, कलर पैलेट, कार रेसिंग और सुपरहीरो जैसे कई एप बनाए। इसके प्रति लोगों का रिस्पांस भी अच्छा रहा। यही नहीं, दोनों भाइयों ने करीब 150 टेस्ट एप भी विकसित किए हैं।

अभी क्या कर रहे हैं दोनों भाई

अब सवाल यह है कि इतना कुछ करने के बाद वर्तमान में ये दोनों भाई क्या कर रहे हैं। आपको बता दें कि दोनों भाइयों ने अमेरिका में टेक्सास ए एंड एम विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में अपनी ग्रेजुएशन पूरी की है। इसके बाद संजय माइक्रोसॉफ्ट में सॉफ्टवेयर इंजीनियर इंटर्न और श्रवण सैन फ्रांसिस्कों में सॉफ्टवेयर डिवेलपर हैं।

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