कृषि यन्त्र और हरित क्रांति

 भारत में हरित क्रांति के परिणामस्वरूप विभिन्न फसलों की उत्पादकता में वृद्धि हुई है | इस वृद्धि के पीछे मुख्य कारण थे अच्छी उपज देने वाले किस्म के बीजों का प्रयोग करना, रासायनिक खाद और नई तकनीकों का प्रयोग करना जिसके कारण 1960 के मध्य दशक के दौरान कृषि उत्पादकता में तेजी से वृद्धि हुई | इस उन्नति का श्रेय नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ नॉर्मन बोरलॉग और डॉ एमएस स्वामीनाथन को जाता है। इस क्रांति के कारण गेहूं की उत्पादकता में 2.5 गुना; चावल में 3 गुना , मक्का में  3.5 गुना, ज्वार में 5 गुना और बाजरा में 5.5 गुना की वृद्धि हुई |

Mar 2, 2016, 16:06 IST

भारत में हरित क्रांति के परिणामस्वरूप विभिन्न फसलों की उत्पादकता में वृद्धि हुई है | इस वृद्धि के पीछे मुख्य कारण थे अच्छी उपज देने वाले किस्म के वीजों का प्रयोग करना, रासायनिक खाद और नई तकनीकों का प्रयोग करना जिसके कारण 1960 के मध्य दशक के दौरान कृषि उत्पादकता में तेजी से वृद्धि हुई | इस उन्नति का श्रेय नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ नॉर्मन बोरलॉग और डॉ एमएस स्वामीनाथन को जाता है। इस क्रांति के कारण गेहूं की उत्पादकता में 2.5 गुना ; चावल में 3 गुना, मक्का में  3.5 गुना, ज्वार में  5 गुना और बाजरा में 5.5 गुना की वृद्धि हुई |

हरित क्रांति को बढ़ावा देने वाले साधन निम्न हैं :

सिंचाई

कृषि उत्पादन में वृद्धि और उत्पादकता, काफी हद तक पानी की उपलब्धता पर निर्भर करते है, अतः ये दोनों  सिंचाई के लिए प्रमुख है | हालांकि, सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता भारत में अत्यधिक अपर्याप्त है, उदाहरण के लिए, 1950-51 में सकल सिंचित क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में सकल फसल क्षेत्र का केवल 17 प्रतिशत था । योजनाओं की अवधियों में सिंचाई परियोजनाओं पर भारी निवेश के बावजूद,2009-10 में सकल फसल क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में सकल सिंचित क्षेत्र केवल 45.3 प्रतिशत ही था (195.10 लाख हेक्टेयर में से 88.42 लाख हेक्टेयर )| यहाँ तक की, सकल फसल क्षेत्र का  लगभग 55 प्रतिशत क्षेत्र अब भी बारिश पर निर्भर है। यही कारण है कि भारतीय कृषि को  'मानसून में एक जुआ' कहा जाता है।

भारतीय संदर्भ में वृद्धि की सिंचाई के कारण

• अपर्याप्त, अनिश्चित और अनियमित बारिश

• सिंचित भूमि पर बढ़िया उत्पादकता

• बहु फसल (एक से ज्यादा) को संभव करना

नई कृषि नीति में भूमिका : उच्च उपज देने वाली किस्मों की योजनाओं का सफल कार्यान्वयन, काफी हद तक उपयुक्त समय पर पानी की उपलब्धता पर निर्भर करता है |

खेती के तहत अधिक भूमि को  लाना : वर्ष 2008-09 में कुल उपलब्ध भूमि का क्षेत्र 305,690,000 हेक्टेयर था। इसमें से 17.02 लाख हेक्टेयर बंजर और अनुत्पादक भूमि थी / अब जरुरत इस बात की है कि सरकार बंजर भूमि को कम करे और ज्यादा से ज्यादा बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाये /

उत्पादन के स्तर में अस्थिरता को कम करना : सिंचाई उत्पादन और उपज का स्तर स्थिर रखने में मदद करती है। 1971-84 की अवधि में 11 प्रमुख राज्यों पर किये गए अध्ययन से पता चलता है सिंचित क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में अस्थिरता का स्तर असिंचित क्षेत्रों के आधे से भी कम था |

सिंचाई के प्रत्यक्ष लाभ: सिंचाई, कृषि उत्पादन में वृद्धि करके सरकार और किसानों दोनों को प्रत्यक्ष लाभ प्रदान करती है। सिंचित भूमि से  उत्पदान बढ़ता है जिसके कारण किसानों और सरकार दोनों की आय बढती है /

सिंचाई क्षमता व सिंचाई के साधन
भारत ने आजादी के बाद से अपनी सिंचाई क्षमता को बढ़ाया है | यह 1950-51 में 22.6 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2006-07 में 102.8  लाख  हेक्टेयर तक पहुंचा है जिसका अर्थ है इसमें 35.5 की वृद्धि हुई है | भारत में सिंचाई के साधनों को निम्न रूप में विभाजित किया जा सकता है :

i. नहरें

ii. कूएँ

iii. तालाब

iv. अन्य स्रोत

लगभग भारत में 26.3 प्रतिशत सिंचित क्षेत्रों को नहरों के द्वारा पानी दिया जाता है |इसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और दक्षिणी राज्यों के कुछ हिस्सों के काफी बड़े क्षेत्र शामिल हैं | सभी को साथ लेकर देखा जाए तो , 2008-09 में कुल सिंचित क्षेत्र के 87.3 प्रतिशत को नहरों व कुओं से पानी प्रदान किया गया | तालाबों से ज्यादातर सिंचाई तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ हिस्सों में की जाती है|

सिंचाई से सम्बंधित कुछ समस्यायें :   

1. परियोजनाओं के पूरा होने में देरी होना |

2. अन्तर्राज्यीय जल विवाद।

3. सिंचाई विकास में क्षेत्री असमानाताएं।

4. जल जमाव और लवणता: सिंचाई की शुरूआत से कुछ राज्यों में जल जमाव और लवणता की समस्याएं उत्पन्न हो गईं | 1991 में जल संसाधन मंत्रालय द्वारा गठित कार्य समूह ने आकलन किया कि लगभग 2.46 लाख हेक्टेयर  सिंचित नियंत्रण वाले क्षेत्रों को जल जमाव से नुकसान हुआ।

5. सिंचाई की लागत बढ़ना : लागत में वृद्धि होने के कारक निम्न हैं : (i) पहले की योजनाओं में निर्माण के लिए अपेक्षाकृत बेहतर स्थान की अनुपलब्धता; (ii) अपर्याप्त प्राथमिक सर्वेक्षण और निर्माण के दौरान ढाँचे व् बनावट में पर्याप्त संशोधन के लिए की गई अग्रणी जांच; (iii) कई परियोजनाओं को शुरू करने की इच्छा रखना जिसे सिंचाई के लिए उपलब्ध लागत से समायोजित किया जा सके  |

6. सिंचाई परियोजनाओं के संचालन में  घाटा : जल प्रभार का शुल्क इतना कम रखा गया है कि इससे सञ्चालन का खर्चा निकालना भी मुश्किल हो जाता  है  इसी कारण भारत में अच्छी सिचाई सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पातीं हैं  |

7. बुनियादी ढांचे का पुराना हो जाना और गाद की वृद्धि होना : लगभग देश के कुल बांधों के 60 प्रतिशत बाँध दो दशकों से भी पुराने हैं |  नहर के तंत्र को भी वार्षिक रखरखाव की जरूरत है।

8. जलस्तर में गिरावट: देश के कई हिस्सों में हाल ही की अवधि में , खासकर पश्चिमी शुष्क क्षेत्रों में, भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण तथा वर्षा के पानी से अपर्याप्त पुनर्भरण के कारण जल स्तर में काफी गिरावट आई है | 

उर्वरक

भारतीय किसान केवल खाद की जरुरत का दसवां हिस्सा ही इस्तेमाल करते हैं (जितना मिट्टी की उत्पादकता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है) | भारतीय मिट्टी  में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी है और इस कमी को उर्वरकों की एक बड़ी मात्रा का उपयोग करके अच्छा बनाया जा सकता है। चूंकि व्यापक खेती की संभावनाएँ अत्यंत सीमित है क्योंकि कृषि क्षेत्र के अधिकांश क्षेत्र पर पहले से ही खेती की जा रही है, वहाँ कोई विकल्प नहीं है लेकिन खाद की बड़ी मात्रा का उपयोग करके अधिक से अधिक क्षेत्रों में गहन खेती का विस्तार किया जा सकता  है।

खपत, उत्पादन और उर्वरकों  का आयात

भारत में उर्वरकों के उत्पादन में आज़ादी के बाद के समय से काफी वृद्धि हुई है | उदाहरण के लिए, 1960 -61 में 98 हजार टन से, नाइट्रोजन उर्वरक का उत्पादन 2010-11 में 12156 हजार टन तक पहुँच गया | फॉस्फेट उर्वरकों का उत्पादन वर्ष 1960-1961 में 52 हज़ार टन से बढ़कर 2010-11 में 4,222 हज़ार टन तक पहुँच गया |

अन्य उपकरण हैं:

I. ट्रैक्टर

II. ट्रॉली

III. ट्रिलर

IV. फसल काटने की मशीन

V. थ्रसेर

VI. नलकूप

VII. नहरें

VIII. तालाब

इसलिए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उपकरणों की उपलब्धता और कृषि की उत्पादकता सकारात्मक रूप से एक-दूसरे से संबंधित है। यदि किसानों को साधन उपलब्ध कराए जाएँ तब निश्चित ही उत्पादकता में वृद्धि हो पाएगी |

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
... Read More

आप जागरण जोश पर भारत, विश्व समाचार, खेल के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए समसामयिक सामान्य ज्ञान, सूची, जीके हिंदी और क्विज प्राप्त कर सकते है. आप यहां से कर्रेंट अफेयर्स ऐप डाउनलोड करें.

Trending

Latest Education News