कृष्ण देव राय विजयनगर साम्राज्य का सबसे प्रभावशाली शासक था| इसका संबंध तुलुवा वंश से था| जब इसने सत्ता संभाली तब साम्राज्य की हालत बहुत ही दयनीय स्थिति में थी| साम्राज्य को बीजापुर के सुल्तान तथा उड़ीसा के शासकों से भय बना हुआ था|
सैनिक अभियान:
इसने दक्कन के सुल्तानों के मुसलमान शासकों के संयुक्त शक्ति को पराजित किया तथा 1542 में रयचूर दोआब को जीत लिया|
इन्होंने गुलबर्ग को भी जीता| शिवसमुद्रम जीतने के साथ ही उम्मत्तूर के शासकों को पराधीनता स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया|
इसने उड़ीसा के विशाल सेना को पराजित कर उदयगिरी के किले पर कब्जा कर लिया| इसने अपने उड़ीसा के अभियान को आगे बढ़ते हुए उडिया लोगों को आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया| गोलकुंडा के रास्ते मे पड़ने वाले कोंदपल्लीी को भी इसने अपने विजय अभियान में शामिल किया|
पुर्तगाल के साथ संबंध:
कृष्ण देव राय ने पुर्तगाल के साथ अपने अच्छे संबंध बनाए रखे| इसने पुर्तगाल से अरब के घोड़े व बंदूकें मगवाई|
मृत्यु:
कृष्ण देव राय के पुत्र की मृत्यु उसके मंत्री के पुत्र द्वारा विष देने की वजह से हुई, इसके आरोप में पिता व पुत्र दोनों को सज़ा हुई|
कृष्ण देव राय की मृत्यु 1529 में हुई थी| अपने मृत्यु के पूर्व ही उसने अपने भाई को शासक घोषित कर दिया था|
उपलब्धियाँ:
एक योद्धा होने के साथ ही कृष्ण देव राय कला व साहित्य का भी एक बहुत बड़ा संरक्षक था|
उसके दरबार में अष्टदिगगज (आठ साहित्य के जानकार) विराजमान थे| मनु चरित्ररामू का लेखक इनमें से एक था| कृष्ण देव राय स्वयं एक कवि था तथा इसने अमुकतमलदया की रचना की थी|
कृष्ण देव राय एक महान निर्माण कर्ता भी था| इसने हज़ारा राम मंदिर व विट्ठल देव मंदिर की रचना की| इसने नागलपुरम नमक एक नवीन शहर की स्थापना की|
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