टैक्स की चोरी और काले धन पर रोकथाम के लिए बनाया गया 'गार अर्थात जनरल एंटी अवॉयइडेंस रूल्स (General Anti Avoidance Rules)' नियमों का एक ऐसा समूह है, जिन्हें लागू करने के पीछे सरकार का एक ही लक्ष्य है कि जो भी विदेशी कंपनियाँ भारत में निवेश करें, वे यहाँ के तय नियमों के मुताबिक कर अदा करें |
गार नियम मूल रूप से प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) 2010 में प्रस्तावित हैं और तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने आम बजट 2012-13 को प्रस्तुत करते समय गार के प्रावधानों का उल्लेख किया था| लेकिन बाद में इन नियमों को लेकर उठे विवादों से बचने के लिए इसे स्थगित कर दिया गया और पार्थसारथी शोम की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी | आम बजट 2016-17 के भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गार नियमों को 1 अप्रैल,2017 से लागू करने कि घोषणा की है |
पार्थसारथी शोम समिति की सिफारिशें
पार्थसारथी शोम समिति की सिफारिशें निम्नलिखित हैं:
- गार नियमों के क्रियान्वयन को तीन साल तक टाल दिया जाए
- गार नियमों का उपयोग मॉरिशस में कंपनियों की उपस्थिती की विश्वसनीयता की जांच करने के लिए न किया जाए
- कर लाभ की मौद्रिक सीमा 3 करोड. रुपये या इससे अधिक होने की स्थिति में ही गार के नियमों को लागू किया जाए
- गार को लागू करने के लिए नकारात्मक सूची तैयार की जाए, जिसमें लाभांश की अदायगी या कंपनी द्वारा शेयरों की दोबारा खरीद, सहायक कंपनी की स्थापना, सेज या अन्य क्षेत्र में इकाई की स्थापना को शामिल किया जाए
- कंपनियों के अंत:समूह लेन-देन पर गार नियमों को लागू न किया जाये
- आयकर कानून में संशोधन कर उसमें व्यावयासिक पूंजी को शामिल किया जाए
गार नियमों को लागू करने का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
गार नियमों को लागू करने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
- केवल करों के भुगतान से बचने के लिए संरचित किए सौदों या आय को कर के दायरे में लाना
- कर चोरी को रोक कर सरकारी राजस्व में वृद्धि करना
- कर प्रणाली की कमियों को दूर करना और कर चोरी में सहायक कर नियमों को दुरुस्त करना
- विदेशी निवेशकों द्वारा केवल कर लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनाए जाने वाले रास्तों पर रोक लगाना
गार नियमों के लागू होने से कौन प्रभावित होगा ?
पूरी दुनिया में कंपनियां अपने व्यापार और निवेश की संरचना इस तरह करती हैं कि वह कर से बच सकें। नए नियमों की सबसे बड़ी मुश्किल उन पैसे प्रबंधकों के लिए होगी जो भारत में मॉरिशस जैसे टैक्स हैवन के माध्यम से निवेश करते हैं।
सरकार के मुताबिक, भारत में हर किसी को अपनी आमदनी पर टैक्स देना पड़ता है, ऐसे में विदेशी कंपनियों को छूट नहीं दी जा सकती | वह भी तब जब ज्यादातर विदेशों से आने वाला धन उन भारतीयों का है, जो विदेशों में काले धन के रूप में है |
यह काला धन उन टैक्स हैवेन देशों में रखा गया है, जिनके साथ भारत की दोहरा कराधान निवारण संधि (डीटीएए) लागू है| गार के लागू होने के बाद दोहरा कराधान निवारण संधि (डीटीएए) के तहत निवेश करने वाले निवेशक भी कर के दायरे में आ जाएंगे|
आम आदमी पर भी गार नियमों का असर पड़ेगा| उदाहरण के लिए अब करों से बचने का उपाय करने के लिए किसी कर्मचारी का वेतन कम नहीं रखा जा सकेगा | इसके अलावा केवल ब्याज भुगतान पर कर कटौती के लिए लिया जाने पारिवारिक कर्जा भी अब गार के नियमों का उल्लंघन माना जाएगा |
गार नियमों से संबंधित कुछ तथ्य
- सामान्य कर परिवर्जन-रोधी नियमों (गार) को उन विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) पर लागू नहीं किया जाना है, जिनके द्वारा आयकर अधिनियम की धारा 90 और 90ए के तहत कोई लाभ नहीं लिया जाता है| आयकर की धारा 90 और 90ए के तहत दोहरे कराधान से बचने का समझौता विभिन्न देशों के साथ किया जाता है. इसमें कंपनियों को दोहरे कराधान से बचने की व्यवस्था है|
- एफआईआई में जो प्रवासी निवेशक होंगे उन पर भी गार लागू नहीं होना है |
- 30 अगस्त 2010 से पहले किए गए निवेश पर गार के प्रावधान लागू नहीं होने हैं |
गार की आलोचना
- आयकर विभाग के अधिकारी इसका उपयोग निवेशकों को परेशान करने के लिए कर सकते हैं
- अधिकारियों के प्रशिक्षण की कमी के कारण इसे लागू करने में कठिनाई आ सकती है
- करों के मूल्यांकन के तरीके में बदलाव का निवेशकों और बाजार के विशेषज्ञों ने विरोध किया है|
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