क्या आपने कभी सोचा है कि पुराने समय में जब घड़ियों का अविष्कार नहीं हुआ था तब मानव समय का पता कैसे लगाता था?
इसका उत्तर है सूर्य की सहायता से | इसी कारण में हमारे देश में 5 अलग-अलग जगहों पर जंतर–मंतर बनायी गयी थी | इन्ही में से एक है जयपुर का जंतर मंतर| जयपुर, राजस्थान का जंतर मंतर स्मारक उन्नीस वास्तु खगोलीय उपकरणों का संकलन है। इसका निर्माण राजपूत राजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया था। यह 1738 ई. में बन कर पूरा हुआ था। पूरे भारत में 5 जंतर– मंतर हैं– दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, वाराणसी और मथुरा, हैं। इस वेधशाला का मुख्य उद्देश्य खगोलीय सरणी का संकलन करना और समय एवं सूर्य, पृथ्वी एवं ग्रहों की गतिविधियों की भविष्यवाणी करना था।
जंतर मंतर, जयपुर का स्थानः
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जंतर– मंतर जयपुर की तस्वीरें–
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भारतीय गिद्ध ( Indian vulture– Gyps indicus)
जंतर– मंतर, जयपुर के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यः
1. शब्द 'जंतर' का अर्थ है उपकरण/ साधन और 'मंतर' का अर्थ है गणना। इसलिए जंतर– मंतर का अर्थ हुआ 'गणना करने वाला उपकरण/ साधन'।
2. जयपुर, राजस्थान का जंतर मंतर स्मारक उन्नीस वास्तु खगोलीय उपकरणों का संकलन है।
3. इसका निर्माण राजपूत राजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया था।
4. इसका निर्माण 1738 ई. में पूरा हुआ था।
5. जयपुर का जंतर– मंतर वर्ष 2010 से विश्व धरोहर स्थल है।
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6. इस वेधशाला को नंगी आंखों से खगोलीय स्थिति के अवलोकन हेतु बनाया गया था।
7. इस वेधशाला का मुख्य उद्देश्य खगोलीय सरणी का संकलन करना और समय एवं सूर्य, पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों की गतिविधियों की भविष्यवाणी करना था।
8. इन सभी वेधशालाओं में आकाशीय पिंडों के अध्ययन हेतु इस्तेमाल किए जाने वाले खगोलीय उपकरणों की विशाल सरणी उपलब्ध है।
9. जयपुर का जंतर– मंतर में दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर से बनी सूर्यघड़ी है।
10. जंतर-मंतर राजस्थान स्मारक पुरातात्विक स्थल और पुरावशेष अधिनियम, 1961 के तहत संरक्षित है |
(पत्थर की सूर्य घड़ी)
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