जल प्रबंधन

Jul 27, 2016, 16:14 IST

परिभाषित पानी नीतियों और नियमों के तहत योजना बनाना, विकास, वितरण और जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने को जल प्रबंधन कहते है। जल चक्र, वाष्पीकरण और वर्षा के माध्यम से हाइड्रोलॉजिकल प्रणालियों को बनाये रखते है जिससे नदियां और झीलें बनती है और सहारा देते हैं कई तरह के जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों को। झीलों स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच मध्यवर्ती रूपेँ हैं और उनमे शामिल है वह पौधे और जानवर की प्रजातियां हैं जो कि अत्यधिक नमी पर निर्भर हैं।

परिभाषित पानी नीतियों और नियमों के तहत योजना बनाना, विकास, वितरण और जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने को जल प्रबंधन कहते है। जल चक्र, वाष्पीकरण और वर्षा के माध्यम से हाइड्रोलॉजिकल प्रणालियों को बनाये रखते है जिससे नदियां और झीलें बनती है और सहारा देते हैं कई तरह के जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों को। झीलों स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच मध्यवर्ती रूपेँ हैं और उनमे शामिल है वह पौधे और जानवर की प्रजातियां हैं जो कि अत्यधिक नमी पर निर्भर हैं।

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पानी पर आँकड़े

पानी तक़रीबन 70 फीसदी धरती की जगह को ढकता है परंतु इसमें से केवल 3 फीसदी साफ़ पानी है। इसमें से 2 फीसदी ध्रुवीय बर्फीले इलाको में है और केवल 1 फीसदी प्रयोग करने योग्य पानी नदियों, झीलों और अवभूमि जलवाही स्तर में है। इसका सिर्फ सेश मात्र का ही इस्तमाल किया जा सकता है। विश्व स्तर पर 70 फीसदी पानी का इस्तमाल खेती बाड़ी के लिये होता है, तक़रीबन 25 फीसदी कारखानों पर और 5 फीसदी घरेलु काम के लिये। हालाकि इसमें अंतर आता है अलग अलग देशो में और औद्योगिक देश इसका सबसे बड़ा फीसदी इस्तमाल करते हैं कारखानों पर। हिंदुस्तान इस्तमाल करता है 90 फीसदी खेती बाड़ी के लिये, तक़रीबन 7 फीसदी कारखानों पर और 3 फीसदी घरेलु काम के लिये। आज की तारीख में सालाना कुल साफ़ पानी लिया जाता है वह तक़रीबन 3800 क्यूबिक किलोमीटर है, आज से 50 साल पहले के मुकाबले दुगना (बांधों का विश्व आयोग, 2000)। अध्यन दिखलाते है की एक आदमी को अधिकतम से अधिकतम 20 से 40 लीटर पानी की ज़रुरत होती है रोज़ पीने और सौच के लिए। दुनिया भर में 1 बिलियन से ज़्यादा लोगो के पास साफ़ पानी का पहुंच नहीं है।

2025 तक हिंदुस्तान को पानी के स्तर संबंधी समस्या सेहन करनी पड़ सकती है। विश्व स्तर पर 31 देश पहले से ही पानी की कमी से ग्रस्त हैं और 2025 तक 48 देश पानी की कमी की गंभीर समस्या का सामना कर रहे होंगे। UN के अनुमान के अनुसार 2025 तक तक़रीबन 4 बिलियन लॊग पानी की कमी की समस्या से ग्रस्त हो जायेंगे। इसके कारन पानी के बाटने को लेकर अलग अलग देशो में कई तरह के टकराव हो सकते है। भारत में करीब 20 प्रमुख शहरों को क्रोनिक या बाधित पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। ऐसे 100 देश है जो कि 13 बड़ी नदियों और झीलों से जल बाँट रहे हैं। उच्च स्तर वाले देश निचले स्तर वाले देशों को भूखा मार सकते हैं जिसके कारन दुनिया भर में राजनीतिक रूप से अस्थिरता आ सकती है।

उदाहरण के तौर पर Ethopia, जो की नील नदी के उच्च स्तर पर है और Egypt जो की निचले स्तर पर होने के साथ नील नदी पर काफी आश्रित भी है। अंतर्राष्ट्रीय समझौते है कि ऐसे क्षेत्रों में पानी का एक उचित वितरण में दिखेगा जो की विश्व शांति के लिए महत्वपूर्ण हो जाएगा। भारत और बांग्लादेश  ने पहले से ही गंगा के पानी के उपयोग पर बातचीत के जरिए समझौता कर लिया है।

स्थायी जल प्रबंधन

'पानी बचाओ' अभियान पानी की कमी के खतरों के बारे में हर जगह लोगो को जागरूक करना आवश्यक हैं। दुनिया के जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिए कई ऐसे उपायों को अपनाने की जरूरत है। ऐसे कुश उपाये हैं :

• बजाय कुछ बड़े परियोजनाओं के कई छोटे जलाशयों का निर्माण करना।

• छोटे जलग्रहण बांधों का निर्माण करना और साथ ही झीलों की रक्षा करना।

• मिटटी का प्रबंधन, बहुत ही छोटे जलग्रहण का विकास और वनीकरण भूमिगत जलवाही स्तर का रिचार्जिंग परमिट जिसके कारन बड़े बांधों के लिए आवश्यकता कम पड़ेगी।

• नगर निगम के गंदे पानी का पुनर्चक्रण और इलाज कर कृषि के लिए उपयोग करना।

• बांधों और नहरों से पानी के रिसने की रोकथाम।

• सरकारी पाइप्स में से होने वाले नुकसान को रोकना।

• शहरी वातावरण में प्रभावी वर्षा का जल संचयन करना।

• कृषि के क्षेत्र में जल संरक्षण करना जैसे की ड्रिप सिंचाई का उपयोग करना।

• पानी का वास्तविक मूल्य निर्धारित करना ताकि लोग ओर अधिक जिम्मेदारी से और कुशलता से पानी का इस्तेमाल करें और साथ ही पानी की बर्बादी कम हो सके।

• उन वृक्ष रहित क्षेत्रों मे जहाँ जमीन उपजाऊ नहीं रही, पहाड़ी ढलानों साथ मेंडबंदी और 'नाला' प्लग बनाकर मिट्टी प्रबंधन करने से वहां की नमी लौट सकती है और वापस सब्जियां उगायी जा सकती हैं।

बांधों की समस्याएं

• विखंडन और नदियों का प्राकर्तिक परिवर्तन।

• नदी पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर प्रभाव डालता है।

• बड़े बांधों के सामाजिक परिणामों के कारण लोगों का विस्थापन।

• जल जमाव होना और आसपास की भूमि का Stalinization होना।

• जानवरो की आबादी को उनके निवास स्थान से हटाना और उनके प्रवास मार्गों को काटना।

• मत्स्य पालन और नाव द्वारा सफर करने में अवरोध उत्पन होता है।

• वनस्पति के सड़ने और कार्बन के आने के कारण जलाशयों से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होना, हाल ही में देखा गया है।

जल संसाधन पर सरकारी विनियमन

जल संसाधन विकास मंत्रालय जिम्मेदार है नीतिगत दिशानिर्देश और कार्यक्रमों को लागू करने के लिए ताकी देश के जल संसाधनों का विकास और विनियमन कर सकें। मंत्रालय को यह निम्नलिखित कार्य दिए गए हैं :

• जल संसाधन के क्षेत्र में समग्र योजना, नीति निर्माण, समन्वय और मार्गदर्शन करना।

• तकनीकी मार्गदर्शन, जांच, निकासी और सिंचाई की निगरानी, बाढ़ नियंत्रण और बहुउद्देश्यीय परियोजनाएं (प्रमुख / मध्यम)।

• आम ढांचागत, तकनीकी और अनुसंधान समर्थन प्रदान करना संप्रदाय मौखिक विकास के लिए।

• विशिष्ट परियोजनाओं के लिए विशेष केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान करना और विश्व बैंक और अन्य एजेंसियों से बाह्य वित्त प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना।

• लघु सिंचाई के संबंध में समग्र नीति, योजना और मार्गदर्शन प्रदान करना और कमान क्षेत्र विकास, प्रशासन और केंद्र प्रायोजित योजनाओं की निगरानी करना और सहभागितापूर्ण सिंचाई प्रबंधन को बढ़ावा देना।

• भूजल संसाधनों के विकास के लिए समग्र योजना बनाना, इस्तेमाल होने वाले संसाधनों की स्थापना और उपयोग की नीतियों के निर्माण की देखरेख और भूजल विकास में राज्य स्तर की गतिविधियों के लिए समर्थन करना।

• राष्ट्रीय जल विकास के नजरिए का निरूपण और अंतर- बेसिन स्थानान्तरण करने की संभावनाओं पर विचार करने के लिए अलग अलग घाटियों / उप- घाटियों का पानी शेष राशि का निर्धारण करना।

• समन्वय, मध्यस्थता और अंतर- राज्य नदियों से संबंधित विवादों या मतभेद के समाधान के संबंध में सरलीकरण करना और कुछ घटना में अंतर- राज्य की परियोजनाओं के क्रियान्वयन की देखरेख करना।

• बाढ़ की भविष्यवाणी के लिए केंद्रीय नेटवर्क के संचालन और अंतर- राज्य नदियों पर चेतावनी, विशेष मामलों में कुछ राज्य योजनाओं के लिए केंद्रीय सहायता का प्रावधान और गंगा और ब्रह्मपुत्र के लिए बाढ़ नियंत्रण का मास्टर प्लान की तैयारी करना।

• नदी के पानी, जल संसाधन विकास परियोजनाओं और सिंधु जल संधि के संचालन के संबंध में पड़ोसी देशों के साथ वार्ता और समझौता करना।

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