तुर्की में जनमत संग्रह
तुर्की में सितंबर 2010 में कराए गए जनमत संग्रह में देशवासियों ने व्यापक संवैधानिक सुधारों के पक्ष में अपनी राय जाहिर की है। अभी तक तुर्की का संविधान काफी हद तक वहां की सेना के पक्ष में झुका हुआ था और उन्हें तुर्की की धर्मनिरपेक्षता का संरक्षक माना जाता रहा है।
सेना की शक्ति में होगी कटौती
संवैधानिक सुधारों के पक्ष में यह जनमत संग्रह शासक जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी की पहल पर कराया गया था, जिसके पक्ष में 58 फीसदी तुर्कीवासियों ने अपना मत दिया। इन सुधारों से देश में सेना की शक्ति में भारी कटौती होगी तथा सेना को असैन्य अदालतों के प्रति जवाबदेह बनाया जाएगा।
गैरतलब है कि 1980 के सैन्य विद्रोह के बाद देश का संविधान तैयार किया गया था जिसमें सेना को व्यापक अधिकार प्रदान किए गये थे। सैन्य विद्रोह कर्ता-धर्ताओं को विशेष अधिकार भी प्रदान किए गए थे जिन्हें भी इस जनमत संग्रह ने समाप्त कर दिया है।
तुर्की का परिचय
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान तुर्की के ओट्टोमन साम्राज्य ने केेंद्रीय शक्तियों की ओर भाग लिया और उसकी बुरी तरह से पराजय हुई। विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद सेवर्स की संधि से ओट्टोमन साम्राज्य का विभाजन कर दिया गया और तुर्की पर यूरोपीय शक्तियों का अधिकार हो गया। इसके खिलाफ देश में तुर्की राष्ट्रवादी आंदोलन का सूत्रपात हुआ। मिलेट्री कमांडर मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की स्वतंत्रता आंदोलन चला। 18 सितंबर, 1922 को यूरोपीय शक्तियों को देश से बाहर निकाल दिया गया। 1 नवंबर को नवसृजित संसद ने सल्तनत की समाप्ति कर दी, जिससे 623 वर्ष पुराने ओट्टोमन साम्राज्य का अंत हो गया। 29 अक्टूबर, 1923 को देश में गणराज्य की स्थापना की गई और मुस्तफा कमाल देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। उन्होंन देश में राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार किए और देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित कर दिया।
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