भारत में मानव विकास सूचकांक

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) एक समग्र सांख्यिकी मानव विकास (जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, और आय सूचकांकों) को बताता है| यह अर्थशास्त्री महबूब -उल -हक द्वारा बनाया गया था, 1990 में अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन द्वारा अनुगमन किया, और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रकाशित किया गया।

Jul 27, 2016, 15:08 IST

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) वह सूचकांक है जो एक समग्र सांख्यिकी मानव विकास (जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, और आय सूचकांकों) को बताता है|

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इसकी संकल्पना अर्थशास्त्री महबूब -उल -हक ने किया था, 1990 में अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन द्वारा अनुगमन किया गया, और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी ) द्वारा प्रकाशित किया गया। मानव विकास रिपोर्ट (एचडीआर) दिखलाता है मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) 187 देशों और गैर मान्यता प्राप्त प्रदेशों के लिए ( मूल्यों और रैंकों ), प्रस्तुत करता है 145 देशों के लिए असमानता समायोजित एचडीआई, 148 देशों के लिए लिंग विकास सूचकांक, 149 देशों के लिए लिंग असमानता सूचकांक, और 91 देशों के लिए बहुआयामी गरीबी सूचकांक। देश की रैंकिंग और वार्षिक मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के मूल्यों को सख्त प्रतिबंध के तहत रखा जाता है जब तक की मानव विकास रिपोर्ट वैश्विक प्रक्षेपण और दुनिया भर में प्रकाशित न हो जाए।

भारत के मानव विकास सूचकांक मूल्य और रैंक

भारत का एचडीआई मूल्य 2013 मे 0.586 था - जो की मानव विकास श्रेणी के अनुसार मध्यम में आता है - जो देश को 135 स्थान पार् लाता है 187 देशों और क्षेत्रों में से। 1980 से लेकर 2013 के बीच भारत का मानव विकास सूचकांक मूल्य 0.369 से बढ़ कर 0.586 तक पहुच गया , जो की 58.7 प्रतिशत या 1.41 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि हुई है। 1980 और 2013 के बीच , जन्म के समय भारत की जीवन प्रत्याशा 11.0 वर्ष की वृद्धि हुई, यानी की स्कूली शिक्षा में 2.5 साल की वृद्धि हुई है और स्कूली शिक्षा की उम्मीद में 5.3 साल की वृद्धि हुई। 1980 और 2013 के बीच प्रति व्यक्ति जीएनआई भारत की 306.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई)

2010 एचडीआर ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) शुरुआत की, जो की एक ही घर में शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर के अभाव को दिखाता है। शिक्षा और स्वास्थ्य आयाम प्रत्येक दो संकेतकों पर आधारित हैं, जबकि रहने वाले आयाम के मानक छह संकेतकों पर आधारित है। सभी संकेतकों जिनकी जरूरत है एक घर के एमपीआई के निर्माण के लिए वह सभी एक ही परिवार सर्वेक्षण से लिए जाते हैं। संकेतक एक अभाव स्कोर बनाने के लिए भारित कर रहे हैं, और सर्वेक्षण में एक घर के लिए अभाव स्कोर की गणना की जाती हैं।

33.3 प्रतिशत ( भारित संकेतकों में से एक - तिहाई) का अभाव स्कोर , गरीब और गैर- गरीब के बीच भेद करने के लिए प्रयोग किया जाता है। अगर घर का अभाव स्कोर 33.3 प्रतिशत या उससे अधिक है, तोह वह घर (और उसमे हर कोई) बहु-आयामी गरीब वर्गीकृत किया गया है। वह घर जिनका अभाव स्कोर 20 प्रतिशत से अधिक या बराबर है लेकिन 33.3 प्रतिशत से कम है वह घर बहुआयामी गरीबी के पास हैं। अभाव की परिभाषाएँ हर एक पैमाने पर, साथ ही एमपीआई की कार्यप्रणाली दी गयी है तकनीकी नोट में 5 और Calderon और Kovacevic 2014 में। भारत एमपीआई के आकलन के सबसे हाल फिलहाल के सर्वेक्षण के आकड़े जो की सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं वह 2005/2006 के लिए संदर्भित करता है।

भारत में जनसंख्या का 55.3 प्रतिशत बहु-आयामी गरीब है, जबकि इसके अतिरिक्त 18.2 प्रतिशत बहु-आयामी गरीबी के पास हैं। भारत में, अभाव का विस्तार (तीव्रता) 51.1 प्रतिशत है जो की अभाव स्कोर का औसत है अक्सर बहुआयामी गरीब लोग इससे महसूस करते हैं। एमपीआई , जो जनसंख्या का हिस्सा है जो कि बहु-आयामी गरीब हैं, अभाव की तीव्रता द्वारा समायोजित , 0.282 है । बांग्लादेश और पाकिस्तान में 0.237 और 0.237 क्रमशः एमपीआई है।

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