भारत में हरित क्रांति

सरकार ने 1960 में सात राज्यों से चयनित सात जिलों में एक गहन विकास कार्यक्रम आरम्भ किया और इस कार्यक्रम को गहन क्षेत्र विकास कार्यक्रम (IADP) का नाम दिया गया, जिसे बाद में भारत की हरित क्रांति के रूप में परिभाषित किया गया था | हरित क्रांति से गेहूं, चावल और ज्वार के उत्पादन में लगभग 2 से 3 गुना की वृद्धि हुई। एम.एस. स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है।

Mar 8, 2016, 13:03 IST

दूसरी पंचवर्षीय योजना के उत्तरार्ध में फोर्ड फाउंडेशन के विशेषज्ञों के एक दल को कृषि उत्पादन और उत्पादकता के साधन बढ़ाने के लिए नये तरीके सुझाने के लिए भारत सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था | इस टीम की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 1960 में सात राज्यों से चयनित सात जिलों में एक गहन विकास कार्यक्रम आरम्भ किया और इस कार्यक्रम को गहन क्षेत्र विकास कार्यक्रम (IADP) का नाम दिया गया था। 1960 के मध्य का समय कृषि उत्पादकता की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। प्रो. नॉर्मन बोरलॉग तथा उनके साथियों द्वारा गेहूं की नई उच्च उपज किस्मों को विकसित किया गया और कई देशों द्वारा इसे अपनाया गया | बीजों की नई किस्मों द्वारा कृषि उत्पादन और उत्पादकता को बढाने के वादे के कारण, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों ने एक व्यापक पैमाने पर इसे अपनाया । इस नई 'कृषि रणनीति' को पहली बार भारत में 1966 के खरीफ के मौसम में अमल में लाया गया और इसे उच्च उपज देने वाली किस्म कार्यक्रम (HYVP) का नाम दिया गया था । इस कार्यक्रम को एक पैकेज के रूप में पेश किया गया था क्योंकि मुख्य तौर पर यह कार्यक्रम नियमित तथा पर्याप्त सिंचाई, खाद, उच्च उपज देने वाले किस्मों के बीज, कीटनाशकों पर निर्भर था |

हरित क्रांति के प्रभाव-

उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि-

HYVP केवल पांच फसलों के लिए सीमित था- गेहूं, चावल, जवार, बाजरा और मक्का । इसलिए, गैर खाद्यानों को नई रणनीति के दायरे से बाहर रखा गया। गेहूं वर्षों से हरित क्रांति का मुख्य आधार बना हुआ है। हमें नए बीजों का कृतज्ञ होना चाहिए, जिससे एक साल में करोड़ों का अतिरिक्त टन अनाज का उत्पादन किया जा रहा है |

हरित क्रांति के परिणामस्वरूप 1978-1979 में 131 मिलियन टन के रिकॉर्ड अनाज का उत्पादन हुआ | इस क्रांति के कारण भारत दुनिया के सबसे बड़े कृषि उत्पादकों के रूप में स्थापित हुआ | 1947 (जब भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई) से 1979 के बीच 30% से अधिक खेत की प्रति इकाई उपज में सुधार हुआ है | हरित क्रांति के दौरान गेहूं और चावल की अधिक उपज देने वाली किस्मों के फसल क्षेत्र में वृद्धि हुई है |

a. हरित क्रांति ने न केवल कृषि श्रमिकों को काफी रोज़गार उपलब्ध कराया बल्कि औद्योगिक श्रमिकों को भी उससे सम्बंधित कारखानों और पनबिजली स्टेशनों में रोज़गार के अवसर दिलवाए|

b. संगठित बाजारों की व्यवस्था तथा सस्ते और आसन कृषि ऋण प्रणाली को अपनाया गया /

c. सरकार द्वारा प्रोत्साहन मूल्य प्रणाली को अपनाया गया /

d. देश में परंपरागत कृषि तकनीकी के स्थान पर आधुनिक तकनीकी को अपनाया गया जैसे,उन्नत किस्म के बीज ,कृतिम उर्वरक , सिचाई एवं कीटनाशक दवाएं तथा अन्य संसाधनों को अपनाया गया /

सुधार अवधि में कृषि विकास दर में गिरावट : 1980 के दशक के दौरान प्रभावशाली प्रदर्शन के पंजीकरण के बाद, आर्थिक सुधार अवधि (1991 में प्रारम्भ ) में कृषि विकास में गिरावट हुई। जैसा की यह स्पष्ट है, खाद्यान्न के उत्पादन की वृद्धि दर 1980 में 2.9 प्रतिशत प्रतिवर्ष से घटकर 1990 में 2.0 प्रतिशत प्रतिवर्ष पर आ गई तथा वर्तमान सदी के प्रथम दशक में 2.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष पर स्थिर हो गया था |

कृषि विकास में कमी के कारण : तेज़ी से विकास के समय में कृषि विकास दर में गिरावट के मुख्य कारण हैं:

• कृषि के क्षेत्र में सार्वजनिक और व्यापक निवेश में महत्वपूर्ण गिरावट

• कृषि भूमि का परिमाण छोटा होना

• नई प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में नाकामयाबी

• अपर्याप्त सिंचाई उपलब्ध होना

• प्रौद्योगिकी का कम उपयोग

• निवेश वस्तुओं का असंतुलित उपयोग

• योजना परिव्यय में गिरावट

• ऋण वितरण प्रणाली में दोष

हरित क्रांति और क्षेत्रीय असमानताओं का क्षेत्रीय प्रसार-

HYV कार्यक्रम 1966-67 में 1.89 मिलियन हेक्टेयर के एक छोटे से क्षेत्र पर शुरू किया गया था और 1998-99 में भी यह केवल 78.4 मिलियन हेक्टेयर ही सम्मिलित कर पाया जो केवल सकल फसल क्षेत्र का 40 प्रतिशत ही है | स्वाभाविक रूप से, नई तकनीक का लाभ केवल इस क्षेत्र में केंद्रित बना रहा । इसके अलावा, हरित क्रांति कई वर्षों से गेहूं तक ही सीमित बना हुआ है, इसके लाभ ज्यादातर गेहूं पैदा करने वाले क्षेत्रों में अर्जित हो रहे हैं |

1. पारस्परिक असमानता : यहाँ एक आम सहमति है कि हरित क्रांति के प्रारंभिक काल में, बड़े किसान, छोटे और सीमांत किसानों की तुलना में नई तकनीक से अधिक लाभान्वित हुए | नई तकनीक के आवेदन के लिए किया गया पर्याप्त निवेश बिलकुल भी प्रत्याशित नहीं था क्योंकि यह आमतौर पर ज्यादातर देश के छोटे तथा सीमान्त किसानों के मतलब से परे था | बड़े किसानों ने आय में ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना जारी रखा क्योंकि प्रति एकड़ की कीमत कम थी और गैर-कृषि और खेत संपत्ति पर लाभ को पुनर्निवेश के द्वारा कई गुना अधिक कर लिया गया /

2. श्रम अवशोषण का प्रश्न: यद्यपि यहाँ पारस्परिक असमानताओं और खेतिहर मजदूरों की वास्तविक मजदूरी पर नई कृषि नीति के प्रभाव के बारे में अर्थशास्त्रियों के बीच मतभेद है, वहाँ एक आम सहमति है कि नई तकनीकों को अपनाने के कारण कृषि क्षेत्र में श्रम अवशोषण कम हो गया है |

3. कृषि व्यवहार में बदलाव : इस क्रांति की आलोचना इस बात पर भी की गई कि इसके कारण भारतीय किसान विदेशी बीजों पर नित्भर हो गए हैं और उनके परंपरागत बीज बाजार से गायब हो गए हैं जिसके कारण उन्हें अब बाजार से महंगे बीजों को खरीदना पड़ता है जो कि हर एक किसान के बस की बात नहीं है /

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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