अनुच्छेद 153 के तहत प्रत्येक राज्य का राज्यपाल होना चाहिए / राज्य के कार्यकारी के तहत राज्यपाल, मंत्रियों की परिषद और राज्य के महाधिवक्ता होते हैं। राज्यपाल भी राज्य का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है जो अपने कार्य संबंधित राज्य के मंत्रियों की परिषद की सलाह के अनुसार करता है| इस के अलावा, राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर दोहरी भूमिका निभाता है| इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के आदेश पर पांच वर्षों के लिए की जाती है परन्तु वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त ही पाने पद पर रह सकता है|
राज्यपाल की नियुक्ति
राज्यपाल के रूप में नियुक्ति के लिए योग्यता (अनुच्छेद 157) –
संविधान ने निम्न योग्यताएँ राज्यपाल को नियुक्त किए जाने के लिए रखी हैं :
• वह भारत का नागरिक हो
• उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो|
• वह राज्य के बाहर का व्यक्ति होना चाहिए ताकि वह स्थानीय राजनीति में लिप्त ना हो|
• एक ही व्यक्ति को 2 या 2 से ज्यादा राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है, तो उसे दोनों राज्यों की तनख्वाह दी जाती है
• राज्यपाल की परिलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जा सकते।
राज्यपाल के अधिकार
राज्य के राज्यपाल के पास कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायिक अधिकार होंगे| लेकिन उसके पास भारत के राष्ट्रपति की तरह कूटनीतिक, सैन्य या आपातकालीन अधिकार नहीं होंगे|
राज्यपाल की अधिकार और कार्य निम्नलिखित शीर्षों के अंतर्गत वर्गीकृत किये जा सकते है:
1. कार्यकारी अधिकार
2. विधायी अधिकार
3. वित्तीय अधिकार
4. न्यायिक अधिकार
कार्यकारी अधिकार
जैसा की ऊपर बताया गया है कि कार्यकारी अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जिनका प्रयोग राज्यपाल के नाम पर मंत्रियों की परिषद द्वारा किया जाता है| इसलिए राज्यपाल केवल नाममात्र का प्रमुख और मंत्रियों की परिषद वास्तविक कार्यकारी होती हैं। निम्नलिखित पद राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए जाते है और अपने कार्यकाल के दौरान अपने पद पर बने रहते हैं: राज्य का मुख्य मंत्री, मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्य के अन्य मंत्री , महाधिवक्ता। वह राष्ट्रपति से एक राज्य में संवैधानिक आपातकाल लगाने की सिफारिश भी कर सकता है । एक राज्य में राष्ट्रपति शासन की अवधि के दौरान, राज्यपाल को राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में व्यापक कार्यकारी अधिकार प्राप्त होते है।
विधायी अधिकार :
राज्यपाल के यह अधिकार 2 उपसमूहों में वर्गीकृत किए जा सकते हैं : बिल के संदर्भ में और विधान सभा के संदर्भ में|
बिल के संदर्भ में
• धन विधेयक के अलावा अन्य विधेयक को उसकी मंजूरी के लिए राज्यपाल के सामने पेश किया जाता है तो वह, बिल पर सहमति दे सकता है, बिल को अपने पास रख सकता है, बिल को सदनों में पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है परंतु यदि विधान सभा के द्वारा संशोधित या बिना संशोधन के फिर से बिल पारित कर दिया जाये, तो उसे अपनी सहमति देनी पड़ती है या राष्ट्रपति के विचार के लिए बिल को आरक्षित कर लेता है|
हालांकि, राज्यपाल पुनर्विचार के लिए धन विधेयक बिल वापस नहीं भेज सकता|यह इसलिए है क्योंकि आमतौर पर यह विधेयक केवल राज्यपाल की पूर्व सहमति के साथ ही पेश किया जाता हैं|यदि विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए आरक्षित किया जाता है तो राष्ट्रपति ये जान सकता है की राज्यपाल अपनी सहमति दे रहा है या अपनी सहमति पर रोक लगा रखी है|
विधान सभा के संदर्भ में
राज्यपाल के पास राज्य विधानसभा को बुलाने व स्थगित करने का अधिकार है और यह विधान सभा को भंग भी कर सकता है जब वह अपना बहुमत खो देती है (अनुच्छेद176 )|
वित्तीय अधिकार
• वह वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य का बजट) विधानसभा के समक्ष रखता है|
• धन विधेयक केवल राज्य विधानसभा में इसकी पूर्व अनुशंसा से ही पेश किया जा सकता है
• अनुदान के लिए कोई भी मांग नहीं की जा सकती (जब तक उसकी अनुशंसा न हो)|
• अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिए आकस्मिकता निधि से पैसा राज्यपाल की अनुशंसा के बाद ही निकाला जा सकता है|
• वह नगरपालिका और पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने के लिए हर 5 साल में वित्त आयोग का गठन करता है।
न्यायिक अधिकार-
राष्ट्रपति संबन्धित राज्य के राज्यपाल से सलाह करता है जब भी उसे राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त करना हो|
माफी के अधिकार -
• माफ़ी – अपराधी को पूरी तरह दोषमुक्त करना
• फांसी स्थगित करना - सजा के क्रियान्वयन पर रहना
• राहत देना - कुछ विशेष परिस्थितियों में कम सजा की राहत प्रदान करना
• छूट देना - सजा के चरित्र को बदले बिना सज़ा में छूट देना
• प्रारूप बदल देना – सज़ा के एक रूप को दूसरे से बदल देना|
विवेकाधीन अधिकार -
अध्यादेश लेने का अधिकार
राज्यपाल का निष्कासन
केंद्र सरकार को राष्ट्रपति की सहमती के आधार पर किसी भी राज्य के राज्यपाल को किसी भी समय हटाने का अधिकार है, यहाँ तक की उसे हटाये जाने के कारण बताए बिना|
• हालांकि इन अधिकारों का मनमाने ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता। इनका प्रयोग असामान्य और असाधारण परिस्थितियों में वैध और मजबूरी के कारण किया जा सकता है|
• एक मात्र कारण कि राज्यपाल के विचार व नीतियाँ राज्य सरकार से भिन्न है या और केंद्र सरकार ने उसमे अपना विश्वास खो दिया है, राज्यपाल के निष्कासन का कारण नहीं बन सकता|
• केंद्रीय सरकार में परिवर्तन उसके निष्कासन का कारण नहीं बन सकते
• एक राज्यपाल को हटाने के फैसले को कानून के किसी भी अदालत में चुनौती दी जा सकती है।अदालत केंद्र सरकार से वह साक्ष्य प्रस्तुत करने को कह सकती है जिसे द्वारा निर्णय लिया गया बाध्यकारी कारणों को सिद्ध करने के लिए|
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