कोई हाथों में फूलों के माला लिए मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी है तो कोई मजदूर पिता के हाथों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। गरीबी ने दोनों के माथे पर लाचारगी की मुहर लगा दी है, लेकिन जीवन में कुछ करने का सपना और पढ़ाई का साथ उन्हें जीवन में एक अजीब खुशी देने को बेताब है। वक्त गुजरता है और दोनों एक दिन मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए परीक्षा पास कर लेते हैं। यह कहानी है भुवनेश्वर के ट्वींकल और संतोष की।
समाज के वंचित और उपेक्षित वर्ग के होनहारों को अपनी अनोखी पाठन शैली से आईआईटी(IIT) में प्रवेश दिलाने वाले बिहार के गणितज्ञ सुपर 30 के संचालक आनंद कुमार की प्रेरणा अब दुनिया भर में अपना असर दिखाने लगी है। आनंद कुमार से प्रेरित होकर अजय बहादुर सिंह भी भुवनेश्वर में शिक्षा की एक ऐसी ही मशाल जला रहे हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि सुपर 30 में जहां इंजीनियरिंग के क्षेत्र में छात्र कामयाबी का परचम लहरा रहे हैं, वहीं अजय बहादुर सिंह के दिशानिर्देश में गरीब और वंचित वर्ग के छात्र मेडिकल के क्षेत्र में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। अजय बहादुर सिंह के इस संस्थान का नाम है “जिंदगी” जिसके माध्यम से गरीब और होनहार छात्रों का मेडिकल कॉलेज में दाखिले का सपना पूरा हो रहा है।
भुवनेश्वर स्थित आद्यांत हायर सेकेंडरी स्कूल के चेयरमैन अजय बहादुर सिंह को स्वयं के इस अनूठी व प्रेरक पहल का नतीजा सामने दिखने लगा है। इस साल भी 2 बच्चों ने मेडिकल प्रवेश की परीक्षा पास कर ली है। अजय बहादुर सिंह के “जिंदगी” अभियान के तहत अभी तक कुल 16 बच्चों को मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल चुका है। और हर साल कुल 20 बच्चों को “जिंदगी” अभियान के तहत मुफ्त में उनकी पढ़ाई के साथ- साथ रहने व खाने का भी प्रबंध किया जाता है। समाज में “जिंदगी” के इस अहम योगदान को अब भुवनेश्वर समेत पूरे उड़ीसा में एक अनोखी पहचान मिल रही है। इस बारे में स्वयं अजय बताते हैं – “यह अनुभव शानदार है। सुपर 30 के आनंद सर ने जो बिहार में प्रयास किया वह आज पूरी दुनिया में रंग ला रहा है। मैंने भी एक कोशिश की है। गरीब और समाज के आखिरी पंक्ति में रह रहे बच्चों को दुनिया की अग्रिम पंक्ति में लाने का सुख दुनिया की तमाम दौलत से कहीं बडा है। मैं और मेरी टीम पूरी मेहनत से समाज के वंचित वर्ग के होनहारों की जिंदगी तराशने के लिए लगातार काम करती रहेगी।“
जिंदगी में आकर इस साल जिन दो बच्चों के मेडिकल कॉलेज में दाखिले का सपना पूरा हुआ है उनकी कहानी जितनी मार्मिक है उससे कहीं ज्यादा प्रेरणा देने वाली कहानी ट्वींकल साहू की है जो पुरी के जगन्नाथ मंदिर के बाहर फूलों का माला बेचकर अपने पिता के घर खर्च चलाने में हाथ बटाया करती थी। पिता मदनमोहन साहू अंडा बेचकर परिवार का भरण पोषण करने का काम करते थे। लेकिन बमुश्किल घर के खर्च का जुगाड़ हो पाता था। लेकिन ट्वींकल के मन में डॉक्टर बनने की तीव्र इच्छाश्कित थी। एक दिन अजय बहादुर की नजर मंदिर के बाहर माला बेच रही इस बच्ची पर पड़ी, इसके एक हाथ में एक किताब थी और दूसरे में फूलों की माला। अजय को यह बात खटकी, बच्ची से पूछा तो उसके सपने आंसू की शक्ल में बाहर आ गए। अजय उसे “जिंदगी” में ले आए, और आज ट्वींकल की मेहनत उसे डॉक्टर बनने की राह पर लेकर आई है। दूसरे छात्र संतोष नाहक के पिता निताई नाहक खेतों में मजदूरी कर परिवार का पेट पाला करते थे। जैसे-तैसे घनघोर गरीबी में परिवार का गुजारा हो रहा था। महीने में कई दिन चूल्हा तक नहीं जल पाता था। लेकिन मन में पढ़ लिख कर डॉक्टर बनने का सपना और जबरदस्त इच्छाशक्ति संतोष को अजय बहादुर की संस्था “जिंदगी” तक लेकर आई। आज अपनी मेहनत से संतोष अच्छे मेडिकल कॉलेज में जाने का सपना साकार कर रहा है। समाज में सुपर 30 के आनंद कुमार ने त्याग व लगन से वंचित वर्ग के होनहारों की जिंदगी संवारने में जो योगदान किया, भुवनेश्वर के अजय बहादुर सिंह उन्हीं के नक्शे-कदम पर आगे बढ़ रहे हैं. अजय बहादुर सिंह का यह त्याग और बलिदान पूरे समाज में निश्चित रूप से एक सकारात्मक बदलाव लाएगा।
महत्त्वपूर्ण बातें:
भुवनेश्वर के अजय बहादुर की जिंदगी मेडिकल में बच्चों की दिला रही प्रवेश
• अब तक 16 गरीब व वंचित वर्ग के बच्चे पहुंचे मेडिकल कॉलेज
• हर साल 20 बच्चों के रहने, खान-पीने व कोचिंग की मुफ्त व्यवस्ता कर रही जिंदगी
• इस साल भी 2 बच्चों ने किया मेडिकल कॉलेज में प्रवेश
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