घर से दूर पढ़ाई जरूरत या दिखावा

Jun 9, 2014, 14:53 IST

कंपनियों में प्लेसमेंट के दौरान सिर्फ कॉलेज का ही रोल नहींहोता, स्टूडेंट की खुद की मेहनत, स्किल और पर्सनैलिटी भी बेहद अहम होती है...

कंपनियों में प्लेसमेंट के दौरान सिर्फ कॉलेज का ही रोल नहींहोता, स्टूडेंट की खुद की मेहनत, स्किल और पर्सनैलिटी भी बेहद अहम होती है। इसलिए चुनें ऐसा कॉलेज जहां इंडस्ट्री के मुताबिक हो सकें आप तैयार। फिर वह इंस्टीट्यूट घर के पास ही क्यों न हो?

दसवीं और बारहवीं के नतीजे आ चुके हैं। अब कॉलेजों में दाखिले को लेकर आपाधापी शुरू हो गई है। स्टूडेंट्स से लेकर पैरेंट्स तक सभी इस सवाल से जूझ रहे हैं कि आखिर कौन-सा कॉलेज करियर के लिहाज से सही होगा? जिन स्टूडेंट्स को अपेक्षा से कम अंक आए होंगे, उन परिवारों में बच्चे को घर से दूर किसी बड़े शहर या मेट्रो सिटी के इंजीनियरिंग कॉलेज या मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में दाखिला दिलाने की प्लानिंग भी शुरू हो गई होगी। मिशन एडमिशन की पिछली कड़ी में यह बात सामने आई थी कि ज्यादातर पैरेंट्स को बच्चे का भविष्य बड़े शहरों में ही नजर आता है। इस चक्कर में अक्सर वे प्राइवेट कॉलेजों के छलावे में आ जाते हैं। इसका खामियाजा खुद स्टूडेंट्स को भुगतना पड़ता है। फिर क्यों न दाखिले का फैसला लेने से पहले अपने बच्चे की रुचि और क्षमता को जानने की कोशिश करें? मेट्रो या बड़े शहरों के अच्छे कॉलेजों में एडमिशन न मिलने की सूरत में क्यों नहीं आस-पास के अपेक्षाकृत बेहतर कॉलेज में ही दाखिला लिया जाए। इससे समय और पैसे दोनों की बचत हो जाए।

मजबूरी है बाहर पढ़ना

गोरखपुर से 700 किमी दूर अलीगढ़ में बीटेक करने आए दिनेश कुमार कहते हैं, अपने शहर से बाहर आकर पढ़ना कौन चाहता है? यह तो मजबूरी है। घर से दूर आकर पढ़ाई करने में दोगुना खर्च हो रहा है, लेकिन मेरा सपना इंजीनियर बनना है। मैं जानता हूं कि कैंपस प्लेसमेंट के जरिए सबको नौकरी नहीं मिल सकती है। वह मेरी काबिलियत से ही मिलनी है। मैं उसके हिसाब से ही तैयारी कर रहा हूं। अलीग़ढ़ के ही एक निजी संस्थान से बीटेक कर रहे बुलंदशहर के हेमंत सिंह भी मजबूरी में यहां आए हैं। हेमंत कहते हैं, यहां पढ़ाई बेहद खर्चीली है। इंस्टीट्यूट से कैंपस प्लेसमेंट को लेकर संशय की ही स्थिति है। उनके दावे पर भरोसा नहीं कर सकता, इसलिए अपने बूते ही तैयारी कर रहा हूं। शायद घर के पास कहीं दाखिला लेता, तो पढ़ाई पर इतना खर्च न करना पड़ता।

प्लेसमेंट के दावे खोखले

बुलंदशहर के नारऊ गांव के संकोच गौड़ को अलीगढ़ के नामचीन निजी संस्थान ने बीटेक में दाखिला देते वक्त तमाम सब्जबाग दिखाए थे। कोर्स पूरा होते ही नौकरी दिलाने का वादा किया था। साल भर पहले जब कोर्स पूरा हुआ, तो सारे अरमान चकनाचूर हो गए। संकोच को इस संस्थान में पढऩे का बेहद अफसोस है। वे कहते हैं, कैंपस सेलेक्शन में कोई कंपनी ही नहीं आई। छह महीने की भाग-दौड़ और खुद के प्रयासों के बाद ही फरीदाबाद की कंपनी में नौकरी मिल सकी। बकौल संकोच, आर्थिक तंगी के बावजूद अलीगढ़ आकर प्राइवेट संस्थान में इसलिए दाखिला लिया था कि कैंपस सेलेक्शन हो जाएगा। तुरंत जॉब मिलेगी, तो एजुकेशन लोन भी फटाफट चुका दूंगा। लेकिन शुरुआत में ही तगड़ा झटका लगा। जब तक नौकरी नहीं मिली, एक-एक-एक दिन बड़ा भारी पड़ा। अब लोन चुकाने में लगा हूं।

प्लेसमेंट बढ़ाता है कॉन्फिडेंस

पटना से बरेली आकर बीटेक कर रहे अभिजीत चंद्र राय कहते हैं, घर से बाहर निकलने पर सोसायटी में हर तरह के लोगों को समझने का मौका मिलता है। खुद से फैसला लेने पर सही और गलत का फर्क जानने का मौका मिलता है। इससे कॉन्फिंडेंस डेवलप होता है, जो नौकरी के लिए बेहद जरूरी है। मैंने प्लेसमेंट के रिकॉर्ड को देखने के बाद ही बरेली की यूनिवर्सिटी को चुना। अभिजीत का मानना है कि कैंपस प्लेसमेंट होने पर नौकरी के लिए धक्के नहीं खाने पड़ते हैं। प्लेसमेंट के दौरान काफी कुछ सीखने को भी मिलता है, जो भविष्य में काम आता है। इसी यूनिवर्सिटी में नेपाल से आकर बीटेक कर रहे डेबिट पौडेल ने बताया कि दोस्तों ने बरेली में पढ़ाई की सलाह दी थी, जिसके बाद मैंने अलग-अलग लोगों से बात कर प्लेसमेंट की स्थिति की जानकारी ली। सीनियर्स की अच्छी कंपनियों में प्लेसमेंट को देखने के बाद लगा कि यहां आकर पढऩे का फैसला सही था। घर से दूर रहकर पढ़ाई करने पर लोगों को समझने का मौका मिला।

सही इंस्टीट्यूट का सलेक्शन

देहरादून से मुरादाबाद आकर इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग कर रहीं रुचि नेगी कहती हैं, मुझे पता चला था कि इस इंस्टीट्यूट की रैकिंग अन्य इंस्टीट्यूट से बेहतर थी। इसके चलते बाहर से आकर यहां पढ़ने का निर्णय किया। यहां आकर महसूस हुआ कि मेरा डिसीजन सही था। यहां शिक्षकों के उचित मार्गदर्शन में पढ़ने का भरपूर मौका मिल रहा है। कोई पारिवारिक जिम्मेदारी न होने की वजह से सिर्फ पढ़ाई पर ही ध्यान दे पा रही हूं। हां, जब कभी उनकी याद आती है तो फोन से परिजनों से संपर्क कर लेती हूं। रुचि की तरह लखीमपुरखीरी से यहां आकर इंजीनियरिंग कर रहीं और फाइनल इयर की स्टूडेंट सौम्या दीक्षित कहती हैं, अच्छा इंस्टीट्यूट है, तो परिणाम भी बेहतर होने की उम्मीद है। यहां टीसीएस सहित नामी कंपनियां प्लेसमेंट के लिए आ रही हैं। उम्मीद है कि मुझे भी कैंपस प्लेसमेंट के माध्यम से कहीं न कहीं अच्छी जॉब मिल जाएगी।

प्लेसमेंट से मिली जॉब

सिनर्जी टेक्नोलाजी सर्विसेज में काम कर रहीं करिश्मा मलिक कहती हैं, कैंपस प्लेसमेंट से हमें खुद को आंकने का मौका मिलता है। इसका सामना कर भविष्य के लिए तैयारी मजबूत होती है। पहले ही प्लेसमेंट में कई कंपनियों में मेरा सेलेक्शन हो गया। बाराबंकी में स्कूली पढ़ाई करने के बाद तीन सौ किमी दूर बरेली स्थित यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। यहां एडमिशन लेने से पहले हमने प्लेसमेंट और फैकल्टी को चुना था। यहां आकर उद्देश्य पूरा हुआ।

नौकरी के लिए भटका नहीं


एरिक्सन में काम कर रहे कुमार शुभम ने बताया कि फ्रेशर होने के नाते हमें कैंपस प्लेसमेंट से नौकरी के संबंध में ज्यादा सोचना नहीं पड़ता है। एक भरोसा होता है कि कैंपस से प्लेसमेंट मिल जाएगा, अपनी मेहनत के बल पर। इससे काफी रिलीफ मिलती है। एसआरएमएस में पढ़ाई करने के बारे में मेरे पड़ोसी ने बताया था। यहां बीटेक में एडमिशन से पहले कई बार सोचा। इसके लिए लखनऊ में घर के पास के कई इंस्टीट्यूट छोड़े, तब जाकर कहीं यहां दाखिला लिया। इसके बाद जब एरिक्शन में सेलेक्शन हुआ, तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि घर से दूर जाकर पढऩे का मेरा फैसला सही था।

टीसीएस से मिला ऑफर

मुरादाबाद के इंजीनियरिंग कॉलेज की फाइनल इयर की स्टूडेंट प्रज्ञा मिश्रा कहती हैं, मुझे इंस्टीट्यूट के बारे में पहले भी जानकारी थी कि वहां अच्छी कंपनियां आती हैं। इसीलिए गोरखपुर से वहां जाकर एडमिशन लेने का डिसीजन लिया। कोर्स कम्प्लीट करने पर जब टीसीएस से जॉब का ऑफर आया, तो अंदर से सुकून मिला। इस नौकरी को हासिल करने में इंस्टीट्यूट के प्लेसमेंट सेल से पूरी मदद मिली। कंपनी से वर्तमान में प्रति वर्ष 3.18 लाख रुपये का ऑफर मिला है।

प्लेसमेंट का फंडा


क्वालिटी को प्राथमिकता

हमारे यहां क्वालिटी एजुकेशन पर काफी ध्यान दिया जाता है। कॉलेज का प्लेसमेंट रिकॉर्ड भी अच्छा है, जिसे देखते हुए कंपनियां उन्हें प्राथमिकता देती हैं। हम कंपनी के नुमाइंदों से स्टूडेंट्स की कमियों को जानने और फिर उन्हें सुधारने के लिए संपूर्ण व्यक्तित्व विकास पर जोर देते हैं।

जरूरत के मुताबिक तैयारी

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बड़ी साख है। यही वजह है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां हमारे यहां आने को लालायित रहती हैं। हमारे अल्मुनाई भी ब्रांड एंबेसडर का रोल निभाते रहे हैं। इसके अलावा हम स्टूडेंट्स की क्वालिटी इंप्रूव करने के लिए जरूरत के मुताबिक तैयारी कराते हैं। सबसे ज्यादा फोकस पर्सनैलिटी डेवलपमेंट पर होता है।

चेक करते हैं फैकल्टी

प्लेसमेंट के लिए कंपनियां किसी भी इंस्टीट्यूट में फैकल्टी मेंबर्स की क्वालिटी और सिलेबस को देखती हैं। इसके साथ ही स्टूडेंट्स को दी जा रही सुविधाएं भी देखी जाती हैं। इसके बाद ग्रुप डिस्कशन और फिर एचआर राउंड के जरिए उनकी स्क्रीनिंग कर प्लेसमेंट फाइनल होता है। उमेश गौतम, चांसलर इन्वर्टिस यूनिवर्सिटी, बरेली

प्रेजेंटेशन से राह आसान

सलेक्शन के दौरान कई चीजों का ध्यान रखा जाता है। जैसे स्टूडेंट की सब्जेक्ट पर कितनी कमांड है? प्रेजेंटेशन कैसा है? पर्सनैलिटी कैसी है? ड्रेसिंग सेंस कैसा है आदि। इंटरव्यू में 40 फीसद अंक तो इसी के रखे जाते हैं। इसके बाद किसी को रिजेक्ट या एक्सेप्ट करना आसान हो जाता है।

Jagran Josh
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Education Desk

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